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हेलंग के फसाद की जड़ से एक संवाद !

 










 15 जुलाई को चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में हेलंग में घास लाती महिला से घास छीनने की घटना सामने आई. इस घटना ने पूरे उत्तराखंड को उद्वेलित कर दिया. वाइरल वीडियो में दिखाई दे रहा है कि सीआईएसएफ़ और उत्तराखंड पुलिस के लोग महिला से घास छीन रहे हैं. घटना के बाद जिलाधिकारी, चमोली ने वीडियो बनवा कर, पेड़ और चारागाह बचाने के लिए लड़ रही महिलाओं को ही दोषी सिद्ध करने का भरपूर प्रयास किया.











सीआईएसएफ़, उत्तराखंड पुलिस और जिलाधिकारी, चमोली द्वारा महिलाओं के विरुद्ध हमलावर रुख अपनाने से यह प्रश्न दिमाग में कौंधने लगा कि आखिर किसकी खातिर सीआईएसएफ़, पुलिस और प्रशासन का यह जत्था अपनी सीमाओं को लांघ कर, इन महिलाओं के विरुद्ध हमलावर है ?













बीते दिनों हुए एक वार्तालाप से स्पष्ट हो गया कि महिलाओं के विरुद्ध इस अभियान की पृष्ठभूमि में विष्णुगाड़-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना की निर्माता कंपनी- टीएचडीसी है. सीआईएसएफ़, पुलिस और जिलाधिकारी-सभी, टीएचडीसी के लठैत की तरह काम कर रहे थे. जिस वार्तालाप के जरिये यह बात स्पष्ट हुई, उसमें एक तरफ से इस आंदोलन के प्रमुख नेता, भाकपा(माले) की राज्य कमेटी के सदस्य कॉमरेड अतुल सती तथा मैं शामिल थे और दूसरी तरफ से इस क्षेत्र में टीएचडीसी के सबसे बड़े अधिकारी.


बातचीत का क्रम ऐसे शुरू हुआ कि टीएचडीसी के इन सबसे बड़े अधिकारी ने साथी अतुल सती को फोन करके कहा कि वे, अतुल भाई के घर पर आकर उनसे मिलना चाहते हैं. अतुल भाई ने घर पर मिलने से इंकार करते हुए कहा कि घर के बजाय किसी सार्वजनिक स्थल पर मिलें. उनके बार-बार घर पर मिलने के इसरार को मजबूती से ठुकराने के बाद तय हुआ कि टीएचडीसी के पीपलकोटी स्थित कार्यालय में मुलाक़ात होगी. उन्होंने कहा कि वे हमें लेने के लिए अपनी गाड़ी भेजेंगे. इस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया गया और हम अपने वाहन से टीएचडीसी के कार्यालय पहुंचे.


मुलाकात की शुरुआत में अफसर बाबू ने हमें बताया कि वे बिहार में छात्र जीवन में एआईएसएफ़ में रहे हैं, मॉस्को यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंजीनियरिंग किया है. बातचीत की शुरुआत से वे अपने कम्युनिस्टी ज्ञान का प्रदर्शन करने का प्रयास करते रहे. कम्युनिस्ट पार्टियों का अपनी तरह का वर्गीकरण उन्होंने पेश किया.  इसी क्रम में वे वहाँ मौजूद एक सहकर्मी (जो उनका काफी नज़दीकी या मुंह लगा प्रतीत होता था) के कमुनिस्ट सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेते जाते और अपना ज्ञान बघारने के चक्कर में उसकी छीछालेदर करते जाते.


साहब ने पूछा- चे ग्वेरा का नाम सुना है ? बेचारा सहकर्मी चारों खाने चित्त. हम सब मिलजुल कर उन्हें चे ग्वेरा समझाने की नाकाम कोशिश करते हैं. साहब, सहकर्मी से कह रहे हैं- बॉब मार्ले जैसा दिखता है चे ग्वेरा. जिस बेचारे के लिए चे ग्वेरा, काला अक्षर भैंस बराबर है, वो क्या जाने कि बॉब मार्ले किस चिड़िया का नाम है ! फिर साहब पूछ रहे हैं- दीपांकर भट्टाचार्य का नाम सुना है ? बेचारे सहकर्मी की समझ में इतना ही आया कि ये किसी बंगाली नेता का नाम है !


