कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के भाजपा से कॉंग्रेस में शामिल होने से उत्तराखंड में भाजपा-कॉंग्रेस के बीच एक-दूसरे के लोगों को अपनी पार्टी में शामिल कराने की प्रतिस्पर्द्धा अगले दौर में पहुँच गयी है.
पहले राउंड में भाजपा ने एक
कॉंग्रेसी विधायक, एक निर्दलीय विधायक जो पूर्ववर्ती कॉंग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे और एक
अन्य निर्दलीय विधायक जो भूतपूर्व कॉंग्रेसी हैं, उन्हें भाजपा
में भर्ती करवा कर दल-बदल की रेस में लीड लेने की कोशिश की थी !
चुनावी बेला नजदीक देख कर, यह चला-चली का
खेला काफी तेज हुआ है. विडंबना देखिये कि राजनीतिक पार्टियां इसे उपलब्धि के तौर पर
पेश कर रही हैं. पहली पार्टी, दूसरी पार्टी और यहां तक की विज्ञापनी
प्रचार से स्वयं की बढ़त दिखाने की कोशिश करती तीसरी पार्टी भी यही डींग हांक रही है-
हमारे संपर्क में कई विधायक हैं ! इसका आशय क्या है ? इसका आशय
यह है कि दल-बदल कर अपनी कुर्सी सुरक्षित करने की इच्छा रखने वाले हर दल-बदलू का हमारे
यहां स्वागत है !
दल-बदल करते हुए नेताओं के वक्तव्य सुनिए,उनके राजनीतिक
वक्तव्य सुनिए. जिस भोलेपन से वो वर्तमान ठिये का गुणगान करते हैं, उसके नकलीपन को समझते हुए भी कई बार लगता है कि उनके झूठ पर ही रीझ लिया जाये.
दल-बदलुओं को तो यह आस है ही कि जनता उनके झूठ पर फ़िदा हो ही जाएगी, इसीलिए तो वे जीत का ख्वाब देख रहे हैं.
भीमताल के निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा जिस दिन भाजपा में शामिल हुए, उस दिन उन्होंने
कहा- मैं राज्य आंदोलनकारी रहा, अटल जी ने राज्य बनाया ! कोई
पूछे कि भाई साहब आपको 21 साल बाद यह क्यूँ समझ आया कि यह उपलब्धि भाजपा के खाते में
जोड़ने की है ! छात्र राजनीति के दिनों से कैड़ा कॉंग्रेसी रहे. कॉंग्रेस में भी हरीश
रावत खेमे में रहे, इस वजह से हल्द्वानी में दिवंगत इन्दिरा हृदयेश
को वे फूटी आँख नहीं सुहाते थे. 2012 का चुनाव में वे कॉंग्रेस के ही टिकट पर लड़े थे.
2017 के चुनाव से ऐन पहले यदि हरीश रावत ने भाजपा के भीमताल के
तत्कालीन विधायक दान सिंह भण्डारी को तोड़ कर कॉंग्रेस का टिकट उन्हें नहीं दिया होता
तो कैड़ा जी कॉंग्रेस में ही होते. उस कॉंग्रेसी होने का ही प्रभाव था कि दलबदल के वक्त
उनका वाक्य यहीं पर रुक गया- अटल जी ने राज्य बनाया !
पुरोला से कॉंग्रेस के विधायक राजकुमार भी बीते
दिनों भाजपा में शरीक हो गए. बीते चुनाव में वे भाजपा से कॉंग्रेस में आए थे और इस
चुनाव से पहले वापस भाजपा में लौट गए. भाजपा-कॉंग्रेस में आने-जाने की यह पंचवर्षीय
अदला-बदली ही उनकी कुल जमा उपलब्धि है !
धनौल्टी से निर्दलीय विधायक
प्रीतम सिंह पँवार भाजपा में शामिल होने वालों में शामिल रहे. प्रीतम पँवार लंबे अरसे तक उत्तराखंड क्रांति दल में रहे.
