प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देहरादून में हुई सभा
उत्तराखंड के लिए कोई उम्मीद जगाने वाली सभा नहीं रही. भाजपा के लिए इसका जो भी मायना हो, लेकिन उत्तराखंड
के लिए यह निराशाजनक ही रही. जो कुछ प्रधानमंत्री ने कहा वह एक नीरस, उबाऊ बजट भाषण जैसा था.
प्रधानमंत्री का दावा था कि यह सरकार दुनिया के किसी देश
के आगे नहीं आ सकती. उधर चीन अरुणाचल प्रदेश में गांव बसा चुका है. उत्तराखंड में भी
कुछ दिन पहले बाड़ाहोती में चीन द्वारा पुल तोड़ने की खबरें आई थी. लेकिन इन मामलों पर
प्रधानमंत्री और उनकी सरकार मुंह खोलने तक का साहस नहीं करती.
गढ़वाली में बोलने का चुनावी पैंतरा इतना घिस-पिट गया है कि प्रधानमंत्री के भाषण के बारह घंटे पहले से सोशल मीडिया पर लोग, शब्दशः घोषणा कर चुके थे कि प्रधानमंत्री ऐसा बोलेंगे ! “पहाड़ी का पानी, पहाड़ी की जवानी” वाला जुमला भी प्रधानमंत्री 2014 से निरंतर घिस रहे हैं.
भाषण की नीरसता इस
बात से भी सिद्ध होती है कि भाषण के दौरान ही सभा स्थल से उठ कर लोग जाते रहे.
प्रधानमंत्री
ने कहा कि उत्तराखंड देश की कर्मभूमि है. लेकिन बीते पाँच साल में उनके डबल इंजन
ने एक ही कर्म किया और वो कर्म है- मुख्यमंत्री बदलते
रहने. पाँच साल पहले मोदी जी उत्तराखंड में विकास के लिए डबल इंजन की सरकार बनाने
का आह्वान कर गए थे. उत्तराखंड ने उनकी बात पर भरोसा किया और उनके डबल इंजन में
पाँच साल में केवल ड्राइवर ही बदलते रहे.
पाँच साल में उपलब्धियों का इस कदर टोटा है कि एक ही
सड़क के तीन टुकड़ों का अलग-अलग लोकार्पण प्रधानमंत्री को करना पड़ा ! जिस एक ही सड़क
के निर्माण का लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किया, वो चार धाम
परियोजना वर्षा ऋतु में विनाशकारी सिद्ध हुई. प्रधानमंत्री भूस्खलन के कम होने का
दावा करते रहे, लेकिन हकीकत यह है कि बनी-बनाई सड़क को चौड़ा
कर, उसे चार धाम परियोजना नाम देने के इस कारनामें में भू
स्खलन के सैकड़ों नए स्थल पैदा कर दिये हैं, जहां लोगों ने
प्राण भी गँवाये.
प्रधानमंत्री डबल इंजन में विकास का दावा करते रहे और जमीनी हकीकत यह है कि अस्पतालों की हालत खस्ता है, सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं. पलायन से गाँव के गाँव वीरान हो रहे हैं. पहाड़ के गाँव में रहने वाले सूअर,बंदर, बाघ, भालू की मार झेल रहे हैं. पूरा पहाड़ पूँजीपतियों के हवाले करने का इंतजाम 2018 में डबल इंजन की सरकार ने भूमि कानून में बदलाव करके कर दिया है.
बीते पाँच सालों में रोजगार सृजन के सारे रास्ते बंद
कर दिये गया, यहां तक कि पीसीएस की परीक्षा तक नहीं हुई. चुनाव
नजदीक देख कर युवाओं की आँखों में धूल झोंकने के लिए अब प्रतियोगी परीक्षाएं
करवाई जा रही हैं, जबकि कभी भी चुनावी आचार संहिता लग सकती
है.
उद्योगों से युवाओं को बेरोजगार किया जा रहा है.लेकिन सरकार खामोश बैठी है. पंतनगर की एचपी फैक्ट्री इसका उदाहरण है. उपनल, संविदा, आउटसोर्सिंग के नाम पर बेरोजगार युवाओं का शोषण हो रहा है और कोढ़ में खाज यह कि राज्य सरकार ने रोजगार कार्यालयों को भी आउटसोर्सिंग एजेंसी बनाने का फैसला ले लिया है.
नियमितीकरण के लिए उसी परेड ग्राउंड के आसपास
पीडबल्यूडी के संविदा इंजीनियर से लेकर कई अन्य बेरोजगार और अर्द्ध बेरोजगार
आंदोलनरत हैं. यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री की सभा के चलते इस इलाके में धारा
144 लगा कर ऐसे सारे प्रदर्शनों को प्रतिबंधित कर दिया. इस सरकार का फॉर्मूला
रोजगार देना नहीं बल्कि रोजगार की मांग करने वाले के प्रदर्शनों को छुपाना है.
प्रधानमंत्री की सभा में संवैधानिक परंपराओं का भी ख्याल नहीं रखा गया.
प्रदेश के राज्यपाल सभा स्थल पर निरंतर बैठे रहे,जबकि यह एक पार्टी विशेष की चुनाव अभियान के निमित्त सभा थी. उसी तरह प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष भी भाजपा की सभा के लिए भोजन के पैकेट के बंदोबस्त कर रहे थे.
विधानसभा अध्यक्ष भी पार्टी विशेष से ऊपर माना जाता
है.
कल के अखबारों
के मुख्य पृष्ठ पर छपे उनकी सभा के विज्ञापन का पाठ एक तरह से प्रधानमंत्री ने
भाषण के रूप में कर दिया. उत्तराखंड को विज्ञापन रूपी भाषण और भाषण रूपी विज्ञापन
से स्वयं को बाहर निकालना होगा और अपने वास्तविक सवालों पर संघर्ष में उतरना होगा.
-इन्द्रेश
मैखुरी
1 Comments
अलग अन्दाज़ के चुनाव अभियान बिगुल के साथ सौगातों की बौछार...
ReplyDelete