बहरहाल सहकर्मी के सामान्य ज्ञान परीक्षण और उसकी छिछालेदर के बाद साहब मुद्दे पर आए.


उसकी भूमिका बनाते हुए साहब ने बताया कि इस इलाके में परियोजना में कितने स्थानीय लोगों को उन्होंने नौकरी पर रखा हुआ, कैसे उनकी परियोजना ने लोगों का जीवन स्तर ऊंचा कर दिया है. उनका दावा था कि उनकी परियोजना ने पलायन पर भी रोक लगा दी है. वे यह भी कह रहे हैं कि 500 में से 200 लोग काम करते होंगे, 300 तो ऐसे ही “लाइबिलिटी” हैं ! मन करता है कि पूछूं कि आखिर इतना परोपकार किसलिए कि 300 लोग ऐसे रखे हो,जो केवल बोझ हैं, यहां दान-पुण्य तो करने आए नहीं हो ! बहरहाल..........


कहते वे यह भी हैं कि ग्यारह साल से काम बस लुंज-पुंज पड़ा था, उन्होंने आकर दुरुस्त कर दिया. उनके मुंह लगे सहकर्मी कह रहे हैं- ग्यारह साल में जो नहीं हुआ, सर ने ग्यारह महीने में कर दिखाया ! सही बात, बीस-बाइस साल के उत्तराखंड में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि घास लाती महिला से घास छीन ले, वो सर ने कर दिखाया !

अपने महिमा बखान में उन्होंने यह भी उवाचा कि एचसीसी कंपनी को तो हमने ही इंजेक्शन दे-दे कर खड़ा किया है. एचसीसी इस परियोजना में टीएचडीसी की सहायक कंपनी है. उसके बारे में अफसर बाबू के अति उच्च विचार थे. उन्होंने उवाचा- “एचसीसी का यही है हर जगह कम रेट पर काम लो, काम को डिले करो और क्लेम अपना बनाओ. इस कंपनी का नाम है- हिंदुस्तान क्लेम कार्पोरेशन, वैसे  है- हिंदुस्तान कंस्ट्र कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन...........”   साहब की बातों का लब्बोलुआब यह कि स्थानीय लोग काम नहीं करते तब भी काम पर रखे हुए हैं, ठेकेदारी भी वो नहीं कर पा रहे हैं और सहयोगी कंपनी भी ढीली-ढाली है. एक बेचारे साहब ही चुस्त-दुरुस्त हैं, जो इन सब के बीच “रज़िया गुंडों में फंस गयी” की तर्ज पर फंसे हुए हैं ! बड़े-बड़े लोगों के जीवन में कितने भारी कष्ट हैं !


हेलंग में हुए घटना के संदर्भ में अफसर बाबू कह रहे हैं कि पंचायत के पास पैसा था, उन्होंने हमें समतलीकरण करने को कहा, उनका क्या था कि जो उनके पास पैसे हैं, उससे उसके ऊपर डेवेलपमेंट के काम हो जाएँ. गौरतलब है कि जिलाधिकारी चमोली से लेकर तमाम प्रशासन के लोग कह रहे हैं कि ग्राम सभा, वहां खेल मैदान बनाना चाहती थी. कंपनी के सबसे बड़े अफसर बाबू कह रहे हैं कि ग्राम सभा वहां विकास के काम कराना चाहती थी, वे अपनी पूरी बातचीत में खेल मैदान का जिक्र तक नहीं करते.


15 जुलाई की घटना का जिक्र करते हुए अफसर बाबू कहते हैं कि वो माता जी घास लेकर आ रही थी, वो बार-बार डंपर के सामने जाने की कोशिश कर रही थी ! यह घिसा-पिटा तर्क है, जिसे कंपनी से लेकर प्रशासन तक मंत्र की तरह जप रहे हैं. तथ्य यह है कि पीठ में घास के भारी-भरकम बोझ के साथ कदम रखना ही बेहद भारी होता है. ऐसी हास्यास्पद बात वही कर सकते हैं, जिन्हें पीठ पर घास के बोझ के भार का अंदाजा नहीं है.


