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हेमकुंड में हेलीपैड : आपदा से बचाव नहीं, आपदा आमंत्रण है !

 





लगता है उत्तराखंड सरकार को हेलीपैडों से अत्याधिक प्रेम है. बीसियों बरस पहले गौचर जैसी जगहों की उपजाऊ ज़मीनें छीन कर, वहाँ हवाई पट्टी बनाई गयी. तब उत्तराखंड राज्य नहीं था, यह इलाका उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को अलग हुए भी दो दशक से अधिक हो गए हैं. अब उस हवाई पट्टी का क्या हुआ ? उस हवाई पट्टी पर हवाई सेवा के नाम पर हद से हद हेलीकाप्टर उतरते हैं ! यानि अच्छी-भली हवाई पट्टी, हेलीपैड में तब्दील कर दी गयी है. उत्तराखंड में 2013 में आपदा आई, उस समय भी आपदा से लड़ना का फॉर्मूला तजवीज़ किया गया कि सब जगह हेलीपैड बना देने हैं ! हवाई पट्टी को हेलीपैड बना दो, आपदा आए तो हेलीपैड बना दो ! यानि हेलीपैड,लाख दुखों की एक दवा जैसा है, उत्तराखंड सरकार के लिए !


उत्तराखंड सरकार का यह हेलीपैड प्रेम इस ऊंचे स्तर पर पहुँच चुका है कि वह हजारों फीट की ऊंचाई पर, राष्ट्रीय पार्क और इको सेंसिटिव ज़ोन के अंदर भी हेलीपैड बनाने पर उतारू है. चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है- हेमकुंड साहिब. 












उसी इलाके में विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी है. यह नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क का इलाका है, जिसे इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जा चुका है. लगभग सोलह हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह इलाका परिस्थितिकीय रूप से अत्याधिक संवेदनशील है. जहां हेलीपैड बनाया जा रहा है, वह नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व के बफर ज़ोन में पड़ता है. यह यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहरों में शामिल है.  











उस क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के फूल और जड़ी-बूटियां पायी जाती हैं. कुछ समाप्तप्राय श्रेणी के विशिष्ट जीव जन्तु भी वहाँ पाये जाते हैं.


लेकिन उत्तराखंड सरकार ने ऐलान कर दिया है कि परिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील इस इलाके में वह हेलीपैड बनाएगी. हेलीपैड निर्माण के लिए दो करोड़ पच्चीस लाख छियालीस हजार रुपये की धनराशि भी लोक निर्माण विभाग को जारी कर दी गयी है और समाचार पत्रों में छपे लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के बयानों के अनुसार मार्च 2023 तक वे हेलीपैड का निर्माण कर देंगे. हालांकि यह दावा ही अपने आप में अतिशयोक्तिपूर्ण है और निर्माण कर्ताओं के इस इलाके के बारे में जानकारी के अभाव को दर्शाता है. साल के सात-आठ महीने यह इलाका बर्फ से ध्का रहता है, उसमें वह मार्च का महीना भी है, जिसे निर्माण पूरा करने की मियाद तय किया गया है.


समाचार पत्रों में छपे अफसरों के बयानों के अनुसार हेलीपैड का निर्माण सिर्फ आपदा में राहत और बचाव कार्य के लिए किया जाएगा. लेकिन इस क्षेत्र के निकटवर्ती गांव भ्यूंडार के ग्रामीणों का कहना है कि हेलीकाप्टर उतरने लायक जगह तो हेमकुंड देवदर्शिनी धार के पास पहले से थी. 1980 के दशक में गृह मंत्री रहते बूटा सिंह का हेलीकाप्टर वहाँ उतर चुका है. वहाँ बना हुआ गेट हटा दिया जाए तो आपात स्थितियों में वहाँ फिर हेलीकाप्टर उतारा जा सकता है.









जोशीमठ क्षेत्र में जन आंदोलनों के नेता और भाकपा(माले) की राज्य कमेटी के सदस्य कॉमरेड अतुल सती कहते हैं कि 600 वर्ग मीटर में  सवा दो करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च करके सिर्फ आपदा के लिए हेलीपैड बनाने की बात कहना मज़ाक है. यह निश्चित ही हेलीकाप्टर कंपनियों के व्यापार और मुनाफे के लिए किया जा रहा है.


