एक अवस्था के बाद शरीर का क्षरण हो जाना है, वह जल कर राख़ हो
या दफन हो कर खाक हो, उसका अस्तित्व
समाप्त होनाही है. लेकिन यह देह, प्राण न रहने के बाद भी कुछ उपयोगी हो सके, इसके लिए ही चिकित्सा
विज्ञान में देहदान की व्यवस्था है.
चिकित्सा विज्ञान (मेडिकल
साइन्स) के लिए देहदान अत्याधिक महत्वपूर्ण है. देहदान का अर्थ है कि व्यक्ति
यह घोषणा करे कि देहावसान के उपरांत उसकी देह किसी चिकित्सा संस्थान को सौंप दी
जाये.ऐसी देह का उपयोग चिकित्सा शिक्षा, और शोध के लिए किया जाता है.
वह शरीर जो चिकित्सा विज्ञान के प्रयोग के लिए किसी
चिकित्सा संस्थान को सौंप दिया जाता है, उसे मेडिकल साइन्स की भाषा में कहते हैं- Cadaver. एनाटॉमी
(शरीर रचना) के अध्ययन में दान की हुई देह काम आती है, साथ ही शल्य चिकित्सा(surgery) को बढ़ाने और नयी सर्जरी
तकनीकों के विकास के काम में भी आती है.
दुनिया भर के चिकित्सा संस्थानों में इस वक्त- Cadaver की कमी महसूस की जा रही है. पहले भी विभिन्न वजहों से यह कमी रहती ही थी, पर कोरोना के बाद इसकी कमी बहुत बढ़ गयी है. इसलिए चिकित्सा विज्ञान के हक में देहदान की बेहद जरूरी है.
देहदान की इस प्रक्रिया ने मुझे इसलिए अपनी ओर खींचा कि जीते जी, व्यक्ति समाज के जितना काम आ सके, आए और जब वह न रहे, तब भी उसका शरीर चिकित्सा विज्ञान के जरिये मनुष्यता की बेहतरी के लिए काम आए. इसी बात को सोचते हुए, मैंने अपने देहदान का फॉर्म, अपनी जीवन साथी- मालती हालदार के जरिये दून मेडिकल कॉलेज, देहरादून में जमा करवा दिया है.
बताया गया कि स्वीकृति
की रसीद, डाक के
जरिये भेजी जाएगी. मालती लगभग साल भर पहले ही देहदान की घोषणा कर चुकी है. फॉर्म दोनों
की साथ लाये गए पर मेरा मामला इसलिए अटक गया कि पासपोर्ट फोटो नहीं थी !
बहरहाल, अब देहदान का फॉर्म दून मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी
विभाग में पहुंचा दिया गया है, आगे अब उनके हाथ है.
देहदान की यह कोशिश, प्राण न रहने
के बाद भी समाज के लिए कुछ काम आ सकने और इस तरह समाज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने
की छोटी सी कोशिश है, धार्मिक कर्मकांडों से मुक्ति की भी यह
कोशिश है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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