वे कहते हैं – “हमारी हिम्मत नहीं है या आज की तारीख में उत्तराखंड पुलिस की हिम्मत नहीं है कि वो किसी औरत को मैनहैंडल कर दे.” क्या हुआ यह तो पूरा देश देख ही चुका है, लेकिन सुदूर बिहार से आए हुए अफसर बाबू, उत्तराखंड पुलिस की गारंटी ले रहे थे, यह चौंकाने वाला था. वे कहते हैं कि किसी महिला से अभद्र व्यवहार हो ऐसी ना मेरी मंशा है, ना हमें एक्सैप्टेबल है ! जुबानी जमा खर्च करने में जाता ही क्या है !


वे दावा करते हैं कि वे हमारे साथ ऐसा वीडियो शेयर करेंगे, जिसमें वे और उनके लोग, महिला को लेकर आ रहे हैं, उनसे कह रहे हैं- माता जी आप चिंता मत करो, माता जी बैठो. हमने कहा- कहाँ है, ऐसा वीडियो तो फिर बात इधर-उधर करने के लिए कहा गया- व्हाट्स ऐप में नहीं है, मेरा पास नहीं,उसके पास है आदि-आदि. ऐसा वीडियो होता तो अब तक शेयर हो ही चुका होता.


सीआईएसएफ़ सड़क पर कैसे थी, इस पर अफसर बाबू तत्काल हाथ जोड़ कर कहते हैं- फॉर दैट सॉरी ! वो नए बच्चे थे पुलिस को देख कर उछलने लग गए ! 

 

हमने कहा- अगर वो पुलिस को देख कर उछलने लगे तो फिर 24 जुलाई को जब उनके गेट पर प्रदर्शन हो रहा था, तब क्यूँ नहीं उछले ? वे तपाक से बोले- वो मेरा ही इन्सट्रक्शन था, उसमें क्या दिक्कत है. हमने सवाल उठाया- 24 को आपका इन्सट्रक्शन था तो 15 को किसका इन्सट्रक्शन था ? अफसर बाबू बोले- 15 का भी इन्सट्रक्शन मेरा था. अतुल भाई ने कहा- कि उस महिला को उठा लो ? अफसर बाबू बोले- नहीं, नहीं, यही बोला होगा कि पुलिस आएगी तो थोड़ा उनके साथ खड़े हो जाना.  हमने कहा- पुलिस तो पर्याप्त है अपने आप में, पर्याप्त से ज्यादा है. अफसर बाबू बोले- वो ठीक है, मैं कोई बहस कर रहा हूं, मैंने कोई आर्गयुमेंट किया, हमने तो अपने आप को विदड्रॉ किया और आपके सामने क्षमा याचना कर रहा हूं.


अफसर बाबू कहते हैं- हम लोगों का इंटेंशन, एचसीसी का, टीएचडीसी का या पुलिस का – हमने कहा पुलिस की गारंटी कैसे ले रहे हैं, वे बोले- मैं ले रहा हूं. अतुल भाई ने कहा- डीएम के इंटेंशन की भी ले लीजिये गारंटी. वे बोले- नहीं, नहीं, मैं जिनकी ले रहा हूं, उनकी ले रहा हूं, मैं कुमकुम जोशी की गारंटी ले रहा हूं, वो अलग तरह की हैं.


सनद रहे कुमकुम जोशी, जोशीमठ की उपजिलाधिकारी हैं.


यह गजब नज़ारा है कि परियोजना निर्माता कंपनी का सबसे बड़ा अफसर  अपनी ही नहीं पुलिस और प्रशासन की मंशा की भी गारंटी ले रहा है. हमने कहा- जिनकी गारंटी ले रहे हैं, उनसे कहें कि कम से कम लोगों के पत्र तो पकड़ लिया करें !


पूरी बातचीत में हमारा ज़ोर था कि कंपनी के पक्ष में खम ठोक कर उतरने वाले चमोली के जिलाधिकारी को हटाया जाना चाहिए. अफसर बाबू कह रहे हैं- उनको खुलेआम ऐसा नहीं करना चाहिए था. फिर कह रहे हैं- आपके और डीएम के बीच परियोजना कोलेट्रल डैमेज ना हो जाये. हमने कहा- आंदोलन और कंपनी के बीच डीएम कोलेट्रल डैमेज होंगे क्यूंकि वे खुलेआम कंपनी के पक्ष में उतर पड़े.


