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बटुकेश्वर दत्त की जयंती पर उनकी याद

 







आज बटुकेश्वर दत्त की जयंती है. वही बटुकेश्वर दत्त जिन्होंने 8 अप्रैल 1929 में  भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेंबली में बम फेंका. बटुकेश्वर दत्त 18 नवंबर 1910 में बंगाल के बर्दवान में पैदा हुए थे.








 भगत सिंह को फांसी हुई और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास हुआ. बटुकेश्वर दत्त स्वयं को फांसी न होने से कुछ निराश थे. इसलिए भगत सिंह ने अक्टूबर 1930 में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के नाम एक पत्र लिखा.


पत्र में भगत सिंह ने दत्त को लिखा, “मुझे फांसी की सजा मिली, मगर तुम्हें उम्रक़ैद. तुम जिंदा रहोगे और जिंदा रह कर तुम्हें दुनिया को यह दिखा देना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए सिर्फ मर ही नहीं सकते,बल्कि जिंदा रह कर हर तरह की यातनाओं का मुक़ाबला भी कर सकते हैं.”


और बटुकेश्वर दत्त ने अपने साथी के इस पत्र में व्यक्त भावना का न केवल सम्मान किया बल्कि उसको हर क्षण बुलंद रखने की कोशिश की.


आजीवन कारावास की सजा मिलने के बाद बटुकेश्वर दत्त को अंडमान की कुख्यात सेल्यूलर जेल भेज दिये गए. यह अंडमान की वही सेल्यूलर जेल थी, जहां से सावरकर माफी मांग कर बाहर आए और बीते दिनों उस माफीनामे को वाजिब ठहराने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि गांधी के कहने पर सावरकर ने माफी मांगी. यह हास्यास्पद है क्यूंकि जब 1911 में सावरकर ने जब माफीनामा लिखना शुरू किया तब तक तो गांधी देश भी नहीं लौटे थे.


लेकिन उसी सेल्यूलर जेल में अमानवीय अत्याचार और  राजनीतिक बंदियों के अधिकारों के लिए दो भूख हड़तालों में बटुकेश्वर दत्त शामिल हुए. अपने साथियों शिव वर्मा, जयदेव कपूर, बिजोय कुमार सिन्हा आदि के साथ मार्क्सवादी स्टडी सर्किल चलाया.


अंडमान से 1937 में बटुकेश्वर दत्त हजारीबाग,दिल्ली और फिर पटना जेल भेजे गए. 1938 में खराब सेहत के कारण तथा गांधी एवं अन्य नेताओं के प्रयासों से वे जेल से रिहा हो गए. लेकिन उनपर शर्त थोप दी गयी कि वे ऐसे किसी संगठन का हिस्सा नहीं बनेंगे जो हिंसक गतिविधियों का समर्थक हो. क्रांतिकारी विचारधारा के राही बटुकेश्वर दत्त,ऐसी शर्तों को कहाँ मानने वाले थे ! वे जेल से छूटने के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में लग गए. मई 1939 में बटुकेश्वर दत्त की अध्यक्षता में उन्नाव में विभिन्न क्रांतिकारी समूहों का एक सम्मेलन हुआ और इसमें प्रांतीय नवयुवक संघ का गठन हुआ. इस सम्मेलन के बाद विभिन्न क्रांतिकारी समूह  और कम्युनिस्ट पार्टी, एक-दूसरे के नजदीक आए.


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बटुकेश्वर दत्त शामिल हुए और गिरफ्तार हुए. फिर वे 1947 में देश की आजादी के बाद ही जेल से रिहा हुए.


आजाद भारत के हालात और शासन प्रणाली से वे बहुत संतुष्ट नहीं थे. इसलिए उन्होंने स्वयं को राजनीति से अलग कर लिया. उनका जीवन बेहद तंगहाली और गरीबी में बीता. आजाद भारत के हुक्मरानों ने भी उनको अपेक्षित सम्मान नहीं दिया.


1964 में उन्हें कैंसर होने का पता लगा और एम्स में उनका इलाज शुरू हुआ.  20 जुलाई 1965 को वे चल बसे. उनकी इच्छा के अनुरूप उनका अंतिम संस्कार भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु के ही समाधि स्थल के पास हुसैनीवाला में किया गया.


अक्टूबर 1930 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त को लिखे पत्र में जो उनसे अपेक्षा की थी- “जिंदा रह कर यातनाओं का मुक़ाबला”-करने की,उसका दत्त ने जीवन पर्यंत निबाह किया.


बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ आजाद मुल्क का जो सपना देखा था,उसके लिए उन्होंने अपने संगठन का नाम रखा था- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन. 


यानि वह समाजवादीगणतांत्रिक मुल्क का सपना था. बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी जो आजाद हिंदुस्तान में भी अपने सपने का आँखों में लिए तंगहाली में रुखसत हो गए, उन्हें याद करने और श्रद्धांजलि देने का सबसे सही तरीका यही है कि उनके सपनों का हिंदुस्तान बनाने के लिए प्राणपण से लगा जाये.


-इन्द्रेश मैखुरी

संदर्भ :

1.  1.   https://thewire.in/history/freedom-fighter-batukeshwar-dutt-birth-anniversary

2  2.  भगत सिंह और साथियों के दस्तावेज़




  

 

 

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