आज-कल,आज-कल करते-करते गैरसैंण से देहरादून निकल- जी हाँ, कुछ-कुछ ऐसा ही होना बताया जा रहा है, उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र
के साथ.
पहले
घोषित किया गया कि यह सत्र 29-30 नवंबर को गैरसैंण में
आयोजित किया जाएगा,फिर नयी तिथि घोषित की गयी 7-8
दिसंबर. अब चर्चा है कि उत्तराखंड की विधानसभा का शीतकालीन सत्र 9-10 दिसंबर को
होगा और यह गैरसैंण के बजाय देहरादून में होगा. खबर है कि संसदीय कार्य मंत्री और नेता
प्रतिपक्ष दोनों ने सत्र देहरादून में कराने का सुझाव दिया है. यानि भाजपा-कॉंग्रेस
दोनों की इच्छा है कि सत्र गैरसैंण के बजाय देहरादून में हो, इतनी साल से वही चाहते रहे कि राजधानी गैरसैंण
से नहीं देहरादून से चले, सो चल रही है.
दो दिन का सत्र और तीन बार तारीख में रद्दोबदल,इसी से सत्र के प्रति उत्तराखंड सरकार और विधानसभा की गंभीरता देखी जा
सकती है. दो दिन के सत्र में क्या विधायी कार्य होंगे,यह कोई
भी समझ सकता है. शीतकालीन सत्र की औपचारिकता पूरी कर लेनी है,बस !
सत्र गैरसैंण में होता तो भी यह रोचक बात होती. डबल इंजन
की सरकार के पहले ड्राइवर ने गैरसैंण को घोषित किया था- ग्रीष्मकालीन राजधानी और डबल इंजन के
तीसरे ड्राइवर सत्र करते- शीतकालीन ! पर यह हो न सका ! होता तो यह भी न सका कि गैरसैंण
को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने वाली सरकार ग्रीष्मकाल में गैरसैंण चली जाती !
ठंड
के मारे गैरसैंण आने से घबराने की यह घटना कोई पहली बार नहीं हो रही है. मार्च
2019 में त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते भी सरकार
विधानसभा का सत्र ठंड का हवाला देते हुए गैरसैंण में करने की घोषणा से पीछे हटी थी.
वैसे
भी यह दो दिन का सत्र गैरसैंण में होना, विधानसभा की कार्यवाही से ज्यादा मुख्यमंत्री,मंत्रियों, अफसरों और देहरादून के पत्रकारों की
पिकनिक ज्यादा होता है. देहरादून में जब विधानसभा का सत्र होता है तो देहरादून की
पुलिस और प्रशासनिक अमला सारे सत्र की कार्यवाही में लगता है. लेकिन गैरसैंण में जब सत्र होता है तो पूरे प्रदेश
भर से कर्मचारी,अफसर और पुलिस इकट्ठा करके गैरसैंण पहुंचा दी जाती है.
वह
विधानसभा का सत्र नहीं सालाना सैर-सपाटा होता है, जिसके बहाने जनता को फुसलाने की कोशिश होती है
कि देखो गैरसैंण यदि तुम्हारे दिल में बसता है, तो हम भी इसे कहाँ भूले हैं, साल में एक बार आते तो हैं, यहां अपने दर्शन देने ! इस तरह जनता
के पैसे से जनता की भावनाओं के दोहन का कार्यक्रम होता है !
गैरसैंण
को या उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों को इस तरह के दो दिन के सत्र के
झुनझुने की जरूरत भी नहीं है. गैरसैंण को पूर्णकालिक राजधानी बनाने की जनता की मांग रही है और इससे
कम चाहे वह एक सत्र चलाने का बात हो या ग्रीष्मकालीन राजधानी,सब राजनीतिक झुनझुने हैं.
गैरसैंण राजधानी उत्तराखंड राज्य
की अवधारणा से जुड़ा सवाल है.इसका मतलब यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेती, पलायन जैसे सवालों का हल होना या उनके हल होने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाना.
ऐसा नहीं होगा तो यह स्थान विशेष की लड़ाई बन कर रह जाएगी,
जिससे अंततः बहुत कुछ हासिल नहीं होगा. लेकिन ऐसा भाजपा-कॉंग्रेस के भरोसे बैठ कर
तो होने से रहा. इसके लिए आंदोलन की ताकतों को ही आगे बढ़ कर मोर्चेबंदी करनी होगी.
-इन्द्रेश
मैखुरी
1 Comments
शीतकालीन सत्र दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टीयों की सुविधानुसार होगा। जनता-जनार्दन से क्या लेना-देना!
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