हाकम भाई कई दिनों से चर्चा में हैं. पहले सोशल मीडिया
पर उत्तराखंड के बड़े-बड़े शक्तिशाली लोगों के साथ उनके फोटो आए. उसके बाद
उनके नृत्य के वीडियो आए और अब उनके कुछ नीति सूक्त, सोशल मीडिया
में तैर रहे हैं. इससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा का अंदाजा होता है. और कहाँ नहीं थे हाकम
भाई ! एक जमाने में पंडित प्रदीप ने संतोषी माता फिल्म के लिए जो गीत लिखा, उसकी तर्ज पर- यहाँ, वहाँ, जहां, तहां, मत पूछो, कहां, कहां थे, हाकम भाई ! और जहां वे न पहुँच पाये होंगे, वहां उनके और बंधु-सखा पहुंचे होंगे !
इस बीच उनके नीति सूक्तों के पुण्य दर्शन हुए तो लगा- कैसे साधु आदमी हैं, हाकम भाई ! वे लिखते हैं : पाप शरीर नहीं विचार करते हैं और गंगा विचारों को नहीं शरीर को धोती है !
वाह ! क्या उच्च कोटी का
चिंतन है. हे पुलिस जी, हाकम भाई की राजनीतिक पहुँच-पहचान के
बावजूद यदि हाकम भाई पर लाठी चलाने का विचार दिमाग में आए तो हाकम भाई के शरीर पर नहीं
विचारों पर चलाना ! अदालत जी, प्रदेश के तमाम बड़े-बड़े लोगों के
आँखों के तारे रहे, हाकम भाई को यदि सजा देने की नौबत आन ही पड़े
तो हाकम भाई के नीति सूक्त के अनुसार सजा उनके विचारों को मिले शरीर को नहीं !
हाकम भाई का एक और नीति सूत्र देखिये. वे लिखते हैं- अच्छे व्यवहार का आर्थिक मूल्य भले न हो, लेकिन अच्छा व्यवहार करोड़ों दिलों को खरीदने की ताकत रखता है !
ओहो तो हाकम भाई पेपर बेचता भले ही पैसे में था, लेकिन खरीदता वह व्यवहार से होगा जी ! ऐसे ही थोड़ी लिखा होगा, ऐसे साधु आदमी ने !
वे कैसे उदारमना मनुष्य हैं. डीएम का खाना पकाते-पकाते
उन्हें समृद्धि के मार्ग का ज्ञान हुआ. कहते हैं बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे बैठ कर
ज्ञान की प्राप्ति हुई. हाकम भाई को उत्तरकाशी और हरिद्वार में डीएम की पाकशाला में
समृद्धि के मार्ग के ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस तरह डीएम का वह किचन ही हाकम भाई का
बोधिवृक्ष बना. वो समझ गए कि उनकी समृद्धि का मार्ग प्रदेश के बड़े-बड़े लोगों के किचन
से हो कर गुजरता है या फिर इन बड़े लोगों के पेट से हो कर. शुरुआत में उन्होंने एक डीएम
को खाना खिलाया और उनसे समृद्धि का फॉर्मूला सीखा. जब उन्होंने फॉर्मूला सीख लिया, फिर वे पिछले बीस-एक वर्षों से सत्ताधीश नेताओं- अफसरों को खिलाने लगे. खाना
तो ये बड़े-बड़े लोग अपने घर में खा ही लेते थे, इसलिए हाकम भाई
इन्हें हरे-बैंगनी नोट खिलाने लगे. इस तरह अन्नपूर्णा की तर्ज पर हाकम भाई, इन सबों के धनपूर्णा थे !
कुछ ना शुक्रे लोग कहते हैं कि हाकम भाई ने पैसा लेकर
नौकरियाँ बेच दी. अरे नामुरादो सरकारें तक नौकरियाँ दे नहीं पा रही. ऐसे में हाकम पहले
भर्ती खोजता, फिर भर्ती का प्रश्न पत्र कहाँ छपा, वह खोजता, फिर उन योग्य अभ्यर्थियों की तलाश करता, जिन्हें अपनी बुद्धि से अधिक पैसे की ताकत पर भरोसा था और फिर उन्हें नौकरी
दिलवाता. जैसे शोले का गब्बर रामगढ़ वालों की रक्षा के बदले कुछ अनाज लेकर और कभी-कभी
उनकी जवान लड़कियों को उठा ले जाने के बाद भी बोलता था कि वह क्या बुरा करता है, वैसे ही हाकम भाई भी बिंदास बोल सकता है कि तुम्हारे निकम्मे, गधे लड़कों को नौकरी लगाने के बदले हाकम यदि कुछ लाख रुपए लेता है तो क्या
बुरा करता है, कुछ बुरा नहीं करता !
और हाकम भाई अकेला तो यह रुपया हजम नहीं कर गया होगा ना.
उसके ऊपर के माइबाप होंगे, जिन तक पहुंचाया गया होगा. वह धंधा सीधी
रेखा में तो चलता नहीं बल्कि वह पिरामिड की तरह की चेन होती है. लेकिन फर्माबरदार, वफादार आदमी हो तो हाकम भाई जैसा. सारा जहर खुद पी गया, मजाल है जो किसी और का नाम लिया हो ! अपनी पार्टी का तक बचाव कर डाला, पकड़े जाने पर बोला- मुझे गिरफ्तार करवाने में विपक्षी पार्टी की साजिश है.
गिरफ्तारी में भी पार्टी का बचाव करना नहीं भूले हाकम भाई !
पार्टी से याद आया, हाकम भाई राष्ट्रवादी
पार्टी के राष्ट्रवादी सिपाही हैं. आदमी होना ही ऐसा चाहिए. वह पेपर बेचे, नकल कराये, नौकरियों की खरीद बिक्री करे, लेकिन सौ फीसदी राष्ट्रवादी रहे. गिरफ्तारी के कुछ दिन पहले तक तो वे भी-
हर घर तिरंगा – के स्वघोषित ब्रांड एंबेसडर बने हुए थे. हाकम भाई का जीवन राष्ट्रवाद
की प्रेरणा है कि चोरी, डकैती, राहजनी, नकबजनी सब करो पर हर हाल में राष्ट्रवादी बने रहे.
फेसबुक पर एक मोहतरमा ने सवाल उठाया कि जब सभी “मैं भी
चौकीदार” का नारा बुलंद कर रहे थे तो पेपर लीक कैसे हुआ. आप नादान लोग इतनी सी बात
नहीं समझते ! हाकम भाई ने भी तो नारा लगाया होगा- मैं भी चौकीदार ! तुरंत लाइन क्लियर, रास्ता साफ और उसके बाद पेपर और नौकरियों पर हाथ साफ !
-इन्द्रेश मैखुरी
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