पहले यह तस्वीर देखिये. यह एक ऐसी मूर्ति की तस्वीर है, जिसका शरीर तो है, लेकिन सिर और हाथ नहीं हैं.
हो सकता
है, ऐसी मूर्ति बनाने का विशेष प्रयोजन हो या फिर मूर्तिकार इस
मूर्ति को बाद में पूरा कर ले.
लेकिन इस मूर्ति को देख कर मुझे गैरसैंण की याद आई. गैरसैंण को उत्तराखंड
की स्थायी राजधानी बनाने की मांग, दशकों से चल रही है. बीते बरस वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी भी तत्कालीन
मुख्यमंत्री ने घोषित की और तत्कालीन राज्यपाल के हस्ताक्षरों से उस पर सरकारी मोहर
भी लग चुकी है. विधानसभा भवन भी वहां बन चुका, लेकिन सत्ता का सिर और सिरमौर वहां जाने को राजी
ही नहीं है ! इसलिए वह उपरोक्त मूर्ति जैसा
ही प्रतीत होता है !
अब ताजा घटनाक्रम
की बात कर लेते हैं. पहले उत्तराखंड की विधानसभा का बजट सत्र गैरसैंण के भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा
में कराने की घोषणा की गयी. फिर विभिन्न बहाने बनाते हुए सत्र देहरादून में ही आयोजित
हो रहा है. यह रोचक है कि सारे बहाने तभी निकलते हैं, जब गैरसैंण में विधानसभा का सत्र होना होता है !
बहरहाल
सरकार द्वारा सत्र वहां न कराये जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और कॉंग्रेस
नेता हरीश रावत, भराड़ीसैंण में 15 जून
2022 को विधानसभा भवन के आगे दो घंटे का धरना कर आए. यूं पहले उनके धरने को 14 जून
को होने का ऐलान हुआ था, परंतु उस दिन वे राहुल गांधी के पक्ष
में दिल्ली में ही रह गए तो पूर्व घोषित धरना आगे खिसका दिया गया. गैरसैंण की बात ऐसे ही अपनी सहूलियत के
हिसाब से होती है !
हरीश रावत जी के धरने की बात सुनते ही सहसा मुझे एक पुराना
किस्सा याद आया. हरीश रावत जी मुख्यमंत्री थे. जून 2014 में उन्होंने गैरसैंण में सर्कस नुमा तंबू लगाकर विधानसभा
का सत्र करने की घोषणा की. उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा उससे पहले मंत्रिमंडल
की बैठक गैरसैंण में कर चुके थे. हरीश रावत ने जब गैरसैंण में विधानसभा का सत्र करने
का ऐलान किया तो उन पर लहालोट होने वालों ने इसे मील का पत्थर और जाने क्या-क्या कहा
! यह अलग बात है कि गैरसैंण की बात करके देहरादून के रायपुर में विधानसभा भवन बनाने
का टेंडर 2016 में उन्हीं के चहेते विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने निकाला.
वर्तमान कैबिनेट मंत्री और पिछली विधानसभा के अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल भी गैरसैंण
के ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित होने के बाद रायपुर में विधानसभा निर्माण में रुचि का
इज़हार करने से नहीं चूके थे !
बहरहाल 2014 में 09 जून से गैरसैंण में विधानसभा का सत्र होना था. हमने तय किया कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी की मांग को उठाने और इस दो-तीन दिन की पिकनिक का विरोध करने के लिए गैरसैंण जाया जाए.
उस विधानसभा सत्र में हुआ, वह एकमात्र प्रदर्शन था.
रास्ते भर सभाएं करते, अपनी बात रखते, पर्चे बांटते हुए हम 08 जून की रात को दिवालीखाल पहुंचे. रात को
तकरीबन 11 बजे एसडीएम, कोतवाल, एलआईयू इंस्पेक्टर और कुछ पुलिस कर्मी, उस जगह पहुंचे. पहले उन्होंने कुछ गर्म
तेवर दिखाए तो हमने भी वैसे ही जवाब दिया. इस पर यह अमला मुख्यमंत्री
से बात कराने की पेशकश करने लगा. मैंने उनसे कहा कि आप वापस जाइए और मुख्यमंत्री से
घोषणा करवा दीजिये कि गैरसैंण
स्थायी राजधानी बनेगी. मैंने कहा- इतनी घोषणा होने पर हम तत्काल लौट जाएँगे. प्रशासनिक
अफसर बोले- आपसे तर्कों में कौन जीत सकता है !
अगले
दिन इसी मांग पर प्रदर्शन करते हुए हम गिरफ्तार किए गए.
लब्बोलुआब
यह कि हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, उनके पास विकल्प था कि वे घोषणा कर देते कि गैरसैंण, उत्तराखंड की स्थायी राजधानी होगी. लेकिन उन्होंने
ऐसा नहीं किया. पर्वत पुत्र कहलाने की उनकी आकांक्षा है, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए भी वे पहाड़ नहीं
चुनते ! पहाड़ के लोगों और गैरसैंण समर्थकों को भराड़ीसैंण में
एक विधानसभा सत्र का जुमला भी हरीश रावत जी ने ही थमाया था. वर्तमान सरकार उस झुनझुने
को बजा नहीं रही है, इसी के लिए दो घंटे का धरना भराड़ीसैंण
में दे आए, रावत साहब !
बाकी गैरसैंण के नाम पर इस प्रदेश की सत्ता में आने-जाने वाले उत्तराखंड की
जनता के साथ क्या करते रहे हैं, यह नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीत की इन पंक्तियों में सुन लीजिये !
-इन्द्रेश मैखुरी
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