आजकल देश में खुदाई अभियान चल रहा है. खोद-खोद कर
हिंदू धर्मस्थल खोजने की होड़ मची है. वे हर ढांचे को खोद कर उसके नीचे अपने देवता खोजना
चाहते हैं. खुदाई अभियान के जो “बौद्धिक प्रमुख” हैं, वे तो दुनिया के किसी भी कोने का नाम तोड़-मरोड़ करके सिद्ध कर देते हैं कि
उसका हिंदुओं और हिंदू देवी-देवताओं से संबंध है.
लेकिन ऐसा नहीं कि अपने देवता खोजने की यह कोशिश सिर्फ
भारत तक ही सीमित है, बल्कि सात समंदर पार अमेरिका में भी ऐसी
कोशिशों के किस्से हैं. अमेरिका में सैन फ्रेंसिस्को शहर के
एक पार्क का किस्सा इस मामले में बेहद रोचक है.
उन्नीस सौ नब्बे के दशक में अमेरिका के सैन फ्रेंसिस्को शहर के गोल्डन गेट पार्क में हिंदू धर्मावलंबियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया. वहां मौजूद एक
चार फुट ऊंचे पत्थर, जिसे अमेरिकी मीडिया ने बुलेट शेपड यानि
गोली के आकार का बताया, हिंदू धर्मावलंबी, शिव लिंग की तरह पूजने लगे.
प्रश्न खड़ा हुआ कि यह “शिव लिंग” वहां आया कहाँ से ? हिंदुओं के लिए यह आँख बंद करके मान लेने वाला चमत्कार था. लेकिन सैन फ्रेंसिस्को
वाले और वहाँ का प्रशासन भला ऐसा क्यूँ मानता ?
जांच करने पर पता चला कि यह पत्थर एक पार्किंग बैरियर
यानि पार्किंग अवरोध है, जो पैदल चलने वालों को वाहनों से बचाने
के लिए सड़क पर लगाया गया था. फिर एक दिन, एक क्रेन ऑपरेटर ने
उसे वहां से उठा कर पार्क के कोने में फेंक दिया. उसे नयी क्रेन मिली थी और यह देखने
के लिए कि वह कैसे काम करती है, उसने इस पत्थर को पार्क के कोने
में फेंक दिया. हिंदुओं ने देखा तो वे इस पार्किंग बैरियर को शिव लिंग की तरह पूजने
लगे. 1994 में पार्क में बढ़ती भीड़ को देख कर उस पत्थर को वहां से हटा दिया गया.
अंध आस्था ऐसी ही चीज है, जो सात समंदर पार भी सड़क और पैदल मार्ग को अलग करने के लिए लगे पत्थर को देवता
मान कर पूजने लगती है.
कार्टून साभार : मंजुल
पुरानी कहावत है कि “मानो तो देव, नहीं तो पत्थर क्या लेव”. लेकिन अभी जैसा दौर चल रहा है, उसमें धर्म से अधिक धार्मिक उन्माद के लिए हर पत्थर में देव तलाशने वालों
के हाथों देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
-इन्द्रेश मैखुरी
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