विधानसभा चुनाव की बेला के बीच दल-बदल की चर्चा भी तेज
हो चली है. कब, कौन, किस पार्टी से किस पार्टी
में पहुँच जाएगा, कब कौन कह देगा कि फलां पार्टी तो मेरा घर है, मेरा शरीर ही अमुक पार्टी में गया था, आत्मा तो चमुक
पार्टी में ही थी, कहा नहीं जा सकता. ऐसा लगता है कि विचार सिर्फ
नाम के लिए है, सत्ता की धारा ही महत्वपूर्ण हो गयी है, जिधर सत्ता की धारा बहे, दावेदार उधर को बह निकले. दल-बदल
को कोसने वाले भी व्यक्तिगत मामलों में स्वयं को उससे ऊपर समझ लेना चाहते हैं.
जब दल-बदल कपड़े बदलने या एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने
जैसा सरल हो गया है, ऐसे में वो अतीत याद आता है, जब लोग अपने उसूलों के लिए बड़ा से बड़ा प्रलोभन ठुकराने को तैयार रहते थे.
देश की आजादी से पहले और आजादी के बाद ऐसे लोगों की एक लंबी शृंखला है, जिन्होंने सत्ता का प्रलोभन ठुकरा कर अपने उसूलों का परचम बुलंद रखा.
ऐसे ही सिद्धांतों पर अडिग योद्धाओं में एक चमकता नाम
थे, पेशावर विद्रोह के नायक चंद्र सिंह गढ़वाली. पेशावर विद्रोह के बाद विभिन्न
जेलों में रहते हुए वे कम्युनिस्टों के संपर्क में आ कर कम्युनिस्ट हो गए. पेशावर विद्रोह
के मामलों में जेल से छूटने के बाद भी चंद्र सिंह गढ़वाली के गढ़वाल प्रवेश पर प्रतिबंध
था. 1946 में काफी प्रयास के बाद चंद्र सिंह
गढ़वाली का गढ़वाल प्रवेश हो सका. इस दौरान अंग्रेजों ने देश में असेंबलियों के चुनाव
कराने का निर्णय लिया. कम्युनिस्ट पार्टी ने तय कि कॉमरेड चंद्र सिंह गढ़वाली को इन
चुनावों में खड़ा किया जाये.
गढ़वाल प्रवेश के बाद चंद्र सिंह गढ़वाली दौरे पर निकले.
श्रीनगर(गढ़वाल) में भक्तदर्शन और चंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में कॉंग्रेस के नेताओं
का एक प्रतिनिधिमंडल चंद्र सिंह गढ़वाली से मिलने आया. उन्होंने गढ़वाली जी से कहा- “आप
कॉंग्रेस में शामिल हो जायें. एमपी या एमएलए, जिसके लिए चाहें, एक जगह हम आपको दे देते हैं.आपकी कुर्बानियों के लिए गढ़वाल को आप पर गर्व
है.”
चंद्र सिंह गढ़वाली ने जवाब दिया- “मैं कम्युनिस्ट पार्टी
का मेंबर हूँ. उसे छोड़ कर कॉंग्रेस में आना मेरे लिए भारी अपराध होगा. यदि आप चंद्र
सिंह गढ़वाली पर श्रद्धा रखते हैं तो एक सीट उसके लिए छोड़ दें. मैं पार्टी की ओर से
यहां चुनाव के लिए खड़ा हो रहा हूँ. इसके बारे में महात्मा जी को भी लिख चुका हूं.”
बाकी दल-बदल करें, उछल-कूद करें, चंद्र सिंह गढ़वाली के वारिसों के लिए तो उनका यह बहादुर पुरखा साहस ही नहीं
समझौताविहीन संघर्षों की मिसाल है, दैदिप्यमान मशाल है.
कॉमरेड चंद्र सिंह गढ़वाली का पैगाम, जारी रखना है संग्राम !!
-इन्द्रेश मैखुरी
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