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पुरानी पेंशन की मांग वालो,यह सबक गांठ बांध लो

 







तीन कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद देश में चल रहे अन्य आंदोलनों में भी यह आकांक्षा जागृत हुई है कि यदि किसान आंदोलन के दबाव में कृषि कानून वापस हो सकते हैं तो फिर उनकी वाजिब मांग भी मानी जानी चाहिए.








इनमें से एक मांग है शिक्षक-कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना (जिसे संक्षेप में ओपीएस कहते हैं) लागू करने की मांग. यह बेहद वाजिब मांग है. जिस तथाकथित नयी पेंशन योजना को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपई की सरकार द्वारा  अक्टूबर 2004 से लागू करते हुए अधिक लाभ का झुनझुना थमाया गया था,उसके दुष्परिणाम स्पष्ट नजर आने लगे हैं. बरसों-बरस नौकरी करने के बाद नयी पेंशन स्कीम से आच्छादित कार्मिक जब सेवानिवृत्त हो रहा है तो बहुतेरे मौकों पर पता चलता है कि वह पाँच सौ रुपया या हजार रुपया जैसी मामूली रकम पेंशन के रूप में पा रहा है. निश्चित ही इस तुच्छ धनराशि से कोई भी सेवानिवृत्त कार्मिक घर-परिवार नहीं चला सकता है.


इसके अलावा सरकारी सेवा के बावजूद यदि सामाजिक सुरक्षा (social security) की गारंटी नहीं है तो उसमें और निजी क्षेत्र की नौकरी में फर्क ही कितना है ?


लेकिन पुरानी पेंशन के मसले को थोड़ा व्यापक फ़लक पर देखने की आवश्यकता है. पेंशन का खात्मा उन नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का अनिवार्य परिणाम है, जो सब कुछ बाजार के हवाले करने पर आमादा हैं. उन्हीं नीतियों पर चलते हुए रक्षा,बैंक,बीमा,उड्डयन,रेल,बन्दरगाह,सड़क,सब कुछ को सरकार बड़े कॉरपोरेट घराने के हवाले कर रही है.कृषि कानून भी उन्हीं नीतियों की राह पर चलते हुए लाये गए थे. सब कुछ बेचने के शुरूआती कदमों में से पेंशन को बाजार के हवाले करना भी एक था. नयी पेंशन योजना कार्मिक के अंशदान पर चलती है और अभी भी 86 प्रतिशत इसमें कार्मिक का अंश है और 14 प्रतिशत सरकार का. लेकिन सरकार इस पैसे को शेयर बाजार समेत कहीं भी निवेश करने को स्वतंत्र है.इसका एक पहलू यह भी हो सकता है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को कारपोरेट घरानों के हवाले करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहती होगी कि जब सार्वजनिक क्षेत्र, निजी हाथों में जाये तो निजी क्षेत्र पेंशन देने के टेंशन से मुक्त रहे ! इसलिए सबसे पहले पेंशन निपटा दी गयी !


अब आते हैं कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा से नयी पेंशन योजना की वापसी की आस पर. यह आस वाजिब है, न्यायोचित है. लेकिन यदि इस आस को पूरा होना है तो इसके लिए शिक्षक-कर्मचारी आंदोलन को किसान आंदोलन जैसा तेवर,जुझारूपन और विवेक दिखाना होगा. शुरुआती तौर पर पहल के मामले में शिक्षक-कर्मचारी आंदोलन, किसान आंदोलन से पीछे है. शिक्षक-कर्मचारी आंदोलन ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग ही नयी पेंशन योजना लागू होने के लगभग एक दशक से अधिक समय बाद शुरू की, जबकि किसानों ने कृषि क़ानूनों का विरोध तब ही शुरू कर दिया था, जब केंद्र सरकार अध्यादेश के रूप में इन्हें  ले कर आई.


शिक्षक-कर्मचारियों के पास भी वैसी ही अपार जनशक्ति है, जैसी किसानों के पास है. उनके पास तो यह ताकत भी है कि यदि वे स्कूलों-दफ्तरों से बाहर निकल पड़े तो पूरे देश की व्यवस्था एक दिन में चरमरा जाएगी. किसान आंदोलन का सबक तो यही है कि अपनी वाजिब मांग को मनवाने के लिए पूरी ताकत झोंक देना और बेहद संयम व समझदारी से कठोर से कठोर परिस्थिति का मुक़ाबला करना ही जीत का रास्ता खोलेगा.


इसमें सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान आंदोलन ने तमाम दमन,लांछन सहते और शहादतें देते हुए, केंद्र की महाशक्तिशाली समझे जाने वाली सरकार और उसके छप्पन इंच वाले मुखिया के सामने साल भर में ऐसे हालात पैदा कर दिये कि उन्हें लगने लगा कि यदि किसानों की बात न मानी तो पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में फिर कुर्सी हाथ नहीं आनी !


यही सूत्र है,यही कुंजी है. आपकी बात कोई हुकूमत दो ही स्थितियों में मानेगी- या तो वह जनपक्षधर और संवेदनशील हो या फिर उसे खतरा हो कि मांग न मानने से उसका राजनीतिक अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा.


शिक्षक-कर्मचारियों को यदि वास्तव में पुरानी पेंशन वापस चाहिए तो सत्तासीनों के राजनीतिक अस्तित्व के लिए संकट पैदा करना पड़ेगा. बड़ी से बड़ी जनगोलबंदी भी तभी परिणाम लाएगी, जब सरकार को उससे सिहरन पैदा हो. अगर नेतृत्व का बड़ा हिस्सा सत्ता के प्रति भक्तिभाव के साथ आंदोलन में है तो तय जानिए कि वह सिर्फ अपने वजूद को बचाए रखने की कवायद के साथ टाइम पास कर रहा है.


जिस तरह कहानियों में राजा या दैत्य के प्राण तोते में बसते थे, उसी तरह इस हुकूमत के प्राण चुनावी जीत में बसते हैं. इसलिए आगे बढ़िए, किसान आंदोलन की तर्ज पर इस सत्ता को चुनौती दीजिये और कहिए कि यदि पुरानी पेंशन स्कीम लागू नहीं होगी तो सत्ता रूपी तोते की गर्दन मरोड़ दी जाएगी. ऐलान कीजिये कि यदि पुरानी पेंशन स्कीम लागू नहीं होगी तो यह सरकार पुराने जमाने की बात हो जाएगी. फिर देखिये सरकार आपके कदमों में होगी और पुरानी पेंशन का परवाना आपके हाथ में !


-इन्द्रेश मैखुरी  

 

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2 Comments

  1. या तो पुरानी पेंशन ही मांग लो या मोदी की अंधभक्ति ही कर लें

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  2. शानदार ❤❤🕉️🕉️🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽

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