अरसा पहले एक युवा पत्रकार मित्र ने मुझसे कहा-
अमुक बड़ा आदमी, एक
बहुत बड़े आदमी के लिए हेलिकॉप्टर से पहाड़ी बकरे की कचमोली
/ कचबोली ले जाता है. सुदूर पहाड़ से बकरे को हेलिकॉप्टर से बड़े महानगर ले जाने
का दृश्य मेरे दिमाग में समा ही न सका. मेरी सहज बुद्धि ने कहा- ऐसा कैसे हो सकता
है, ऐसा नहीं हो
सकता. मैंने किस्सा सुनाने वाले को डपट कर कहा- माना कि अमुक बड़े आदमी से मेरे
विरोध है. पर इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम मुझे अमुक बड़े आदमी के बारे में कुछ भी समझा दो और मैं
मान लूँगा ! अमुक बड़े आदमी ने न मेरे खेत का ओड़ा सरकाया और न बड़े आदमी
की भैंस ने मेरे खेत में उज्याड़ खाया. इसलिए मेरी कोई निजी
खुन्नस नहीं है अमुक बड़े आदमी से. केवल नीतिगत या
ज्यादा सही तरह से कहें तो लोकतांत्रिक मतभिन्नता है,भाई !
बाद में बहुत बड़े आदमी की कचमोली / कचबोली पार्टी
में शामिल एक शख्स से मेरी मुलाक़ात हुई. उन्होंने कहा कि कचमोली / कचबोली का स्वाद
लाजवाब था. तब मुझे समझ में आया कि मेरा पत्रकार दोस्त तो ठीक ही कहता था, मैंने नाहक ही
उसे डांट दिया. यह भी समझ में आया कि अमुक बड़ा आदमी, सारी साहबी छोड़, बहुत बड़े आदमी
के अर्दली की भूमिका निबाहने में गदगद महसूस कर रहा है. सार यह भी है
कि बड़ा आदमी, लाभ की आकांक्षा के साथ, अपने
से बड़े आदमी का अर्दली होना भी सौभाग्य की बात समझता है.
लकदक बर्फ पड़ने के महीनों में बर्फ सफाई को बड़ा आदमी अपना करिश्मा और हुनर सिद्ध कर ही चुका था. बड़े आदमी के आज के बगलगीर, उस वक्त आरोप लगाते थे कि बर्फ की सफाई से ही गांधी छाप हरियाली और बैंगनी कागजों की इफ़रात हो गयी थी,बड़े आदमी के पास.
बड़े आदमी की राजप्रसाद
में विचरण करने आकांक्षा धीरे-धीरे बलवती होने लगी थी. इसके लिए बड़े आदमी ने तय किया
कि विचारधारा के लफड़े में नहीं पड़ना है. विचार की तो उस सर्दियों की बर्फ की तरह सफाई
हो चुकी थी, जिससे बड़े आदमी की ख्याति थी. शेष जो है- वो धारा
है. धारा इधर बहे तो,इधर को और धारा उधर बहे तो उधर को !
बड़े आदमी को भरोसा था कि बहुत बड़े आदमी को पहुंचाई गयी
कचमोली
/ कचबोली का स्वाद, राजप्रासाद
जाने का द्वार तो खुलवा ही देगा. लेकिन बहुत बड़े आदमी अपने पुत्र को सेटल करने की जुगत
में लगे थे. पुत्र और अर्दली में चुनने का विकल्प हो तो आदमी पुत्र के साथ ही जाएगा.
पर हालात ऐसे हो गए, न बहुत बड़े आदमी के पुत्र का नंबर आया, न बड़े आदमी की लॉटरी लग पायी.
धारा में गोते लगाते हुए बड़े आदमी, अब तीसरी दिशा में बह निकले. तीसरी दिशा वालों को भी भेड़ों की अगुवाई के लिए
खाडू चाहिए थे. उन्होंने आव देखा न ताव, बड़े आदमी को अपना महामात्य
घोषित कर दिया. प्रांत में यत्र-तत्र-सर्वत्र बड़े आदमी का चेहरा नुमाया हो गया.
पर काठ की हांडी सिरे न चढ़ सकी और बड़े आदमी बेचारे चारों
खाने चित्त हो गए.
जैसा कि कहा ही जा चुका है कि बड़े आदमी विचार के लफड़े
में नहीं पड़ते, वे धारा के साथ रहते हैं. सो धारा में गोता लगाते
हुए बड़े आदमी उनके घाट पर पहुँच गए, जिनको कुछ महीने पहले वे
ताना दे रहे थे- कुछ कर ! बड़े आदमी की ताजा स्थिति देख कर लगता है कि उस समय भी वे
ताना नहीं दे रहे थे, मनुहार कर रहे थे, गुहार कर रहे थे- कुछ कर, मुझको एडजस्ट कर !
कुल मिला के बड़े आदमी का नाम जो हो पर हैं वो – कुर्सियाल
! कुर्सियाल बोले तो कुर्सी के लिए टपके जिनकी लार !
चित्र साभार : Cheryl Bradley-Eslinger
राज्य दरअसल ऐसे ही कुर्सियालों
की चपेट में है, ऊपर वालों को कचमोली / कचबोली
पहुंचा कर, जो खुद भी राज्य को नमक-मिर्च लगा कर कचमोली / कचबोली
के ठुंगार के साथ उदरस्थ कर जाना चाहते हैं !
दिवंगत लोकगायक चंद्र सिंह राही और झोक्की बाबा से क्षमा
याचना सहित, इतना ही कहना है –
बाबू लोगो, साब लोगो
हौलदार साब,सुबदार साब
लपटेन साब, कपटेन साब
कर्नल साब, जनरल साब
सतड़- पतड़ परमेसुर माराज
अर बल
कुर्सियालों का बीच
मेरो राज्य फंसी गे
यरां राज्य रे ....................
अंत में डिस्क्लेमर जैसा कुछ : जिस किसी भी कुर्सियाल की गलद्यो फौज यानि ट्रोल आर्मी को इसमें अपने कुर्सियाल का चेहरा नजर आए, वे सिद्ध करें कि ये उनके कुर्सियाल की कथा है और तब जो चाहें करें !
-
इन्द्रेश मैखुरी
2 Comments
आज कुर्सियाल एक मृत्यु भोज में मिले। मैंने बधाई दीः हीही कर शरमा गये
ReplyDeleteआम तौर पर वे इतना ही कर पाते हैं
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