अखबार बता रहे हैं कि डॉ.निधि मामले
में आज से जांच शुरू होगी. हालांकि यह बात ही थोड़ी अटपटी और आधी-अधूरी है. मामला सिर्फ
डॉ.निधि का ही नहीं है, मामला स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज कुमार पांडेय
और उनकी पत्नी का भी है. मामला तो जिस पद पर बैठे हैं, उसकी शक्तियों
के उपयोग-दुरुपयोग का भी है.
बहरहाल जांच हो रही है. तो जांच के बिंदु भी स्पष्ट होने
चाहिए कि जांच क्या होगी, किसकी होगी, कैसी
होगी. हम यह समझते हैं कि जांच में निम्नलिखित बिंदुओं पर गौर किया जाना चाहिए :
· # क्या बहैसियत स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज
कुमार पांडेय को यह अधिकार था/है कि वे दून मेडिकल कॉलेज या किसी भी
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को यह निर्देश कर सकें कि प्राचार्य, उनकी पत्नी के उपचार के लिए डॉक्टर, उनके घर भेजें ?
· # दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे कि ओपीडी में मरीजों को देखने से अधिक जरूरी स्वास्थ्य
सचिव की पत्नी के स्वास्थ्य की जांच थी ?
· # दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने स्वास्थ्य
सचिव की पत्नी की जांच के लिए डॉक्टर का चयन किस आधार पर किया ?
· # जब डॉ.निधि उनियाल, स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज कुमार पांडेय की पत्नी पर अभद्रता का आरोप लगा कर
उनसे घर से वापस लौट आईं तो उन्हें, स्वास्थ्य सचिव की पत्नी
से माफी मांगने के लिए किसने कहा ? किसके निर्देश पर दून अस्पताल
के सीएमएस, स्वास्थ्य सचिव के घर गए ?
· # स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज कुमार पांडेय
को यह भान कब हुआ कि अल्मोड़ा के सोबन सिंह जीना मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर
की अत्यंत आपातकालीन आवश्यकता है ? क्या सोबन सिंह जीना
मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त करने की प्रक्रिया चलायी जा चुकी थी ? क्या उस प्रक्रिया से योग्य प्रत्याशी
नहीं मिले थे ? इसलिए दूसरे मेडिकल कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर
का संबद्धिकरण ही एकमात्र रास्ता बचा था ?
· # डॉ.निधि उनियाल का स्वास्थ्य सचिव की पत्नी के साथ
यदि विवाद नहीं हुआ होता या वे माफी मांग लेती तो भी क्या अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के
संचालन के लिए उनकी ऐसी ही आपातकालीन आवश्यकता होती ?
जांच होनी तो इन्हीं बिंदुओं के इर्दगिर्द
चाहिए पर जो जांच में एक पक्ष हैं यानि स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज कुमार पांडेय, वे उसी कुर्सी पर बैठ रहेंगे, जिस कुर्सी पर उनके बैठे
होने के चलते यह सारा विवाद पैदा हुआ, तो जांच निष्पक्ष कैसे
होगी ? उन्हें हटाना
तो दूर छुट्टी भेजने का साहस भी उत्तराखंड सरकार नहीं जुटा सकी. यूं भी जिनकी पत्नी
इतनी गंभीर बीमार हों कि ओपीडी से डॉक्टर को उठा कर उपचार के लिए भेजना पड़े तो ऐसी
पत्नी के पति को तो छुट्टी दी ही जानी चाहिए थी !
जो एनएच 74 के घोटाले में निलंबित होने
के बावजूद शासन-सत्ता की आँख के तारे बने बैठे
हैं, ऐसी छोटी-मोटी
जांच से उनका भला क्या बिगाड़ने वाला है ?
-इन्द्रेश
मैखुरी
0 Comments