अक्टूबर के महीने में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर
सिंह धामी ने घोषणा की कि पंतनगर स्थित सिडकुल के औद्योगिक आस्थान का नाम उत्तराखंड
के दिवंगत मुख्यमंत्री नारायण दत्ता तिवारी के नाम पर होगा. जिस समय भाजपा की डबल इंजन
की सरकार के तीसरे खेवनहार पुष्कर सिंह धामी, एक दिवंगत काँग्रेसी
नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर इस औद्योगिक आस्थान का नामकरण करने की दरियादिली
नुमा उपलब्धि का बखान कर रहे थे, उससे भी महीना भर पहले से ही
इसी औद्योगिक आस्थान की एक कंपनी से निकाल बाहर किए गए, युवा
अपने रोजगार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
सिडकुल पंतनगर स्थित कंप्यूटर बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी- एचपी ने लगभग तीन महीने पहले अपना कारख़ाना बंद करके वहां कार्यरत सैकड़ों युवा कर्मचारियों को सड़क पर खड़ा कर दिया.
तब से कंपनी
द्वारा बेरोजगार किए गए ये युवा श्रम विभाग हल्द्वानी से लेकर तमाम जगहों पर प्रदर्शन
कर रहे हैं, लेकिन इनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है.
एचपी कंपनी घाटे में भी नहीं है, वह निरंतर मुनाफा कमा रही है. लेकिन मुनाफा कमा कर और उत्तराखंड में प्लांट लगाने पर मिलने वाली तमाम सहूलियतों का फायदा उठाने का बाद, यह नामी कंप्यूटर निर्माता कंपनी, अपने यहाँ काम करने वाले नौजवानों मजदूरों का भविष्य अंधकारमय बना कर निकल लेना चाहती है. श्रम कानूनों से बचने के लिए निकाले गए कार्मिकों की संख्या भी कंपनी ने कम घोषित की. तीन महीने के आंदोलन के बाद पता चल रहा है कि कंपनी ने हजार के करीब कार्मिकों को निकाल दिया और इतने कार्मिकों को निकाल कर कंपनी बंद करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति जरूरी होती है.
अपने मुख्यमंत्री की युवा अवस्था को भुनाने के लिए भाजपा नारा दे रही है- “युवा नेतृत्व, युवा सरकार.” लेकिन सिडकुल पंतनगर की एचपी कंपनी द्वारा बेरोजगार कर दिये गए युवा सवाल पूछ रहे हैं कि युवा नेतृत्व, युवा सरकार में युवा रोजगार खो रहे हैं तो यही युवा मुख्यमंत्री खामोश क्यूँ हैं ?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से यह प्रश्न इसलिए भी पूछा
जाना चाहिए क्यूंकि एक जमाने में अपनी राजनीति चमकाने के लिए इसी सिडकुल में सत्तर
प्रतिशत स्थानीय युवाओं को रोजगार देने का नारा वे उछाला करते थे. आज जब उनके मुख्यमंत्री
काल में युवाओं को एचपी कंपनी मनमाने तरीके से निकाल रही तो वे मुंह क्यूँ नहीं खोल
रहे हैं ? गौरतलब है कि एचपी कंपनी द्वारा निकाले गए ये युवा
जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले तो
उन्होंने कहा कि सारा मामला उनकी जानकारी में है. लेकिन मामले की जानकारी होने के बाद
उन्होंने क्या कार्यवाही की,इसकी जानकारी किसी को आज तक नहीं
है !
उनकी आवाज सुनी जाये,उनका रोजगार बचे, इसके लिए एचपी कंपनी द्वारा एकाएक बेरोजगार कर दिये गए युवा हर दर पर गए.
बताते हैं कि इस क्रम के वे एक टीवी वाले “भय्या जी” के पास भी गए. पर बेहद बड़बोले, उछल-कूद कर कार्यक्रम करने वाले, झल्ले से दिखने वाले
भय्या जी “कहिन” की कॉरपोरेट
के खिलाफ वो कुछ न “कहिन””, कॉरपोरेट की केवल चिलम भरें हैं भय्या
जी !
एचपी कंपनी से निकाले गए मजदूर कोई अलग-थलग मामला नहीं
है बल्कि अपने स्थापना काल से सिडकुल के तहत बने ये औद्योगिक आस्थान श्रम क़ानूनों और
मजदूरों के अधिकारों की कब्रगाह है. तमाम तरह के टैक्स में छूट और कौड़ियों के मोल जमीन
पाने वाली ये कंपनियाँ, जम कर श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करती हैं
और इन्हें बेशुमार रियायतें देने वाली सत्ता और उसका तंत्र एक बार मुंह खोल कर,इनसे यह नहीं कह पाता कि हमारे युवाओं का इस तरह शोषण मत करो. इसके उलट प्रशासन, पुलिस और सत्ताधीश, इनके कदमों में लोटते नजर आते हैं.
निश्चित ही राज्य की जमीन, बिजली,पानी एवं अन्य सुविधाएं मुफ्त में पाने वाली इन
कंपनियों को एचपी कंपनी की तरह हमारे युवाओं को शोषण करने और बेरोजगार करने की खुली
छूट कतई नहीं मिलनी चाहिए. किसी भी कंपनी को रियायतें देते समय यह अनिवार्य शर्त होनी
चाहिए कि श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने पर सब रियायतें रद्द कर, सारी धनराशि ब्याज समेत वसूली जाएगी और साथ ही यह भी इंतजाम होना चाहिए कि
एचपी कंपनी की तरह तमाम तरह की छूटों का पूरा लाभ उठाने के बाद कोई कंपनी, वहाँ काम करने वाले युवाओं को बेरोजगार करके भागती है तो उससे भी सब छूटों
का पूरा मूल्य ब्याज सहित वसूला जाये. ऐसा, कंपनियों के कदमों
में बिछी हुई सत्ता और उसका तंत्र तो करने से रहा. इसके लिए बड़ी लड़ाई की जरूरत है.
एचपी कंपनी के बेरोजगार कर दिये गए युवाओं की लड़ाई की साथ ही कंपनियों की मनमानी के
खिलाफ व्यापक संघर्ष की दिशा में बढ़ा जाना चाहिए.
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
सत्ता और उसके तन्त्र के अधिनिस्त होने वाली युवाओं की बेरीज़गारी पर लगाम लगने की सख़्त ज़रूरत है।
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