केंद्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
यानि एम्स के ऋषिकेश स्थित परिसर के सेटेलाइट केंद्र के
तौर पर किच्छा में एक संस्थान खोला जाएगा.
एम्स के सेटेलाइट केंद्र के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा
चिन्हित भूमि के निरीक्षण के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार
कल्याण मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार निलांबुज शरण ने एम्स,ऋषिकेश के निदेशक डॉ.अरविंद राजवंशी
को 30 अक्टूबर 2021 को पत्र भेजा है.
बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ की उत्तराखंड को हमेशा से दरकार
रही हैं.इस लिहाज से यह फैसला लिया जाता तो अच्छा होता. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि
यह सिर्फ राजनीति साधने के लिए लिया गया फैसला है. ऐसा न होता तो एम्स का यह सेटेलाइट केंद्र कुमाऊँ मण्डल के किसी पर्वतीय जिले में
खोला जाना चाहिए था. कहने को इस सेटेलाइट केंद्र को कुमाऊँ मण्डल में खोलने पीछे एम्स
ऋषिकेश से भौगौलिक दूरी का ही हवाला दिया गया. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार निलांबुज
शरण द्वारा एम्स,ऋषिकेश के निदेशक डॉ.अरविंद राजवंशी को भेजे
पत्र में भी यहां के जटिल भूगोल का उल्लेख है. लेकिन जिस जगह यह सेटेलाइट केंद्र खोलने
का फैसला किया गया है, वह तो उस जटिल भूगोल का प्रतिनिधित्व नहीं
करता. पिथौरागढ़, बागेश्वर,अल्मोड़ा,चंपावत के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से यदि मरीज हल्द्वानी तक पहुँच ही जाएगा तो
तब तो उसके पास इलाज कराने के विकल्पों की कमी नहीं रहेगी. असल चुनौती तो इन पर्वतीय
जिलों से उपचार के केन्द्रों तक पहुँचने की ही है. तमाम सरकारी रिपोर्टें इस बात की
तस्दीक करती हैं कि मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं
की हालत बेहद जर्जर है, पर्वतीय क्षेत्रों में डॉक्टरों एवं चिकित्सीय
स्टाफ की भारी कमी है. इसी वर्ष मार्च में आई सीएजी की रिपोर्ट भी बताती है कि मैदानी
क्षेत्रों के अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या भरपूर है,जबकि
पहाड़ी क्षेत्रों में यह संख्या काफी कम है. पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का
ढांचा इस कदर जर्जर है कि अधिकांश अस्पताल सिर्फ रेफेरल सेंटर हैं.
उत्तराखंड सरकार के द्वारा गठित पलायन आयोग की रिपोर्ट
के अनुसार 8.83 प्रतिशत लोग स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में पलायन करने को विविश हैं.
इन तमाम परिस्थितियों के मद्देनजर यह होना चाहिए था कि
एम्स या उसका सेटेलाइट केंद्र कुमाऊँ मण्डल के किसी पर्वतीय जिले में बनाया जाना चाहिए
था, जिससे कि अधिसंख्य आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलता.
ऐसा प्रतीत होता
है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भले ही हर मंच से पिथौरागढ़ में स्वयं के पैदा होने
का हवाला दें, जन्मभूमि के इमोशनल कार्ड को खेलें, लेकिन जब बेहतर सुविधाएं जुटाने की बारी आई तो उसके लिए उन्होंने अपनी राजनीतिक
भूमि को ही चुना. ऐसा करके वे अपने विधानसभा क्षेत्र में अपनी राजनीतिक जमीन भले ही
मजबूत कर लें, लेकिन जो एक बड़े भूभाग को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं
को नजदीक में उपलब्ध करवा कर वे स्वयं को दूरदर्शी राजनेता सिद्ध कर सकते थे, वह अवसर उन्होंने गंवा दिया.
केंद्र सरकार द्वारा भूमि की गुणवत्ता परीक्षण के लिए
भेजे गए पत्र से स्पष्ट है कि उत्तराखंड सरकार ने किच्छा की जमीन का प्रस्ताव ही केंद्र
सरकार के सामने रहा था. प्रदेश के मुख्यमंत्री
पद पर बैठा व्यक्ति भी यदि अपने विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं के दायरे से बाहर नहीं
सोच सकेगा तो फिर तो सत्तर के सत्तर विधानसभा क्षेत्रों को अपने-अपने मुख्यमंत्री चाहिए
होंगे !
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
अपनी राजनीतिक ज़मीन को पुख़्ता करने का इरादा बदलना होगा राज्य के मुख्या को।
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