निश्चित ही बात तो सिर्फ आपदा की स्थितियों में बचाव के लिए हेलीपैड निर्माण की नहीं लगती है, बल्कि यह शुरुआती विरोध को थामने के लिए गढ़ा गया तर्क प्रतीत होता है. जब हेलीपैड बन जाएगा, तब तर्क होगा कि ढाई करोड़ की धनराशि के बना हेलीपैड आपदा के इंतजार में बंजर हो रहा है, इसलिए इसका उपयोग करने के लिए व्यावसायिक उड़ानों और तीर्थयात्रियों को लाने-ले जाने के लिए  अनुमति दी जाए !


अंग्रेजी अखबार- टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी शिवानी आज़ाद की रिपोर्ट में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के हवाले से कहा गया है कि यह इलाका हिमस्खलन के लिहाज से संवेदनशील इलाका और हिमस्खलन के चलते इस क्षेत्र में 1998 से 2008 के बीच तकरीबन बीस लोग जान गंवा चुके हैं.


1980 के दशक में यहां के फूलों एवं वनस्पतियों की प्रजातियों की संवेदनशीलता को देखते हुए इस क्षेत्र में पशुओं के चरने पर रोक लगा दी गयी. यह उलटबांसी ही है कि जिस क्षेत्र को पशुओं के चरने से नुकसान पहुंचता हो, वहाँ हेलीपैड निर्माण करके आपदा से बचाव किया जाएगा.


टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट में नंदादेवी बायोस्फेयर रिजर्व के डीएफ़ओ का बयान है कि इस हेलीपैड के लिए राज्य वन्यजीव बोर्ड की अनुमति आवश्यक नहीं है क्यूंकि मुख्य वन्यजीव वार्डन ने इसकी संस्तुति दे दी है. लेकिन अभी 03 जून 2022 को उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति बी.आर.गवई और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ का फैसला तो इस बात की तस्दीक नहीं करता. अपने 61 पृष्ठों के फैसले में उच्चतम न्यायालय ने बहुत स्पष्ट लिखा है कि यदि किसी इको सेंसिटिव ज़ोन के क्षेत्र में भी राज्य सरकार परिवर्तन करना चाहती है तो राज्य को केन्द्रीय विशेषाधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) और केन्द्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पास प्रस्ताव ले कर आना होगा और उस प्रस्ताव से यदि ये सहमत होंगे तो उच्चतम न्यायालय के सामने वह प्रस्ताव लाया जाएगा. साथ ही इस फैसले में यह भी स्पष्ट लिखा है कि चाहे कोई भी उद्देश्य हो, लेकिन इको सेंसिटिव ज़ोन के अंदर किसी तरह के स्थायी ढांचे के निर्माण की अनुमति नहीं होगी.  










बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य,उसके लिए वहाँ मजदूरों का स्थायी तौर पर रहना, परिस्थितिकीय तौर पर संवेदनशील इस क्षेत्र में आपदा से बचाव का इंतजाम नहीं है बल्कि यह आपदाओं को निमंत्रण है. 









व्यावसायिक उद्देश्य न हो तो आपदा के समय में तो हेलीकाप्टर बहुत छोटी से जगह पर भी उतर जाता है. जोशीमठ क्षेत्र में बीते वर्ष फरवरी में आई रैणी-तपोवन की आपदा में राहत-बचाव में लगा हेलीकाप्टर, ढाक में एक चौड़े से खेत में उतरता भी रहा और वहाँ से उड़ान भी भरता रहा. इसलिए हजारों की फीट की ऊंचाई पर अतिसंवेदनशील क्षेत्र में हेलीपैड का निर्माण, उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित इरादों पर संदेह पैदा करता है. आपदा के समय बचाव और राहत कार्य के नाम पर प्राकृतिक तौर पर संवेदनशील इस क्षेत्र में आपदा आमंत्रण की इस कोशिश पर रोक लगनी चाहिए.


-इन्द्रेश मैखुरी      

 

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