बड़ी तादाद में देश भर में युवा भारतीय सेना में जाने के लिए तैयारी करते हैं. अभी कुछ महीने पहले पत्रकार विनोद कापड़ी द्वारा दिल्ली में मैकडोनाल्ड में काम करके रात में दस किलोमीटर दौड़ लगाने वाले अल्मोड़ा के युवा प्रदीप मेहरा का वीडियो साझा किया था.
ऐसे युवा उत्तराखंड समेत देश भर में दौड़ लगा रहे हैं, सेना में भर्ती हो इसके लिए हर मुमकिन तैयारी कर रहे हैं. लेकिन कोरोना के
नाम पर दो साल से सेना में भर्ती बंद है.
सेनाओं में दो साल से भर्ती पर लगी रोक का मसला धीरे-धीरे
तूल पकड़ रहा है. 30 अप्रैल 2022 को हरियाणा के भिवानी में सेना में भर्ती के इच्छुक
युवा ने उम्र अधिक हो जाने के चलते आत्महत्या कर ली. इस युवा ने अपने सुसाइड नोट में
लिखा “बापू, इस जनम में तो नहीं बन सका,
अगला जनम लूँगा तो फौजी जरूर बनूँगा !”
सेना में भर्ती पर लगी इस रोक के खिलाफ युवा अकेले-अकेले
जूझने के बजाय सामूहिक लड़ाई में भी उतरना शुरू हो गए हैं. बिहार में विभिन्न स्थानों
पर युवाओं ने सेना में भर्ती की बहाली के लिए प्रदर्शन किया.
भाकपा(माले) के अगियांव से विधायक कॉमरेड मनोज मंजिल की अगुवाई में सैकड़ों की तादाद में युवा
सड़कों पर उतरे और उन्होंने बीते दो वर्षों से सेना में भर्ती पर लगी रोक
हटाने की मांग की. सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के साथ युवा विधायक
कॉमरेड
मनोज मंजिल ने भी लगभग दस किलोमीटर दौड़ लगा कर सेना में भर्ती तत्काल शुरू किए जाने
की मांग की.
बिहार विधानसभा में भी कॉमरेड मनोज मंजिल इस मसले
को उठा चुके हैं.
सेना में भर्ती पर लगी रोक हटाने का प्रदर्शन सिर्फ
बिहार में ही नहीं हुआ. उत्तराखंड
के अल्मोड़ा
में भी सेना में भर्ती पर लगी रोक हटाने के लिए बीते रोज प्रदर्शन हुआ.
ऐसा नहीं है कि सेना में भर्ती पर लगी इस रोक से सिर्फ
फौज में भर्ती होने के इच्छुक युवा ही त्रस्त हैं. स्वयं फौज भी भर्ती पर लगी इस रोक
का दबाव महसूस कर रही है.
अप्रैल के महीने में अंग्रेजी अखबार- हिंदुस्तान टाइम्स
में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि इस समय भारतीय सेना में 120000 सैनिकों की कमी है.
यह कमी पाँच हजार सैनिक प्रति माह की दर से बढ़ रही है. कोविड काल से पहले सेना हर साल
औसतन 100 भर्ती रैलियाँ करती थी. कोरोना काल के पहले सेना ने 2018-19 में 53431 युवाओं
को भर्ती किया और 2019-20 में 80572 युवा भर्ती हुए. तब से यह संख्या शून्य है.
हिंदुस्तान टाइम्स की उक्त रिपोर्ट ने सेना के एक अफसर
के हवाले से लिखा कि यदि सेना में भर्तियाँ आज शुरू हो जाती हैं तो भी दक्ष सैनिकों
की प्राप्ति होने में दो या तीन वर्ष का समय लगेगा. इतना समय सैनिकों
के विभिन्न तरह के प्रशिक्षण पर लगता है.
सेना के नाम पर जो लोग देश की सत्ता में आए, जो देश की जनता की हर तकलीफ की तुलना को सेना द्वारा झेली जानी वाली दुश्वारीयों
से करते रहे हैं, यह विचित्र है कि वे युवाओं के सेना में जाने
के सपने पर बीते दो सालों से कुठराघात कर रहे हैं. बाकी सब चीजें सामान्य तरीके से
चलने लगी हैं तब कोरोना के नाम पर सेना में भर्ती पर रोक युवाओं के साथ छल है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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