फिर दल से उनका अलगाव हो गया. पिछली कॉंग्रेस सरकार में वे मंत्री रहे. उस समय वे यमुनोत्री
से विधायक थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ उनकी गाढ़ी छनती थी. उनके द्वारा
अपने चुनाव क्षेत्र को यमुनोत्री से बदल कर धनौल्टी करने
में हरीश रावत के साथ उनकी प्रगाढ़ता का ही योगदान था.
दरअसल 2017 में हरीश रावत को यह भरोसा था कि वे
पुनः सरकार बना लेंगे. वे अपने मोहरे उसी हिसाब से बैठा रहे थे. यमुनोत्री में हरीश
रावत के सामने संकट था कि वहां के तत्कालीन विधायक प्रीतम पँवार उनके कैबिनेट मंत्री
थे और वहां से एक बार कॉंग्रेस के विधायक और उस वक्त प्रीतम पँवार से शिकस्त खाये केदार
सिंह रावत, उनके यानि हरीश रावत के खेमे के व्यक्ति थे. हरीश रावत, न तो प्रीतम सिंह पँवार को छोड़ना चाहते थे और ना ही केदार सिंह रावत को. लिहाज़ा
हरीश रावत ने प्रीतम पँवार को धनौल्टी से चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया. प्रीतम पँवार
धनौल्टी आ भी गए पर केदार सिंह रावत भाजपा में चले गए. पाँच साल बीतते-न-बीतते प्रीतम
पँवार भी भाजपा की कश्ती में सवार हैं.
प्रीतम पँवार ने विधायक के तौर पर भी उत्तराखंड
क्रांति दल से शुरुआत की, फिर निर्दलीय हुए और कॉंग्रेस की सरकार में मंत्री रहे और अब उन्होंने भाजपाई
चोला धारण कर लिया है. इस तरह प्रीतम भाई ने उत्तराखंड की राजनीति के सभी प्रमुख ठिकानों
पर हाज़री बजा ली है.
यशपाल आर्य जब 2017 में कॉंग्रेस से भाजपा में
गए तो उस समय भी वे कॉंग्रेस की सरकार में मंत्री थे. विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत
ने जब विधायक-मंत्रियों का कॉंग्रेस से भाजपा में सामूहिक दल-बदल करवाया, उस समय यशपाल आर्य भाजपा में नहीं गए. वे उसके बाद गए. अपने करीबी पत्रकारों
को यशपाल आर्य ने अपने दल-बदल को जायज़ ठहराने के लिए हरीश रावत द्वारा अपमानित किए
जाने का किस्सा सुनाया. उत्तराखंड के कम से कम दो वरिष्ठ पत्रकारों से मुंह से मैंने
यह किस्सा सुना, जिसमें यशपाल आर्य ने बताया कि एक सुबह उनको
पी. के. का फोन आया कि हरीश रावत और पी.के.
दिल्ली में आर्य के साथ कुछ बात करना चाहते
हैं. उनसे कहा गया कि उनके लिए दिल्ली से हेलीकॉप्टर भेजा जा रहा है, वे तत्काल
पंतनगर हवाई अड्डे पर पहुँचें. किस्से के अनुसार यशपाल आर्य काफी देर तक पंतनगर हवाई
अड्डे पर इंतजार करते रहे, लेकिन हेलीकॉप्टर नहीं आया. फिर उनसे
कहा गया कि हेलीकॉप्टर का बंदोबस्त नहीं हो पा रहा है, इसलिए
वे कार से दिल्ली पहुँचें. कार से वे जब दिल्ली पहुंचे तो उन्हें पता चला कि जिन दो
महानुभावों ने उन्हें मिलने को दिल्ली बुलाया है, वे तो देहरादून
निकल गए हैं. किस्से के अनुसार इस बर्ताव से आहत यशपाल आर्य की दिल्ली में विजय बहुगुणा
से मुलाक़ात हुई और बहुगुणा ने यशपाल और उनके बेटे दोनों के विधानसभा टिकट का बंदोबस्त
करवा कर उन्हें भाजपा में शामिल करवा लिया. मंत्री तो यशपाल आर्य कॉंग्रेस में भी थे
ही पर भाजपा में जा कर मंत्री पद के अलावा बेटे के लिए विधायकी उनकी सकल उपलब्धि रही
!
