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कुछ नए मंत्रालयों का सृजन करें सरकार !

 







नित नयी बातें सामने आ रही हैं, नित नए परिदृश्य उभर रहे हैं. ‘’अगला दशक उत्तराखंड का होगा”- प्रधानमंत्री जी की के कहे, इस वाक्य को वेद वाक्य की तरह रट रहे हैं मुख्यमंत्री, जिन्हें उनके चाहने वाले धाकड़ धामी कह रहे हैं.


धाकड़ धामी जी के कार्यालय से एक चिट्ठी जारी हुई है. चिट्ठी पर तारीख पड़ी है- 26 जून 2022 और यह विद्यालयी शिक्षा के महानिदेशक को लिखी गयी है. यूं तो पत्र में तीन शिक्षिकाओं के ट्रांस्फर की बात है, लेकिन पत्र में  इसरार किया गया है कि 09 जून 2022 को उक्त शिक्षिकाओं के ट्रांस्फर के लिये पत्र भेजा गया था पर अब तक “वांछित स्थानांतरण आदेश निर्गत नहीं हो पाये हैं” !












बताइये चाहने वाले, सप्तम सुर में धाकड़ धामी का राग अलाप रहे हैं और मुख्यमंत्री हो कर अगले का सारा धाकड़पना मास्टरों के तबादलों में धराशायी हो जा रहा है ! इससे पहले दिसंबर 2021 में खनन का ट्रक छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री के पीआरओ ने बाकायदा चिट्ठी भेजी थी ! 













अपने प्रिय खनन वालों के ट्रक छुड़ाने की धाकड़ जी की चाहत है, यह तो अफसरों को वैसे ही समझ लेना चाहिए था, जैसे :


राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था !!


 मुख्यमंत्री बेचारा क्या-क्या जो करे, वह अगला दशक उत्तराखंड का बनाए, महानिदेशक को यह याद दिलाये कि तीन मास्टरों के ट्रांस्फर की चिट्ठी भेजे हुए सत्रह दिन हो गए, कर दो यार ! या फिर पीआरओ को खनन के ट्रक छुड़वाने के लिए चिट्ठी लिखें !


अगला दशक उत्तराखंड का बने, इसलिए कुछ कामों को वैध तरीके से किया जाना चाहिए और उसके लिए बाकायदा मंत्रालय सृजित किए जाने चाहिए. इसमें सबसे प्रमुख है- मनमर्जी ट्रांस्फर मंत्रालय. ट्रांस्फर का एक्ट अपनी जगह रहे पर अपनों और अपने चहेतों का ट्रांस्फर करने के लिए बकायदा मंत्रालय हो, जिसका नाम हो- मनमर्जी ट्रांस्फर मंत्रालय ! जब ऐसा मंत्रालय होगा तो मुख्यमंत्री को किसी महानिदेशक को चिट्ठी लिख कर गुहार नहीं लगानी पड़ेगी कि तुमको चिट्ठी भेजी थी, कर दो यार ! मनमर्जी ट्रांस्फर मंत्रालय होगा तो जिसको जब मर्जी,जहां मर्जी ट्रांस्फर करने का सुभीता रहेगा.


शिक्षा विभाग में रिजल्ट की चर्चा एक दिन होती है और ट्रांस्फर का चर्चा वर्ष भर. अन्य विभागों में भी जो पहाड़ पर हैं, उनमें से अधिकांश तो ट्रांस्फर की आस और जुगत में रहते हैं. इसलिए अगला दशक उत्तराखंड का बनाना है तो ट्रांस्फर पर ध्यान केन्द्रित करना बहुत आवश्यक है.


जब मनमर्जी ट्रांस्फर मंत्रालय हो जाएगा तो यह ट्रांस्फर चाहने वाले का हुनर होगा कि वह मनमर्जी के दायरे में आए. इसके दो चरण होंगे- पहला तो मन में आए और फिर मर्जी में आए ! जब दोनों चरण पूरे हों तो ट्रांस्फर लिस्ट में स्थान पाये !


ऐसा मंत्रालय बनने के बाद- ट्रांस्फर के लिए नो धक्का-मुक्की, ओनली मनमर्जी !


सोचिए ऐसा मंत्रालय बन जाये तो तबादले के इच्छुक आपस में कैसे बात करेंगे ? “यार मनमर्जी मंत्री के ओएसडी ने कहा है कि साहब के मन तो तक तो वो पहुंचा देगा पर मर्जी तो मुझे ही हासिल करनी होगी !”


“अरे साहब का मनमर्जी तक पहुँचने के लिए चेलों की मर्जी भी तो जरूरी है और वो तो बिना दक्षिणा के पलक नहीं झपकाते, मनमर्जी कैसे करेंगे ! ”


इसी तरह खनन एवं अन्य जब्तशुदा मुक्तकारी मंत्रालय भी बनाया जाना चाहिए. यह अच्छा थोड़ी लगता है कि मुख्यमंत्री धाकड़ है, अगला दशक उत्तराखंड का बनाने के लिए रात-दिन हलकान है और तभी समर्थकों या पार्टी जनों का ट्रक पुलिस पकड़ ले, ट्रक छूटे नहीं और पीआरओ को बकायदा चिट्ठी लिखनी पड़े कि अगला दशक उत्तराखंड बनाने में लीन माननीय जी चाहते हैं कि ट्रक तत्काल छोड़ा जाये ! सिर्फ बोल-बचन से अगर ट्रक न छूटा तो समर्थक न कहेंगे कि रहने दे भाई, एक ट्रक तो छुड़वा नहीं पा रहा, अगला दशक क्या बनाओगे !


ऐसी चिट्ठी लिखने और उससे होने वाली किरकिरी, दोनों ही न होने पाये, इसलिए जरूरी है कि ऐसा मंत्रालय बिंदास हो कर काम करे ! खनन, शराब आदि-आदि वालों से ही राज्य और उसमें बनने वाली सत्ताएँ कायम है, ऐसे राज्य संचालक महापुरुषों के लिए सर्वोच्च कार्यालय या निवास को लिखत-पढ़त करनी पड़ी, यह बहुत नाइंसाफ़ी है !


वक्त जरूरत के अनुसार और अगले दशक को उत्तराखंड का बनाने के लिए जितने भी मंत्रालय सृजित करने की आवश्यकता हो, वे सृजित किए जाने चाहिए. उसका मोटा-मोटा पैमाना यह है कि सत्ता और उसके समर्थकों का हर कार्य वैध की श्रेणी में माना जाना चाहिए. वे वैध-अवैध, गलत-सही के चक्कर में फंसे रहेंगे तो अगला दशक उत्तराखंड का कैसे बनाएंगे ?


इसलिए ज़ोर से उवाचिए- खाता न बही, जो सरकार बहादुर कहें, सब सही !


-इन्द्रेश मैखुरी

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