मंच सजा है, मंच पर नाटक चल रहा है. नाटक में दो महिला पात्र
मंच पर हैं. पहली पात्र दूसरे से कह रही है- हमारा गौं मा कैंसर खुलणु बल यानि हमारे
गाँव में कैंसर खुल रहा है !
अगर आप सिर्फ इस संवाद को सुनें तो यह संवाद चौंकाता
है- यह कैसी अजीब बात
है ! लेकिन अगर मंच पर खेले जा रहे नाटक की पृष्ठभूमि में जाएँगे तो आप नाटक रचने वालों
की प्रत्युत्पन्नमति पर आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रह सकेंगे. जहां यह नाटक
खेला जा रहा है, वह उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के थराली विकासखंड
का एक गांव है- जबरकोट.
नाटक की पृष्ठभूमि यह है कि जबरकोट में एक स्टोन क्रशर
खोलने की तैयारी है, जिसके विरुद्ध ग्रामीण महिलाएं, स्थानीय युवा कपूर सिंह रावत की अगुवाई में बीते दो-तीन महीने से आंदोलन चला
रहे हैं. आंदोलन में कुछ अन्य स्थानीय युवा भी शरीक हैं. कुछ युवा जो पहले आंदोलन में शामिल थे, वे क्रशर लॉबी के दबाव में अपने कदम पीछे खींच चुके हैं. लेकिन महिलाएं टिकी
हुई हैं और जमे हुए हैं कपूर सिंह रावत जैसे युवा, जो हे.न.ब.गढ़वाल
विश्वविद्यालय श्रीनगर(गढ़वाल) में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान आइसा जैसे
क्रांतिकारी छात्र संगठन के साथ जुड़ कर जनसरोकार और जनांदोलन का ककहरा सीखे हैं.
आंदोलनकारी महिलाओं और युवाओं का कहना है कि स्टोन क्रशर
के लिए होने वाली खुदाई से उनका पैतृक पानी का स्रोत प्रभावित होगा. जहां स्टोन क्रशर
खुल रहा है, उससे बमुश्किल पचास-साठ मीटर पर प्राथमिक विद्यालय
और आंगनवाड़ी केंद्र है. साथ ही स्टोन क्रशर के निकट ही स्थानीय लोगों की कृषि भूमि
भी है तो बच्चों और कृषि, दोनों ही पर स्टोन क्रशर के विपरीत
प्रभाव से ग्रामीण आशंकित हैं. यह इलाका भू स्खलन से प्रभावित है, इसलिए ग्रामीणों को आशंका है कि स्टोन
क्रशर के निर्माण और अन्य प्रक्रियाएँ भू स्खलन की गति को और बढ़ा देंगे. ऐसी तमाम आशंकाओं
और इलाको को होने वाले नुकसान के मद्देनजर ग्रामीण आंदोलनरत हैं. वे जिलाधिकारी, चमोली समेत तमाम उच्च अधिकारियों को ज्ञापन भेज कर अपनी आशंकाओं और चिंताओं
से अवगत करा चुके हैं. थराली के उपजिलाधिकारी से कई बार मिल चुके हैं. लेकिन ऐसा प्रतीत
होता है कि जैसे हेलंग में टीएचडीसी का पक्ष ही जिला प्रशासन का पक्ष था, वैसे ही जबरकोट के मामले में भी स्टोन क्रशर वालों का पक्ष ही जिला प्रशासन
और थराली तहसील के प्रशासन का पक्ष है, इसलिए जांच के नाम पर
भी लीपापोती कर दी गयी !
स्टोन क्रशर बंद
करवाने के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं और युवाओं ने थराली तहसील में जुलूस प्रदर्शन
किया और मशाल जुलूस भी वे निकाल चुके हैं.
आंदोलन, संघर्ष और आजादी की
75 वीं वर्षगांठ को जोड़ते हुए, जबरकोट के आंदोलनकारियों ने 14
अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर जबरकोट में स्टोन क्रशर स्थल से चंद
कदमों की दूरी पर एक भव्य और विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम किया.
इसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में वह नाटक खेला गया, जिसके एक संवाद से इस लेख की शुरुआत की गयी है. नाटक में स्थानीय महिलाएं
आपस में संवाद बोल रही हैं कि हमारे गांव में कैंसर खुलने वाला है. क्या कमाल प्रतीक
चुना है, इन ग्रामीण महिलाओं ने ! आखिर साफ हवा-पानी वाले पर्वतीय
इलाके की आबादी के बीच स्टोन क्रशर खुलेगा तो वह कैंसर जैसा ही जानलेवा तो होगा ! कुछ ठेकेदारों- गलेदारों के जीवन में भले ही खुशहाली
ले आए, लेकिन व्यापक पहाड़ी आबादी के जीवन में सांस और त्वचा रोगों
समेत तमाम बीमारियां ही लेकर आएगा. यह नाटक भी है, हकीकत भी !
इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में गीत-नृत्य समेत तमाम अन्य कार्यक्रम हुए.
गरुड़ से हेलंग एकजुटता मंच से जुड़े आंदोलनकारी साथी भुवन पाठक, इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे.
उनके साथ आए रंगकर्मी और जनगायक साथी गोपाल ने हिमालय की प्रार्थना गा कर सुनाई, जिसने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
आइसा के साथी अतुल सती ने आंदोलन की निरंतरता और मजबूती पर ज़ोर दिया.
होने को यह सांस्कृतिक कार्यक्रम था, जो स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर किया जा रहा था, लेकिन यह जबरकोट में स्टोन क्रशर के विरुद्ध संघर्ष का मोर्चा भी था. स्टोन
क्रशर के विरुद्ध संघर्ष कर रहे इन महिलाओं और युवाओं ने आज़ादी के उल्लास और संघर्ष
के जोश का गजब समागम किया. आंदोलनों के मोर्चे ऐसी रचनात्मकता से और समृद्ध होते हैं, मजबूत होते हैं.
उनके इस कदम से बौखलाए हुए स्टोन क्रशर वालों ने ऐन स्वतंत्रता
दिवस के दिन, 15 अगस्त को काम शुरू करने की कोशिश की, लेकिन तत्काल ही आंदोलनकारी महिलाएं मोर्चे पर आ डटी.
आज़ादी के उत्सव का उल्लास और संघर्ष के जुनून के साथ जबरकोट
में स्टोन क्रशर के खिलाफ लड़ने वाले आंदोलनकारी, अपनी लड़ाई में
जीत हासिल करें, यही कामना है, साफ हवा-पानी, जंगल और जमीन को बचाने की जद्दोजहद की, यही जरूरत भी
है !
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
👏👏👏👏
ReplyDelete