रूस में महिलाओं के सशक्त होने के किस्से अफसर बाबू सुना रहे हैं. अतुल भाई ने कहा- ये सब देखने के बावजूद आपने एक पूरे डीएम को उतार दिया, उस महिला के खिलाफ. अफसर बाबू बोले मेरे पर ये दोषारोपण ना करें तो अतुल भाई ने जवाब दिया- बैटिंग तो आप ही के लिए कर रहे थे, पूरी तरह. वे बोले- अब इस पर मैं प्रतिक्रिया नहीं करूंगा. कुल-जमा ये कि उन्होंने डीएम की कंपनी के लिए बैटिंग करने की बात के जवाब में हाँ नहीं कहा पर ना भी नहीं कहा !


हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जिलाधिकारी ने उन महिलाओं के खिलाफ खड़े हो कर पूरे मामले को और भड़काया. अफसर बाबू कह रहे हैं कि पब्लिक सेंटिमेंट आपके खिलाफ हो तो उसमें पहलवानी करना तो मूर्खता के अलावा मैं कुछ नहीं बोलूँगा.


मुंशी प्रेमचंद की कहानी- नमक का दरोगा में, प्रेमचंद कचहरी में लाये गए पंडित अलोपीदीन के बारे में लिखते हैं- “पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे. अधिकारी वर्ग उनके भक्त, अमले उनके सेवक, वकील-मुख़्तार उनके आज्ञा पालक और अरदली, चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बिना मोल के ग़ुलाम थे.


हमारी कथा के अफसर बाबू से जब कहा गया कि सरकारी अफसर उनके खिलौने हैं तो इस बात पर वो ठठाहा कर हँसते हैं. अतुल भाई कह रहे हैं- अपना खिलौना बदल दो तो वह कह रहे हैं कि बच्चे से भी एक बार गलती हो जाती है तो उसे माफ कर देते हैं.


परियोजना निर्माता कंपनी का सबसे बड़ा अधिकारी, जिले के सबसे बड़े अधिकारी से लेकर सीआईएसएफ़ तक वालों को बच्चा कह रहा है, उनको माफ करने की विनती कर रहा है. कह रहा है कि मेरी वजह से अफसर बदला जाये, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा. पुलिस से लेकर अफसरों तक की की गारंटी ले रहा है. आखिर किस हैसियत से वह, पूरी प्रशासनिक मशीनरी के शीर्ष से लेकर तल पर तक वालों के अभिभावक की भूमिका में स्वयं को प्रस्तुत कर रहा है ? उसकी एक ही वजह नज़र आती है कि पूरा प्रशासन तंत्र, परियोजना निर्माता कंपनी के सामने दंडवत है और दंडवत होने के कारणों का अंदाज लगाना कोई मुश्किल नहीं है.


यहाँ परियोजना के जिस बड़े अफसर का जिक्र किया गया है, वो हैं- टीएचडीसी के अधिशासी निदेशक (एग्ज्क्यूटिव डाइरेक्टर- ईडी). नाम उनका है- श्री आरएन सिंह. मुलाक़ात का दिन है- 27 जुलाई 2022.


ऊपर दिये गए संवाद के संदर्भ में किसी को किस तरह की चुल उठे तो यह समझ लें कि उक्त संवाद की पूरी रिकॉर्डिंग हमारे पास है. नूमने के लिए एक टुकड़ा यहाँ लगा रहे हैं. 













शेष जहां चाहेंगे, वहाँ प्रस्तुत कर देंगे, पौन घंटे से अधिक की बातचीत, जब कहें, तब  सार्वजनिक कर देंगे.


-इन्द्रेश मैखुरी  

 

 

   

 

 

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4 Comments

  1. कुल मिलाकर नंगई और खुलकर सामने आ गई।

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    1. पहले कम से कम हमाम तो होता था , अब तो सब मामले हमाम से बाहर ही हैं

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  2. अधिकारी को तो इन्होंने अपनी जेब में रखा है

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  3. आप लोगों की सक्रियता के चलते है इस मुद्दे का सज्ञान लिया गया अन्यथा समाज में सन्नाटा पसरा हुआ है, इस मरे हुए समाज के लिए बड़ा दुःख होता है

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