जब भी उत्तराखंड में यात्रा सीजन शुरू होता है, उससे पहले सीएम
से लेकर डीएम तक बड़ी-बड़ी बैठकें आयोजित करते हैं. यात्रा तैयारियों के नाम से इन बैठकों
के अखबारों में बड़े-बड़े समाचार छपते हैं. इस बार भी ऐसी बैठकें हुई और समाचार भी प्रसारित
हुए. लेकिन
हकीकत में जब उत्तराखंड के चार धाम-बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री की यात्रा शुरू हुई तो पता चला
कि बैठकें और उनके समाचार अपनी जगह हैं और यात्रा का प्रशासकीय प्रबंधन (या कुप्रबंधन
या नदारद प्रबंधन) अपनी जगह है !
यात्रा में इस बारे भारी संख्या में लोग आ रहे हैं. चूंकि
कोरोना प्रतिबंधों और अदालती बंदिशों के चलते दो वर्षों से यात्रा न हो सकी तो यह स्वाभाविक
ही है कि भारी संख्या में लोग यात्रा में आयें. इसलिए इंतजाम भी उसी तरह के किए जाने
चाहिए थे. भीड़ प्रबंधन के लिए व्यापक तैयारी की जानी चाहिए थी.
अखबारों में खबरें हैं कि बद्रीनाथ में पानी की आपूर्ति
नहीं हो पा रही है. बद्रीनाथ में मास्टर प्लान के तहत निर्माण कार्य चल रहा है. पानी
पहुंचाने के लिए जिम्मेदार विभाग- जल संस्थान का कहना है कि वे पानी की लाइनें दुरुस्त
कर रहे हैं,लेकिन मास्टर प्लान के निर्माण कार्य में लगी एजेंसियां
खुदाई कर रही हैं और पेयजल की लाइन उखड़ जा रही है. यात्रा की शुरुआत के बीच पेयजल लाइन जोड़ो, पेयजल लाइन उखाड़ो का खेल सरकारी महकमों के बीच चल रहा है, उससे यात्रा के सरकारी प्रबंधन की हालत समझी जा सकती.
यमुनोत्री में पैदल मार्ग पर बारिश के चलते कीचड़ हो जाना
यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना. केदारनाथ में कपाट खुलने वाले दिन ही बिजली गुल
थी, जिसके लिए एक इंजीनियर को निलंबित भी किया गया. बद्रीनाथ में भी लोग बिजली
कटौती झेल रहे हैं.
यात्रा के विभिन्न मार्गों पर पेट्रोल की दिक्कतों से
लेकर ट्रेफिक जाम तक से यात्रियों को दो-चार होना पड़ा.
जिस सड़क को चार धाम सड़क के नाम से बनाया जा रहा है, उस पर विभिन्न जगहों पर अभी भी पहाड़ों के कटान का काम जारी है. सुबह-सुबह 04 बजे निकलें तो आधा-एक घंटे फंसना और मलबा नदी में फेंके जाने का दृश्य देखना, एक तरह से अनिवार्य है.
यात्रा के संचालन की प्रशासन की लचर तैयारियों का आलम
यह है कि हर रोज नए दिशा-निर्देश जारी हो रहे हैं. बीस से अधिक तीर्थ यात्रियों की
मृत्यु के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से हैल्थ एडवाइजरी जारी की गयी. चिकित्सा सुविधाओं
का अभाव तो बना ही हुआ है.
यात्रा में लचर इंतजाम के संदर्भ में बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का बयान अखबारों में छपा है कि धामों में क्षमता से अधिक यात्री पहुँचने से सरकार के स्तर पर किए गए इंतजाम कम पड़ गए.
दो सालों में
बाद यात्रा का सुचारु संचालन हो रहा है तो तो भारी संख्या में लोगों का आना तो अपेक्षित
ही था. यात्रा शुरू होने से पहले किसी लॉज या होटल वाले से भी सरकारी लोग पूछ लेते
तो वह भी बता देता कि जून के महीने तक मामला पैक है. लेकिन लगता है कि सरकारी अमले
ने यह न्यूनतम जहमत भी नहीं उठाई. इसलिए यात्रा के हफ्ता भर बीतते-न-बीतते सरकारी इंतजामात
का दम फूल रहा है. जब भी इंतजाम किए जाते हैं तो वह अधिकतम संख्या के अनुमान पर ही
किए जाते हैं. यदि सरकारी इंतजाम अधिक यात्रियों के आने के चलते नाकाफी सिद्ध हो रहे
हैं तो क्या ये इंतजाम न्यूनतम संख्या के आकलन के आधार पर किए गए हैं ?
यात्रा में अव्यवस्था के बीच पर्यटन मंत्री दुबई में हैं, स्वास्थ्य मंत्री कुछ दिन पहले तक गुजरात का सहकारिता मॉडल समझ रहे थे. बढ़ते
दबाव के बीच मुख्यमंत्री ने दो मंत्रियों- स्वास्थ्य मंत्री डॉ.धन सिंह रावत और वन
मंत्री सुबोध उनियाल को केदारनाथ और बद्रीनाथ के यात्रा प्रबंध को देखने के लिए तैनात
किया है. मंत्रियों के धामों के यात्रा प्रबंध का प्रभारी बनने पर सरकारी अमला यात्रा
की व्यवस्था में लगेगा या मंत्रियों और उनके अमले की आवभगत में, यह आने वाला वक्त बताएगा !
उत्तराखंड की आर्थिकी के लिहाज से यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण
है, एक बड़ा हिस्सा है जो रोजगार के लिए इस यात्रा पर निर्भर है. इसलिए होना तो
यह चाहिए कि यात्रा का प्रबंधन और इंतजामत बेहतरीन हों. लेकिन सरकारी मशीनरी की हालत
देख कर लगता है कि वे केवल गाल बजाने का काम ही बेहतर तरीके से कर सकते हैं.
-इन्द्रेश मैखुरी
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