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क्या चुनाव मशीनरी ने मुख्यमंत्री के सामने समर्पण कर दिया है ?

 








उत्तराखंड में फरवरी महीने में चुनाव हुए. जनवरी के आखिरी में होने वाले नामांकन की प्रक्रिया के दौरान व्यवस्था बड़ी चाक-चौबंद नजर आती थी. नामांकन कक्ष के अंदर दो-तीन लोगों से अधिक नहीं जा सकते थे. नामांकन जिस कलेक्टरेट में हो रहा था, उसके परिसर में भी प्रत्याशी के अलावा दो से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था. नामांकन कक्ष के बाहर ही फोन रखवा लिए जा रहे थे. पत्रकारों को फोटो खींचने के लिए नामांकन कक्ष में आने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही थी. नौकरशाही की कड़ाई के प्रदर्शन वाले वे चुनाव निपट गए.


इस बीच उत्तराखंड के चंपावत में पुनः उपचुनाव हो रहा है. इसकी वजह यह कि पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव हार गए, लेकिन भाजपा आलाकमान ने उन्हें इसके बावजूद उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया. उनके लिए चंपावत से चुने गए भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने इस्तीफा दिया और अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी वहां से लड़ रहे हैं.


लेकिन इस उपचुनाव में लगता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान वाली कड़ाई और अफ़सरी तेवर सिरे से गायब हैं.


09 मई 2022 को जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, चंपावत में नामांकन करने पहुंचे तो नामांकन की प्रक्रिया के लिए नियुक्त रिटर्निंग अफसर समेत सबकी भाव-भंगिमा ऐसी थी, जैसे वे मुख्यमंत्री के आने से बड़ा उपकृत महसूस कर रहे हों. इसलिए मुख्यमंत्री पर नामांकन के दौरान किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी.


नामांकन स्थल पर आने से लेकर नामांकन कक्ष के अंदर प्रवेश करने तक, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल से लगातार लाइव चलता रहा. किसी ने उस लाइव को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया, किसी अधिकारी ने नहीं कहा कि नामांकन कक्ष के अंदर आप फोन नहीं ले जा सकते, लाइव नहीं कर सकते. लाइव चलने की इंतहा यह थी कि नामांकन कक्ष में कुर्सी पर बैठे पुष्कर सिंह धामी का लाइव चल रहा था और उनके शौचालय में प्रवेश करने और बाहर निकलने का भी सीधा प्रसारण हुआ.










प्रश्न यह है कि क्या नामांकन कक्ष के अंदर से इस तरह के लाइव प्रसारण की अनुमति है ? यदि हाँ तो जनवरी 2022 में नामांकन के दौरान क्यूँ रोका जा था और यदि नहीं तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल से ऐसा लाइव कैसे किया जा सका, किसी प्रशासनिक या पुलिस अफसर ने इसे रोका क्यूं नहीं ?


चुनावी आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने की इंतहा यह थी कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गले में भाजपा के चुनाव चिन्ह-कमल का फूल वाला गमछा डाले हुए थे. 







पहले-पहल जब उनका कमल के फूल वाले गमछे के साथ रिटर्निंग अफसर के साथ नामांकन फॉर्म पकड़ा फोटो साझा हुआ तो मुख्यमंत्री और भाजपा समर्थकों ने इसे फोटोशॉप करार दिया क्यूंकि एक दूसरा फोटो भी साझा हुआ था, जिसमें मुख्यमंत्री रिटर्निंग अफसर को नामांकन पत्र दे रहे हैं और उनके गले में फूल-मालाएँ दिख रही हैं, कमल के फूल वाला गमछा नहीं !










हकीकत यह है कि ये दोनों ही फोटो असली हैं, इनमें से कोई भी फोटोशॉप की हुई नहीं है. इस बात को समझना हो तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल से किए गए लाइव को शुरू से अंत तक देखिये, सारा मामला समझ में आ जाएगा.



मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फेसबुक पेज से हुए लाइव का लिंक :  https://fb.watch/cUFMd0fGO4/




मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ट्विटर हैंडल से हुए लाइव का लिंक :

https://twitter.com/pushkardhami/status/1523544741974929408?t=aRsxmw6Uqnz0bj5QZNAGzg&s=19




मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब नामांकन कक्ष में गए तो उनके गले में मालाएँ थी और उन्होंने जाते ही रिटर्निंग अफसर के हाथ में फॉर्म थमाया. उस समय उनका माला के साथ फोटो खिंच गया. नामांकन की बात साझा करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया पर यही फोटो साझा किया.


  लाइव वीडियो को देख कर पता चलता है कि रिटर्निंग अफसर नामांकन फॉर्म की जांच कर रहे थे, मुख्यमंत्री वहीं कुर्सी पर बैठे हुए थे. फिर मुख्यमंत्री को शौचालय जाने की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने मालाएँ उतारी. मालाओं के नीचे कमल के फूल वाला गमछा था. बाद में जब वहां मौजूद फॉटोग्राफरों के हुजूम ने मुख्यमंत्री से नामांकन फॉर्म के साथ फोटो खिंचवाने को कहा तो कमल के फूल वाले गमछे के साथ ही रिटर्निंग अफसर के हाथ में फॉर्म पकड़े हुए फोटो खिंचवा दिया. मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ने वाले कैलाश गहतोड़ी ने यही फोटो फेसबुक पर साझा किया.








यह आश्चर्यजनक है कि तीसरी-चौथी बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे और दो बार विधायक रहे, मुख्यमंत्री को यह नहीं मालूम कि चुनाव चिन्ह के साथ नामांकन कक्ष में प्रवेश नहीं करते. लेकिन इस से अधिक आश्चर्यजनक यह कि न केवल नामांकन बल्कि आदर्श आचार संहिता का अनुपालन सुनिश्चित करवाने के लिए तैनात एसडीएम ने एक बार भी इस बात पर आपत्ति नहीं की.


अफसरशाही का यह रीढ़ विहीन आचरण ही बहुत सारी अराजकताओं की जड़ है. अफसरशाही उपचुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री के सामने इस तरह नतमस्तक हो जाएगी तो क्या उससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने या फिर किसी भी मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष हो कर आचरण करने की अपेक्षा की जा सकती है ?


-इन्द्रेश मैखुरी

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