एक ज़माना था जब यह माना जाता था कि
पृथ्वी चपटी है, मान्यता यह भी थी कि पृथ्वी सौरमंडल का केंद्र
है. आँखों से धरती सपाट ही दिखती है, इसलिए यह बात न केवल
मान ली गयी बल्कि इसे धार्मिक मान्यता भी हासिल हो गयी. लेकिन फिर दुनिया में
विज्ञान आगे बढ़ा, नयी खोजें हुई. यह कहने वाले पैदा हुए कि
पृथ्वी चपटी नहीं है गोल है. यह अपनी धुरी पर घूमती है,
सूर्य का चक्कर लगाती है, पृथ्वी जैसे और भी ग्रह हैं, जिनसे सौरमंडल बना है.
बातें ये सब वैज्ञानिक थी पर यूरोप ने धर्म के प्रमुख
गद्दी स्थल- चर्च ने इन सब को अपने विरुद्ध माना, पवित्र ग्रन्थों
के विरुद्ध माना, धर्म के विरुद्ध माना. इसे सीधे-सीधे से
विधर्म कहा गया, धर्म को खतरे में डालने वाला आचरण बताया
गया. कॉपरनिकस और गैलीलियो की किताबें प्रतिबंधित कर दी गयी. गैलीलियो को विधर्म का दोषी करार दिया गया, पहले जेल में और फिर आजीवन घर पर कैद किया गया,
ब्रुनो को जला दिया गया. यह सब किस लिए, उस खतरे से धर्म को
बचाने के लिए जो इन वैज्ञानिक विचारों से पैदा हुआ था !
भारत में केंद्रीय कानून मंत्री की हैसियत से
डॉ.भीमराव अंबेडकर महिलाओं की स्वतंत्रता, जिसमें विवाह से
तलाक लेने का अधिकार भी शामिल है और पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार के लिए
हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे. लेकिन हिन्दू धर्माचार्यों और धार्मिक
संगठनों ने हिन्दू कोड बिल को हिन्दू धर्म के लिए खतरा बताया. उन्होंने कहा कि इस
बिल के जरिये अंबेडकर हिन्दू समाज के सारे स्तंभों को ध्वस्त कर देना चाहते हैं. कुछ
ने इसे “हिन्दू समाज पर एटम बम” तक करार दिया. इस तरह महिला स्वतंत्रता की बात, हिन्दू धर्म के लिए खतरा करार दी गयी और अंबेडकर ने “गोबर का ढेर” बड़ा
करने की ऐसी कोशिशों के खिलाफ इस्तीफा दे दिया.
धर्म बड़ी नाजुक शै है. कभी-कभी वे गीत-संगीत, ग़ज़ल-कव्वाली से भी खतरे में पड़ जाता है. सुविख्यात शायर निदा फाज़ली की एक
बहुचर्चित ग़ज़ल के बोल हैं :
“अपना गम लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर तो चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये”
धार्मिक कट्टरपंथियों ने मस्जिद के दूर होने पर बच्चे
को हँसाने की बात कहने वाले बोलों को ही धर्म के लिए खतरा समझा. निदा फाज़ली साहब
जब एक मुशायरे के सिलसिले में पाकिस्तान गए तो वहां कुछ कट्टरपंथियों ने उन्हें इस
बात के लिए घेर लिया और कहा कि क्या वे बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं, जो मस्जिद दूर होने पर बच्चे को हँसाने की बात कह रहे हैं ! निदा फाज़ली
साहब ने जब दिया कि मस्जिद तो इंसान के हाथ की बनी हुई और बच्चे को खुद अल्लाह ने
बनाया है !
कुल जमा बात यह है कि धर्म का झंडा उठाए लोग
बात-बेबात कभी भी चीख-ओ-पुकार मचा सकते हैं कि धर्म खतरे में है और इसकी आड़ में
कभी मनुष्य और मनुष्यता को खतरे में डाल सकते हैं. इसलिए सावधान रहिए, मनुष्य और मनुष्यता को खतरे में न पड़ने दीजिये. मनुष्य और मनुष्यता बची
रहेगी तो बाकी सब कुछ सुरक्षित रहेगा.
प्रिय कवि वीरेन डंगवाल ठीक ही लिखते हैं :
“दुनिया देख चुके हो यारो
एक नजर थोड़ा-सा अपने जीवन पर भी मारो
पोथी-पतरा, ज्ञान-कपट से बहुत
बड़ा है, मानव
कठमुल्लापन छोड़ो उस पर भी तो तनिक विचारो ”
काज़ी नज़रुल इस्लाम की बात, इस सिलसिले में मुकम्मल बात है :
“मनुष्य से घृणा करके
कौन लोग कुरान,वेद,बाइबल
चूम रहे हैं बेतहाशा
किताबें और ग्रंथ छीन लो
जबरन उनसे
मनुष्य को मार कर
ग्रंथ पूज रहा है ढोंगियों का दल
सुनो मूर्खो
मनुष्य ही लाया है ग्रंथ
ग्रंथ नहीं लाया किसी मनुष्य को ”
-इन्द्रेश
मैखुरी
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