प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 05 नवंबर 2021 को
केदारनाथ पहुंचे.
उनकी
यह केदारनाथ यात्रा भाजपा के अहंकार और चुनावी प्रचार की यात्रा से अधिक कुछ नहीं
है.
केदारनाथ जैसे परिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील स्थान पर भीड़ जमा करके जनसभा करना न केवल हास्यास्पद है बल्कि अपने आप में एक प्रकृति विरोधी कृत्य है.
परंतु अपने चुनावी
लाभ के लिए भाजपा किसी भी सीमा को लांघने को तैयार है. जिस तरह से प्रधानमंत्री
जैसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति से
बाढ़ निर्माण, तटबंध और पुल जैसे मामूली कार्यों को
उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करवाया गया, वह भाजपा की चुनावी
व्यग्रता को प्रदर्शित करता है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का भाषण तो सरकारी सूचना
विभाग के प्रदेश भर में लगे विज्ञापन में वर्णित उपलब्धियों का मौखिक वर्णन मात्र
था.
केदारनाथ में
दिये गए भाषणों में केवल दो ही व्यक्तियों का महिमागान हो रहा था- आदि शंकराचार्य
और नरेंद्र मोदी, वह और कुछ नहीं भाजपाई अंहकार का
प्रकटीकरण और प्रदर्शन था.
2013 की आपदा का वर्णन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री
दोनों ने अपने भाषणों में किया. लेकिन यह विडंबना है कि उस आपदा के बाद हुई तबाही
के लिए जिम्मेदार समझी गयी जिन सात जल विद्युत परियोजनाओं को उच्चतम न्यायालय ने
बंद कर दिया था, उन्हें केंद्र सरकार पुनः शुरू करवाने की कोशिश
कर रही है. यह निरंतर सिद्ध हो रहा है कि जिस बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से चार
धाम सड़क परियोजना का निर्माण चल रहा है, वह उत्तराखंड के लिए
विनाशकारी सिद्ध हो रहा है. एक तरफ 2013 का नाम लेकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश और
दूसरी तरफ तबाही की परियोजना को उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करना, यह दोहरापन नहीं तो क्या है ! केदारनाथ के लिए भी जिन परियोजनाओं की
प्रधानमंत्री ने घोषणा की,वे भारी-भरकम निर्माण की ही
परियोजनाएं हैं, जो नाजुक परिस्थितिकी वाले इस भूभाग के लिए
और विनाश को आमंत्रित करेंगी.
प्रधानमंत्री जी ने फिर “पहाड़ के पानी और पहाड़ के
जवानी को पहाड़ के काम लाने ” के जुमले को उछाला. हकीकत यह है कि भाजपा सरकार का
बना पलायन आयोग ही यह बता रहा है कि उत्तराखंड में सर्वाधिक पलायन का कारण
बेरोजगारी है.अलबत्ता मुख्यमंत्री रोजगार सृजन यानि चार साल में अपने तीन नेताओं को
मुख्यमंत्री का रोजगार देने के मोर्चे पर जरूर भाजपा ने तरक्की की है.
प्रधानमं मंत्री जी ने नचिकेता का उदाहरण देते हुए यम
से भी सवाल पूछने का उल्लेख किया, परंतु वे स्वयं प्रेस
कॉन्फ्रेंस नहीं करते ताकि सवालों का सामना नहीं करना पड़े और तमाम ऐसे विरोधी लोग
जेलों में बंद हैं, जिन्होंने उनकी सरकार को असहज करने वाले
सवाल पूछने की हिमाकत की.
यह आश्चर्यजनक है कि केदारनाथ में हुई इस जनसभा में
किसी ने उस देवस्थानम बोर्ड का नाम भी नहीं लिया जिसके खिलाफ महीनों से तीर्थ
पुरोहित और अन्य हक-हकूकधारी लामबंद हैं. बीते दिनों इस मसले पर आक्रामक रुख दिखाने वाले तीर्थ पुरोहितों ने भी
क्यूं चुप्पी साधी, वे ही बेहतर जानते होंगे !
-इन्द्रेश
मैखुरी
1 Comments
2022 के चुनाव का बिगुल बज गया इन सब क्रियाकलापों से
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