अंततः पत्रकार किशोर ह्यूमन जमानत पर रिहा हुए.
एक महीने पहले यानि
22 फरवरी को उनकी दो खबरों के आधार पर पुलिस ने उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की और 24 फरवरी
को वे गिरफ़्तार कर लिए गए. उनके विरुद्ध दो समुदायों के बीच द्वेष भड़काने का आरोप पुलिस
ने लगाया. यह आरोप द्वेषपूर्ण और मनगढ़ंत किस्म का है. दोनों ही रिपोर्ट्स, जिनके आधार पर
किशोर को गिरफ़्तार किया गया, उनमें जाति का उल्लेख तथ्य है, वह अपराध की हकीकत
का पहलू है. लेकिन पिथौरागढ़ पुलिस को हत्या जैसी घटना से ज्यादा जघन्य, उस घटना की रिपोर्ट
में जाति का उल्लेख लगा.
लेकिन यदि पुलिस के आरोपों को सच भी माना
गया हो तो भी किशोर ह्यूमन का एक महीने तक जेल में रहना बेहद खेदजनक है. जिन आरोपों
में उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उसमें अधिकतम सजा तीन वर्ष है. उच्चतम
न्यायालय विभिन्न मामलों में यह कह चुका है कि जिन मामलों में सजा सात साल से कम है, उनमें गिरफ्तारी की भी आवश्यकता नहीं है. लेकिन किशोर ह्यूमन के मामले में
गिरफ्तारी की तो की ही गयी, जमानत भी एक महीने में ही मिल सकी.
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत ने पहले दिन ही जमानत अर्जी खारिज कर दी.
उसके बाद जिला एवं सत्र न्यायालय में न्यायाधीश महोदय के छुट्टी पर होने और अन्य वजहों
से जमानत की अर्जी “तारीख पर तारीख” के मकड़जाल में फंस गयी.
उच्चतम न्यायालय के ख्यातिलब्ध न्यायमूर्ति वीआर कृष्णन
अय्यर ने 1978 में राजस्थान सरकार बनाम बालचंद उर्फ बाली की मामले में लिखा कि “जमानत
नियम है, जेल अपवाद.” लेकिन अफसोस कि किशोर ह्यूमन के मामले में नियम को लागू करने
में एक महीना लगा और एक महीने तक किशोर को उस जेल में रहना पड़ा, जिसे उच्चतम न्यायालय दशकों पहले अपवाद बता चुका है.
बहरहाल जमानत पर रिहाई मुबारक हो किशोर बाबू, न्याय के लिए संघर्ष तो जारी रखना होगा.
-इन्द्रेश मैखुरी
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