उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव के लिए आचार संहिता
लग चुकी है. चुनाव की घोषणा से पहले तमाम तरह के लोगों ने आंदोलन किए ताकि चुनाव की
पूर्व बेला में उनकी मांगें मान ले. इनमें बेरोजगारों और अर्द्ध बेरोजगारों के आंदोलन
थे. अर्द्धबेरोजगारों से आशय है कि जो उपनल, आउटसोर्सिंग आदि के जरिये नियुक्ति पाये हुए हैं, बेहद कम तनख्वाह
पर
काम करते हैं और कभी भी निकाले जाने का खतरा उन पर मँडराता रहता है. हालांकि ये सभी
तबके लंबे अरसे से स्थायी एवं नियमित नियुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे थे, लेकिन इनकी कहीं सुनवाई नहीं हुई और अंततः चुनावी बेला में भी बेरोजगारों
और अर्द्धबेरोजगारों के हाथ मायूसी ही लगी.
सिर्फ रोजगार की मांग करने वालों को ही भाजपा सरकार ने
मायूस नहीं किया बल्कि रात-दिन,हर घड़ी, हर
संकट में ड्यूटि करने वाले उत्तराखंड पुलिस के जवानों को भी पुष्कर सिंह धामी की सरकार
से झुनझुना ही हाथ लगा.
उत्तराखंड पुलिस
के जवानों की लंबे अरसे से 4600 ग्रेड पे दिये
जाने की मांग थी. उत्तराखंड में पुलिस के सिपाहियों की पहली भर्ती 2001 में हुई थी.
उस वक्त प्रमोशन के लिए आठ साल, बारह साल और 22 साल की समय सीमा
तय थी. भर्ती के समय सिपाहियों का ग्रेड पे दो हजार रुपये होता था. तय सीमा के हिसाब
से इसे आठ साल बाद 2400, बारह साल बाद 4600 और बाइस साल बाद 4800
किए जाने का प्रावधान था. इस समय सीमा के हिसाब से 2001 में भर्ती सिपाहियों को 2013
में 4600 ग्रेड पे मिलना चाहिए था. लेकिन उससे पहले ही यह समय सीमा 10 साल, 16 साल और 26 साल कर दी गयी. इसके हिसाब से भी उत्तराखंड के पुलिस के पहले
बैच के सिपाहियों को 2017 में 4600 ग्रेड पे का लाभ मिलना चाहिए था. लेकिन उन्हें यह
लाभ देने के बजाय यह समय सीमा फिर बढ़ा कर 10 साल, 20 साल और 30
साल कर दी गयी है. कोढ़ में खाज यह कि अब ग्रेड पे को ही सरकार द्वारा घटा कर 2800 कर
दिया गया है.
ग्रेड पे के मामले में निरंतर किए जा रहे छल को लेकर उत्तराखंड
के पुलिस कर्मियों के भीतर लंबे अरसे से असंतोष खदबदा रहा था. पुलिस के अनुशासन से
बंधे होने के चलते वे सार्वजनिक तौर पर अपनी आवाज़ भी नहीं उठा सकते हैं. हालांकि इस
मामले में प्रश्न यह है कि जब आईएएस-आईपीएस की एसोसिएशन हो सकती है तो नीचे के पदों
पर काम करने वालों की क्यूं नहीं ? सवाल यह भी है कि जब
बिहार में पुलिस कर्मी यूनियन बना सकते हैं तो उत्तराखंड में क्यूं नहीं ?
बहरहाल लंबे अरसे से पुलिस कर्मियों के भीतर खदबदाता गुस्से पिछले वर्ष फूट पड़ा और पुलिस कर्मियों के परिवार सड़कों पर उतर आए.
इससे पुलिस और राज्य
सरकार में थोड़ा हलचल तो हुई पर वह हलचल जुबानी जमा खर्च तक ही सीमित रही. डीजीपी समेत
पुलिस के आला अधिकारियों ने पुलिस कर्मियों के नाम वीडियो संदेश जारी किए. हालांकि
उन वीडियो संदेशों से भी समझ आ रहा था कि अफसरों और आम पुलिस कर्मियों के बीच दूरी
कितनी है. अगर पुलिस के आला अफसरों को अपने सिपाहियों से बात करने के लिए वीडियो संदेशों
का सहारा लेना पड़ा तो गैप तो स्पष्ट ही है !
पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस मामले में मंत्रिमंडल की उपसमिति भी बनाई गयी. अंततः कई महीनों के बाद मुख्यमंत्री को ही इस मामले में निर्णय लेने के अधिकृत कर दिया गया. चुनाव की घोषणा के कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ग्रेड पे के बजाय पुलिस कर्मियों को दो लाख रुपये देने की घोषणा की.
यह रोचक है कि मुख्यमंत्री
पुष्कर सिंह धामी, जब सिर्फ विधायक थे तो उन्होंने 16 मई
2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर बीस वर्ष की सेवा कर चुके सिपाहियों को
4800 के बजाय 2800 ग्रेड पे दिये जाने को अन्यायपूर्ण बताया था.
लेकिन जब स्वयं पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बन गए तो उन्होंने उस “अन्याय” को दुरुस्त
करने का कोई उपाय नहीं किया. बल्कि पुलिस कर्मियों का जायज हक देने के बजाय दो लाख
रुपये के झुनझुने से उन्हें बहलाने की कोशिश की.
एक पुलिस कर्मी ने कहा- ऐसा लग रहा है जैसे सरकार हमको
अधिकार के बदले रिश्वत दे रही है !
पुलिस कर्मी अपने सेवा के बदले वाजिब हक मांग रहे थे पर
अफसोस सरकार ने उन्हें बहलाने और छलने का रास्ता चुना !
-इन्द्रेश मैखुरी
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पे ग्रेड के अधिकार से और अधिक वंचित नहीं रखा जा सकता है।
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