बड़ा कन्फ़्यूजन है भाई ! पहले दिन खबर आई कि उत्तराखंड
के पुरुष शराब पीने में सबसे आगे हैं. दूसरे दिन खबर आई कि उत्तराखंड में शराब की दुकानें
नहीं खुलवा पाने वाले अफसरों का वेतन रोकने का आदेश दिया गया.
पहली खबर पढ़कर ऐसा लगा, जैसे कि पूरे देश के पुरुषों को एक जगह इकट्ठा किया गया हो, उस जगह पर चौतरफा शराब की नदियां बह रही हों, बाकी देश
के पुरुष सोच ही रहे हों कि वे कहाँ से आचमन शुरू करें और तब तक अपने उत्तराखंडी भाई
लोगों ने शराब के दरिया में गोता लगाया और पूरा दरिया ही सोख लिया ! देश के बाकी पुरुष सिर्फ गला ही भिगा पाये और उत्तराखंडी
भाई लोग सारा माला उड़ा आए !
लेकिन अगले दिन ये दूसरी खबर हैरान करती है कि उत्तराखंड
में शराब की दुकान न खुलवा पाने के लिए अफसरों के वेतन रोकने की नौबत आ गयी ! बताइये, हद है, काहिली की, उत्तरखंडी पुरुषों
ने देश में शराब पीने में टॉप कर दिया है और ये अफसर लोग, ऐसे
टॉप-अन-टॉप भाई लोगों के लिए शराब की दुकान तक नहीं खुलवा पा रहे हैं. अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई यानि मांग और
आपूर्ति का नियम होता है. मांग में हमारे भाई,बंधु,सखा पूरे देश को पछाड़ रहे हैं और सप्लाई की हालत यह है कि वो खुद ही पिछड़ी
हुई है ! ऐसे कैसे होगा देश-प्रदेश का विकास !
प्रदेश के विकास के लिए चिंतित हर संवेदनशील नागरिक को
अफसरों की इस काहिली से चिंतित होना चाहिए. स्कूल में मास्टर नहीं, अस्पताल में डाक्टर नहीं- ये चलेगा,स्कूलों पर ताला पड़ जाये, यह स्वीकार है, लेकिन शराब की दुकान पर ताला किसी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता. रोजगार
नहीं है, भर्ती न हो, लेकिन गला तर करने
में कोई कमी, किसी हालत में स्वीकार नहीं होनी चाहिए !
बीते दिनों खबर आई कि भारत, हैप्पीनेस इंडेक्स यानि खुशी सूचकांक में पिछड़ गया. अरे पिछड़ेगा नहीं देश
जब खुशी के द्वार खोलने वाली दुकानों पर ताला पड़ा रहेगा.
निक्कमें अफसरो, एक बार प्रधानमंत्री
ने कहा कि अगली सदी उत्तराखंड की होगी और तब से निरंतर उसको च्युइंग गम के तरह चबा
रहे हैं, तब भी तुम्हारी समझ में नहीं आया कि सदी के उत्तराखंड
के होने का रास्ता मय से हो कर जाता है. देश भर में मय सेवन का यह कीर्तिमान जो उत्तरखंडी
पुरुषों ने रचा है, वह प्रधानमंत्री के बोल और मुख्यमंत्री द्वारा
उसको च्युइंग गम की तरह चबाने के सूत्र की दिशा में बढ़ा हुआ कदम है. तुम शराब की दुकानें
न खुलवा कर अगली सदी को उत्तराखंड की होने के गुरुत्तर लक्ष्य में बाधा पैदा कर रहे हो. आम तौर पर सरकारी कार्य में
बाधा पैदा करने का जो मुकदमा,सरकार विरोधियों पर दर्ज होता है,वह तो इन अफसरों पर दर्ज होना चाहिए !
कुछ तो नेताओं से सीखो, नाकारा अफसरो.
अभी फरवरी के महीने में विधानसभा का चुनाव हुआ. देखा तुमने, नेताओं
ने घर-घर का हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ाने में, अगली सदी, उत्तराखंड की बनाने में कितनी मेहनत की ! बारिश,बर्फ
सबको पार करके, सारी बाधाओं को तोड़ करके आखिरी रात तक मेहनत की
कि लोग “एंजॉय” कर सकें, उनकी खुशी का सूचकांक कुलांचें भर सके
! अभी चंपावत में फिर लोगों के “एंजॉय” करने का भरपूर इंतजाम होगा, उनका हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ाने के पुरजोर प्रयास होंगे ! ऐसा तो करना ही होगा, बिना मय के वैतरणी को तैरे हुए, कौन सत्ता के बैकुंठ
तक पहुँच सका है, भला ! डेनिस से हिलटॉप तक सारी कोशिश तो मय
की वैतरणी में गोता लगा कर सत्ता के बैकुंठ तक पहुँचने के लिए ही थी.
मैं तो कहता हूं सरकार कि अकेले इन आबकारी वालों के बस
का नहीं, ऐसा करो कि सिखाई से लेकर खुदाई तक, सारे विभागों को
पहले राज्य का हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ाने के काम पे लगा दो. हाथ को काम हो न हो, रहने को मकान चाहे न हो, पर गांव-गांव, गली-गली मय की दुकान हो ! टॉप पर आकर हमारे पुरुषों ने बता दिया है कि मय
ही वह मार्ग है, जिस पर चल कर इस सदी का अलगा दशक उत्तराखंडमय
होगा ! ध्यान रहे, एक भी गिच्चा छूटा, सदी
टॉप करने का इच्छा चक्र टूटा !
-इन्द्रेश मैखुरी
0 Comments