उत्तराखंड बनने के बाद जब राज्य में उद्योगों
के लिए सिडकुल की स्थापना हुई तो लगभग उसी समय पुष्कर सिंह धामी, भारतीय जनता युवा
मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष होते थे. उस दौर में अन्य लोगों की तरह ही पुष्कर सिंह धामी
भी सिडकुल में लग रहे उद्योगों में 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को
नियुक्त किए जाने का नारा लगाया करते थे.
समय का पहिया आगे बढ़ा. अब पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड
के मुख्यमंत्री हैं. अब वे नारा लगा रहे हैं कि सिडकुल में उच्च तकनीकि पदों पर स्थानीय
सुयोग्य लोग नहीं मिल रहे हैं, इसलिए बाहर से उच्च पदों पर नियुक्ति
करने की अनुमति वे देने जा रहे हैं !
सिडकुल की स्थापना के समय 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को
नियुक्ति का नारा लगाने से लेकर स्थानीय लोगों के उच्च पदों की योग्य न होने की बात
कहने वाला व्यक्ति एक ही है, बस व्यक्ति की राजनीतिक स्थिति और
हैसियत बदल गयी. स्थानीय लोगों की नियुक्ति के नारे से लेकर स्थानीय लोगों के उच्च
पदों के योग्य न होने की बात तक के सफर को आप उत्तराखंड के 22 वर्षों के हासिल के तौर
पर भी देख सकते हैं.
जब सिडकुल में 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार देने
की मांग उठी और तदनुरूप शासनादेश भी हुआ तो उसमें तो यह निहित ही है कि 30 प्रतिशत
अन्य राज्यों के लोगों को भी रोजगार मिलेगा. आज भी सिडकुल में लगे उद्योगों को जा कर
देखिये तो ऐसा नहीं है कि उच्च पदों पर अन्य राज्यों के लोग नहीं हैं.
तो फिर इस बयान का मन्तव्य और आधार क्या है ? अखबारों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का इस मामले में जो बयान छपा है, उसमें उन्होंने कहा कि उद्योगपतियों ने उन्हें ऐसा बताया. लेकिन क्या राज्य
की सारी मशीनरी के मुखिया, मुख्यमंत्री ने इस बात की स्वतंत्र
तस्दीक भी की ? क्या वे आंकड़ों के जरिये इस बात को स्पष्ट कर
सकते हैं ? उत्तराखंड के लोग पूरे देश में शीर्ष पदों पर हैं
तो इन उद्योगों के शीर्ष पदों पर होने के लिए ही कैसे उनकी योग्यता उड़नछू हो गयी ?
मुख्यमंत्री जी, उद्योगपति तो उत्तराखंड
में ही नहीं पूरे देश में यह चाहते हैं कि जिस राज्य में वे काम करें, उस राज्य के लोगों को वहां नियुक्त न करें. इसके पीछे का सीधा फंडा यह है
कि किसी भी राज्य में स्थानीय लोगों का उस तरह का शोषण मुमकिन नहीं होता, जैसा बाहर से आए हुए श्रमिक का होता है, जिसे स्थानीय
स्तर पर कोई नहीं पहचानता.
कल को यही उद्योगपति आपके कान में कह देंगे मुख्यमंत्री
महोदय कि आपकी सरकार ने स्थानीय लोगों को नियुक्त करने की बाध्यता तो रखी है पर ये
सारे नाकारा हैं, निकम्में हैं तो तब तृतीय और चतुर्थ श्रेणी
के पदों पर भी 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों की नियुक्ति वाला शासनादेश रद्द कर देंगे ?
जिन उद्योगपतियों के कहे को वेद वाक्य मान कर आपने स्थानीय
लोगों के उच्च पदों के योग्य न होने का निष्कर्ष निकाला, उनसे एक बार यह तो पूछते मुख्यमंत्री जी कि अन्य पदों पर स्थानीय योग्य हैं
तो क्या उनको समुचित वेतन देते हो, उन योग्य लोगों के मामले में
देश और प्रदेशों के क़ानूनों का पालन करते हो, मनमाने तरीके से
उनकी मजदूरी तो नहीं काट लेते हो, नौकरी से तो नहीं निकाल देते
हो ? जिस “युवा जोश” का आपके संदर्भ में बहुत नारा लगाया गया, वह जोश थोड़ा भी बचा हो तो जरा ये सवाल, स्थानीय लोगों
को उच्च पदों के लिए अयोग्य ठहराने वाले उद्योगपतियों से पूछ कर देखिएगा तो !
आखिरी बात यह मुख्यमंत्री जी- उद्योगपति कुछ भी कह
सकते हैं. लेकिन आप थोड़ा विचार करके देखिये कि राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर आपके
लिए यह बात शर्मिंदगी का सबब नहीं होनी चाहिए कि जिस राज्य के आप मुखिया हैं, उस राज्य में तृतीय
और चतुर्थ श्रेणी से ऊपर योग्य लोग ही नहीं हैं ? लोग तो इससे ऊपर के पदों के योग्य हैं
मुख्यमंत्री जी, लेकिन यह सोच जरूर तृतीय श्रेणी
यानि थर्ड क्लास है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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