लेकिन कॉंग्रेस में भर्ती होते वक्त, यशपाल आर्य जिस
तरह खूब देर तक हरीश रावत से लिपटे रहे, उससे लगता है कि या तो
इस किस्से की स्मृति यशपाल आर्य के दिमाग में पाँच साल में धुंधली पड़ गयी है या यह
किस्सा स्वयं के दल-बदल को जायज़ ठहराने के लिए गढ़ा गया था.
कॉंग्रेस में शामिल होते हुए यशपाल आर्य ने कहा
कि उनकी घर वापसी हो गयी है. बड़े लोगों की बड़ी बात है. पाँच साल जिस घर में वे रहे, वो घर भी पराया
तो रहा नहीं, दोबारा नौबत आई तो फिर उस घर में चले जाएंगे ! गले
में डाले जाने वाला पट्टा ही तो बदलना है !
वे यह भी बोले कि भाजपा में वे घुटन महसूस कर रहे
थे. कैबिनेट मंत्री और पुत्र के विधायक होने के बावजूद जिनका दम घुट रहा था, सोचिए तो उन्हें
कितनी हवा चाहिए ! बड़े लोग हैं, बड़ा गला है तो हवा,पानी,संसाधन और कुर्सी सब बराबर चाहिए ताकि सांस चलती
रहे,दम न घुटे ! इसमें कुर्सी सर्वाधिक ऑक्सीजनदायनी है !
वैसे इस दल-बदल में भाजपा और कॉंग्रेस में शामिल
होने वालों के तर्क बड़े मजेदार हैं. भाजपा में जो शामिल हो रहा है, उसका वेद वाक्य
है-मोदी जी की नीतियों से प्रभावित हो कर भाजपा में शामिल हो रहा हूँ. बंधु, पाँच साल से मोदी जी की नीतियों से प्रभावित ना हुए आप ! भाजपा वाले तो मोदी
जी के सार्वजनिक जीवन में आने के बीस वर्षों का जश्न माना रहे हैं, उतने ही वर्ष उत्तराखंड राज्य को बने हुए हो गए पर बीस वर्षों में कोई प्रभाव
नहीं पड़ा, बल्कि उस कालखंड में आप दूसरे राजनीतिक दलों में रहे
! अब अचानक चुनाव से पहले महानुभाव मोदी की नीतियों से प्रभावित हो गए हैं ! कौन सी
नीतियों से,यह प्रश्न और इसका उत्तर भगवा गमछे की सिलवटों और कमल के नीचे के कीचड़ में
दफन है !
कॉंग्रेस में भर्ती होने वाला कह रहा है कि लोकतंत्र
की रक्षा के लिए वह यहां आया है. कोई पूछे कि भाई साहब अगर लोकतंत्र की रक्षा यहां
आकर ही होनी थी तो आप लोकतंत्र की रक्षा को अधर में छोड़ कर गए ही क्यूँ ? बीते साढ़े चार
साल में जब आप मंत्री पद पर आरूढ़ रहे तो आपको इस खतरे में पड़े लोकतंत्र का, एक भी बार स्मरण क्यूं ना हुआ ?
दलबदल के खेल में मोदी की पार्टी में साढ़े चार
साल मंत्री रहने वालों पर मोदी की नीतियों का कोई प्रभाव नहीं, वे लोकतंत्र
की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं और जो मोदी जी की नीतियों से प्रभावित हो रहे हैं, लोकतंत्र का नाम भी वे अपने होंठों पर लाना गवारा नहीं कर रहे हैं ! गोया मोदी जी और
लोकतंत्र दो तलवारें हों, जिनका एक म्यान में रहना नामुमकिन हो
!
हकीकत यह है कि दलबदल न लोकतंत्र के लिए है, न किन्हीं नीतियों
के लिए है, यह सिर्फ अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए है !
-इन्द्रेश मैखुरी
2 Comments
लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वार्थ नीतियों से अहम जोते जा रहा है।
ReplyDeleteचुनाव से एन वक्त पहले यशपाल आर्य जी की सपरिवार अंतरात्मा जाग गयी
ReplyDelete