उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नामित होने के बाद पुष्कर
सिंह धामी, देहरादून
स्थित शहीद स्मारक गए.
यूं यह अच्छा है कि कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री नामित
होने के बाद उन शहीदों के स्मारक जाये, जिनकी कुर्बानी से यह राज्य बना और अमुक व्यक्ति
मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुँच पाया.
पर मुख्यमंत्री जी शीश नवाने मात्र से बात तो नहीं बनेगी.
सबसे विचारणीय प्रश्न तो यह है कि ये जो शहीद हुए, क्या आजतक इनके हत्यारों को सजा हुई ? मसूरी, खटीमा, मुजफ्फरनगर, श्रीयंत्र टापू गोलीकांड में से किसी एक के दोषियों को सजा हो पायी ? 22 बरस राज्य बने हो गए और उससे भी छह बरस पहले मसूरी, खटीमा और मुजफ्फरनगर के गोलीकांड हुए और राज्य बनने से पाँच बरस पहले श्रीयंत्र टापू गोलीकांड हुआ यानि कुल मिला कर 27-28 बरस बीत चुके हैं, इन जघन्य कांडों को घटित हुए. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और केंद्र में आप ही की सरकार है, मुख्यमंत्री जी पर तब भी दोषियों को सजा देने की कोई सूरत कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आती !
मुजफ्फरनगर कांड के आरोपी, देहरादून में सीबीआई
की अदालतों में चले रहे मुकदमों को देहरादून से उत्तर प्रदेश ट्रांस्फर करवा देते हैं
और हमारी सरकारें हाथ पर हाथ धरे रहती हैं. सीबीआई अदालत में गवाही देने अपने जोखिम
और खर्चे पर आंदोलनकारी उत्तराखंड से जाते हैं. मुजफ्फरनगर कांड
के दोषियों के खिलाफ मुकदमें सीबीआई अदालत में तारीखों की चक्की में दम तोड़ते रहते
हैं और उत्तरखंड में सत्तानशीन होने वाले सत्ता के मद में चूर, शहीद स्मारक पर फोटो सेशन कराते रहते हैं !
मुख्यमंत्री जी, सत्ता की कशमकश में पता नहीं आपको यह
जानने का समय मिला भी होगा या नहीं कि उन अफसरों का क्या हुआ, जो उन दमन कांडों
के लिए उत्तरदायी माने गए.
02 अक्टूबर
1994 के मुजफ्फरनगर कांड के समय मेरठ ज़ोन का डीआईजी थे बुआ सिंह. बुआ सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के सर्वोच्च
पद यानि पुलिस निदेशक तक पहुंचे. फिर एक चुनाव में बुआ सिंह
की सत्ता से निकटता के चलते चुनाव आयोग ने उन्हें पद से हटा दिया तो उन्होंने वीआरएस
ले लिया. इतना जघन्य कांड रचने के बावजूद वे न केवल नौकरी करते रहे बल्कि पुलिस के
सर्वोच्च पद पर पहुँच कर रिटायर हुए.
02 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के डीएम थे-अनंत कुमार
सिंह. इन महाशय ने उत्तरखंडी महिलाओं के साथ हुए दुराचार के बाद बयान दिया कि कोई महिला
रात के समय अकेली गन्ने के खेत में जाएगी तो उसके साथ ऐसा ही होगा.
जानते हैं, इन अनंत कुमार सिंह
का क्या हुआ ? इनका बाल तक बांका न हुआ.
कल राजनाथ सिंह जी आपको मुख्यमंत्री बनाए जाने का ऐलान
कर रहे थे, धामी जी. मैं जब भी राजनाथ सिंह को देखता हूँ तो मुझे
हमेशा अनंत कुमार सिंह और मुजफ्फरनगर कांड के बाद दिया उनका निकृष्ट दर्जे का बयान
याद आता है. जानते हैं, ऐसा क्यूँ ? मुलायम
सिंह यादव और मायावती की सरकार ने तो नहीं की अनंत कुमार सिंह पर कार्यवाही. लेकिन
जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने, अनंत कुमार सिंह को अपना प्रमुख सचिव बनाया. सीबीआई ने मुख्यमंत्री से अनंत
कुमार सिंह के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी तो मुख्यमंत्री की हैसियत से राजनाथ
सिंह जी ने अनुमति देने से इंकार कर दिया.
जानते हैं अभी कहाँ हैं- अनंत कुमार सिंह. केंद्र में
आपकी सर्वशक्तिमान सरकार आने से पहले अनंत कुमार सिंह, केंद्र सरकार में सचिव पद पर पहुँच चुके थे. बीते बरस आपकी केंद्र की सर्वशक्तिमान
सरकार ने अनंत कुमार सिंह को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानि एनजीटी में पहुंचा दिया
है.
मुजफ्फरनगर जैसा जघन्य कांड रचने वाले आप ही की सरकारों
के राज में सीबीआई से बचाए जाएँगे, प्रमोशन-दर-प्रमोशन
पाएंगे और आप शहीद स्मारक पर शीश भी झुकाएँगे, यह दोनों एक साथ
कैसे चलेगा, मुख्यमंत्री जी ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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