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प्रो.रतन लाल की गिरफ्तारी और जमानत

 









दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.रतन लाल को कल देर रात गिरफ्तार किया गया, उन्हें आज दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने जमानत दे दी.










 गौरतलब है कि बीते दिनों बनारस में एक अदालत द्वारा ज्ञानव्यापी मस्जिद का सर्वे करने के आदेश के बाद दावा किया गया कि वहां शिवलिंग मिला है. उसका एक फोटो भी सोशल मीडिया में वाइरल हुआ था. उस फोटो को देख कर, उस आकृति को शिवलिंग बताए जाने पर प्रो.रतन लाल ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी की. प्रो.रतन लाल की टिप्पणी को निरपेक्ष भाव से पढ़ा जाए तो समझ में आएगा कि वह शिव पर टिप्पणी न हो कर, उस आकृति को शिवलिंग बताने वालों पर तंज़ है.


लेकिन हम ऐसे समय में जी रहे हैं जबकि धार्मिक आस्थाओं वाले,अपनी आस्थाओं के आहत होने हेतु सदैव प्रस्तुत हैं. इसलिए प्रो.रतन लाल पर भी धार्मिक आस्थाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए उनके विरुद्ध दिल्ली पुलिस से शिकायत की गयी. दिल्ली पुलिस ने भी इस मामले में तत्काल एफ़आईआर दर्ज कर ली और कल रात प्रो.रतन लाल को गिरफ्तार कर लिया.


प्रो.रतन लाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध रात में ही आइसा व अन्य छात्र संगठनों से जुड़े छात्र, बहुजन एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी आदि दिल्ली पुलिस के मौरिस नगर स्थित साइबर सेल पहुंचे, जहां प्रो. रतन लाल को रखा गया था. 










सुबह दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा), आइसा और अन्य संगठनों की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया. 











 इसमें बड़ी तादाद में शिक्षक, बहुजन एक्टिविस्ट, छात्र,बुद्धिजीवी आदि शरीक हुए.









दिल्ली के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने प्रो.रतन लाल ने जमानत दे दी. जमानत का आदेश करते हुए  मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट सिद्धार्थ मलिक ने कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की, जिन्हें न्याय और लोकतंत्र के हक में समझा जाना चाहिए.











 मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट सिद्धार्थ मलिक ने अपने जमानत आदेश में लिखा कि “भारत 130 करोड़ लोगों का देश है और किसी विषय के 130 करोड़ दृष्टिकोण और धारणाएं हो सकते हैं. किसी एक व्यक्ति द्वारा भावनाओं को आहत महसूस करना, पूरे समूह या समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं माना जा सकता है बल्कि आहत भावनाओं संबंधित ऐसी शिकायत को तथ्यों/परिस्थितियों के सम्पूर्ण आलोक में देखा जाना चाहिए.”


इस बात को और विस्तार देते हुए  मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने लिखा कि “अधोहस्ताक्षरी निजी जीवन में हिन्दू धर्म का गर्वपूर्ण अनुयायी है और उक्त पोस्ट को अरुचिकर और एक विवादास्पद विषय पर अनावश्यक टिप्पणी कहेगा. दूसरे व्यक्ति के लिए यही पोस्ट शर्मनाक हो सकती है, लेकिन दूसरे समुदाय के प्रति घृणा की भावनाएँ भड़काने वाली न हो. इसी तरह अलग-अलग लोग, पोस्ट को, बिना आहत हुए, अलग-तरीके से देख सकते हैं और इस बात के लिए अफसोस  भी कर सकते हैं कि बिना दुष्परिणामों को समझे हुए आरोपी ने एक गैरज़रूरी टिप्पणी कर दी.”


मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने लिखा कि पोस्ट भले ही दोषपूर्ण हो पर विभिन्न समुदायों के बीच घृणा फैलाने का प्रयास करने की कोशिश नहीं करती. यह कहते हुए पचास हजार रुपये की जमानत राशि के साथ अदालत ने प्रो.रतन लाल को जमानत दे दी.


न्यायालय का फैसला और उसमें की गयी टिप्पणी इस बात को इंगित करती हैं कि अप्रिय होते हुए भी सोच और अभिव्यक्ति की भिन्नता पर बंदिश लगाने की कोई भी कोशिश स्वीकार्य नहीं हो सकती.


-इन्द्रेश मैखुरी

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1 Comments

  1. भावनाएं न हुई शीशा हो गया जो बात बात में टूटा चला जा रहा है।

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