प्रति,
श्री
सतपाल महाराज जी,
मा.
पर्यटन एवं लोकनिर्माण मंत्री
उत्तराखंड शासन,देहरादून.
महोदय,
लगभग
15 दिन पहले कर्णप्रयाग नगर के एक छोर पर भूमि विवाद हुआ. एक स्थानीय युवक का दावा
था कि भूमि उनकी पैतृक संपत्ति है. उक्त युवक ने यह भी आरोप लगाया है कि अपनी भूमि
पर दावा करने पर उसके साथ मारपीट की गयी.
उक्त युवक के बुलाने पर कर्णप्रयाग के तहसीलदार,पटवारी आदि मौके पर आए. जिस जमीन पर
विवाद था, उस स्थल का सरकारी नक्शा निकाला गया. नक्शे में उक्त भूमि के बगल की भूमि
तो स्थानीय युवक की पैतृक भूमि निकली, लेकिन जिस भूमि पर
युवक दावा कर रहा था, वह भूमि राजस्व अभिलेखों के अनुसार
उत्तराखंड सरकार की है.
परंतु आप सोच रहे होंगे कि यह जमीन के झगड़े की कहानी
में आपको क्यूं सुना रहा हूँ ? ऐसा इसलिए महोदय, क्यूंकि जाने-अंजाने उक्त विवादास्पद भूमि के मसले में आप भी कदम रख चुके
हैं.
महोदय, 21 मई 2022 को चमोली जिले के दौरे पर कर्णप्रयाग में आप एक ही कार्यक्रम में शामिल हुए.
उक्त
कार्यक्रम को घोषित तौर पर वटशनि मंदिर का जीर्णोद्धार और स्थापना कार्यक्रम, कहा गया. यह वही स्थल है, महोदय, जिसका जिक्र भूमि विवाद के संबंध में इस पत्र में ऊपर किया जा चुका है.
जिस चबूतरे पर शनि देव की मूर्ति रखी गयी है, पखवाड़े भर पहले, उसी चबूतरे पर राजस्व नक्शा रख कर कर्णप्रयाग के तहसीलदार महोदय और अन्य राजस्व
कर्मचारियों ने हमारे सामने ही स्थानीय युवक को बताया था कि उक्त जमीन, उसकी पैतृक संपत्ति नहीं बल्कि सरकार की जमीन है. जिस दिन यह बात हुई, उस दिन चबूतरा ताजा-ताजा बना था. उसके हफ्ते भर बाद उस पर रंग-रोगन नजर
आया. जिस दिन मौके पर नाप-झोख हुई थी और राजस्व रिकॉर्ड में भूमि सरकार की होने की
बात हुई थी, उसी दिन मौके पर मौजूद तहसीलदार महोदय से मैंने
कहा था कि अब तो राजस्व रिकॉर्ड से सिद्ध है कि भूमि सरकार की है तो इस पर यह
निर्माण सरकारी भूमि का अतिक्रमण है. अतः इसे खाली कराना आपकी(तहसीलदार महोदय की)
ज़िम्मेदारी है. मैंने उनसे निवेदन किया था कि चबूतरे पर रखी मूर्ति और अन्य
धार्मिक वस्तुओं को सम्मानजनक तरीके से अन्यत्र रखवा कर, वे
चबूतरा हटवाने की कार्यवाही अमल में लाएँ. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
महोदय, क्या राज्य के
कैबिनेट मंत्री के तौर पर आपका, किसी स्थल पर आना, जो कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर के निर्मित हो,
नैतिक एवं विधिक रूप से उचित है ? क्या यह सरकारी भूमि पर
अतिक्रमण को मान्यता एवं वैधता प्रदान करना नहीं है ? यह
बेहद अफसोसजनक है, महोदय कि जिन्होंने सांसारिकता से विरत
होने के लिए सन्यास ले लिया है, वे सन्यासी चोला धारण करके
सरकारी भूमि पर कब्जा करते हैं और उस कब्जे को जबरन वैधता प्रदान करवाने के लिए एक
माननीय मंत्री को उसके उद्घाटन में ले आते हैं.
महोदय, एक तरफ तो पूरे देश
में बुलडोजर आपकी पार्टी और सरकारों का नया प्रतीक चिन्ह बन गया है, जिसके सहारे बरसों-बरस से किसी जगह पर बसे हुए गरीबों को अतिक्रमण हटाने
के नाम पर उजाड़ा जा रहा है. दूसरी तरफ चंद दिन पहले, सरकारी
जमीन पर किए गए कब्जे को आपके जरिये ही पक्का करने की कोशिश की गयी ! महोदय, क्या यह विचित्र विरोधाभास नहीं है ?
मैं नहीं जानता महोदय कि आप उस जमीन के सरकारी होने
के संदर्भ में अवगत थे या नहीं थे. अगर नहीं थे तो इससे आप समझ सकते हैं कि
प्रशासनिक मशीनरी कैसे काम कर रही है. जब उक्त मंदिर के उद्घाटन का कार्यक्रम तय
हुआ होगा तो यह प्रशासनिक मशीनरी के पास भी पहुंचा होगा और अभिसूचना के लोगों के
पास भी पहुंचा होगा. अगर किसी ने आप तक यह सूचना पहुंचाने की कोशिश नहीं की कि जिस
जगह का आप उद्घाटन करने जा रहे हैं, वह सरकारी जमीन पर
अतिक्रमण करके बनाया गया है तो यह अत्यंत गंभीर मामला है,
महोदय. या तो पूरी प्रशासनिक मशीनरी अतिक्रमण वाले व्यक्ति के प्रभाव में है या
सरकारी ज़मीनों पर अवैध अतिक्रमण होने से उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता. दोनों ही
स्थितियाँ अत्यंत गंभीर और राज्य के लिए घातक हैं.
महोदय,उक्त तमाम बातों के
आलोक में आपसे निवेदन है कि जिस तरह से सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण को आपके
जरिये ही वैध करवाने की कोशिश की गयी, उसके विरुद्ध
कार्यवाही का निर्देश जारी करने की कृपा करें, अवैध अतिक्रमण
को हटाने में असफल एवं इस संदर्भ में आपको सही समय पर सूचना न पहुंचाने वालों के
खिलाफ भी उचित कार्यवाही का निर्देश जारी करने की कृपा करें और सरकारी भूमि पर
अवैध अतिक्रमण को तत्काल हटाया जाये.
सधन्यवाद,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश
मैखुरी
गढ़वाल सचिव
भाकपा(माले)
प्रतिलिपि :
1. 1. श्रीमान मुख्यमंत्री महोदय, उत्तराखंड शासन, देहरादून
22.
श्रीमान मुख्यसचिव महोदय, उत्तराखंड, देहरादून
3 3. श्रीमान महानिदेशक महोदय, उत्तराखंड पुलिस, देहरादून
44. श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,चमोली, गोपेश्वर.
55. पुलिस अधीक्षक महोदया, चमोली, गोपेश्वर
66. श्रीमान उपजिलाधिकारी महोदय, कर्णप्रयाग
(
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