जोशीमठ में 10 अगस्त की सुबह भी आम सुबहों की तरह
ही थी. 09 अगस्त
को हेलंग में महिला आंदोलनकारियों की सभा और फिर शाम को राजीव गांधी अभिनव विद्यालय
को सुचारु किए जाने की मांग को लेकर निकाले गए जुलूस और सभा से थोड़ा थकान थी. इसलिए
हम थोड़ा सुस्ताते हुए उठे.
मैं जोशीमठ में जनादोलनों के अग्रणी नेता और भाकपा(माले)
की राज्य कमेटी के सदस्य कॉमरेड अतुल सती के घर पर था. सुबह आदतन अतुल भाई ने ऊपर की
मंजिल के अपने दरवाजे से बाहर झांका तो सादे कपड़ों में कुछ लोग घर के आगे घूमते दिखाई दिये. एक जिप्सी
नुमा गाड़ी भी दिखी. उसमें से भी लोग उनके घर की ओर ही एकटक
देख रहे थे. थोड़ी देर में समझ में आया कि ये स्थानीय अभिसूचना इकाई यानि एलआईयू के
लोग हैं.
दरअसल 10 अगस्त को जोशीमठ में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह
धामी का दौरा था. अतुल भाई के घर की निगहबानी मुख्यमंत्री के उसी दौरे के मद्देनजर
हो रही थी. थोड़ी देर में जब घर पर नजरें बनाए रखने वालों को समझ में आ गया कि वे जिन
पर नजर बनाए हुए हैं, उनकी नजरें भी उन पर टिकी हुई हैं तो
कोई थोड़ा पेड़ की आड़ में सरक गया, किसी ने हेलमेट पहना, कोई थोड़ा दाएं-बाएं हुआ.
पर आखिर इस निगहबानी की वजह क्या थी ? दरअसल बीते 60-65 दिनों से साथी अतुल सती के नेतृत्व में जोशीमठ में राजीव
गांधी अभिनव विद्यालय को सुचारु रूप से चलाए जाने की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है.
इस विद्यालय में गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे पढ़ते हैं. दो महीने पहले उत्तराखंड
सरकार ने प्रदेश में इन विद्यालयों को बंद करने की घोषणा की थी. प्रदेश भर में विरोध
हुआ तो मुख्यमंत्री ने इन विद्यालयों को यथावत रखने की घोषणा कर दी. घोषणा यथावत करने
की जरूर हुई पर नए सत्र में कक्षा छह में प्रवेश नहीं हुए, जिसका
मतलब यह कि इस वर्ष विद्यालय को बंद करने का निर्णय भले ही मजबूरी में वापस लेना पड़ा
हो, लेकिन यह व्यवस्था अघोषित रूप से कर दी गयी है कि आने वाले
वर्षों में धीरे-धीरे यह स्वतः ही बंद होने के कगार पर पहुँच जाये. जोशीमठ में इसी
मांग को लेकर दो महीने से आंदोलन चल रहा है कि राजीव गांधी अभिनव विद्यालय में कक्षा
छह में प्रवेश प्रक्रिया शुरू की जाये, कक्षा दस से ग्यारहवीं
में प्रवेश की गारंटी हो, साथ ही करोड़ों रुपए की लागत से बने
छात्रावास में बच्चों को रहने की सुविधा मिले.
ये मांगें ऐसी नहीं हैं कि इन्हें आसानी से पूरी करना
असंभव हो. लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार
हमारी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं हैं, इसलिए इन बहुत छोटी
मांगों के लिए भी लोग बीते दो महीने से जोशीमठ में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, प्रदेश के मुख्यमंत्री से उनकी मांगों को सुनने की गुहार लगा रहे हैं, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं है !
इस बीच जब प्रदेश के मुख्यमंत्री का जोशीमठ दौरा तय हुआ
तो कॉमरेड अतुल सती के नेतृत्व में इन आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात करवाए
जाने की मांग प्रशासन के सामने रखी. 09 अगस्त की शाम तक भी जब कोई सकारात्मक जवाब नहीं
मिला तो शाम को मशाल जुलूस निकाल कर, मुख्यमंत्री से मुलाक़ात
न होने और मांगों पर सुनवाई न होने की दशा में काला झण्डा दिखाने की घोषणा की गयी.
प्रशासन के हरकारों को मांग तो सुनाई नहीं दी,ना ही उन्हें यह समझ आया कि आंदोलनकारी मुख्यमंत्री के सामने अपनी वाजिब मांगें
रखना चाह रहे हैं. उन्हें केवल काला झण्डा सुनाई दिया. नतीजा सुबह-सुबह अतुल भाई के
घर के बाहर पुलिस और इंटेलिजेंस के लोगों का
पहरा बैठा दिया गया.
शासन-प्रशासन के सूचना माध्यम से बात करके, मैं उनसे कहता हूँ कि वे इन आंदोलनकारियों को अपनी वाजिब मांगें मुख्यमंत्री
के सामने रखने दें. उधर से जवाब आता है-बिलकुल बात करा देंगे, आप इनमें से दो लोगों का नाम बताइये. मैं कहता हूँ कि इस आंदोलन के नेता अतुल
भाई और एक अभिभावक. उधर से जवाब आता है- अतुल भाई नहीं, उनके
नाम पर प्रशासन के आला अधिकारी सहमत नहीं हैं. वे आशंका ग्रस्त हैं. मैं फोन पर और
निजी बातचीत में भी समझाने की कोशिश करता हूं कि अतुल भाई, कोई
पहली बार किसी मुख्यमंत्री से नहीं मिल रहे हैं, पहले निर्वाचित
मुख्यमंत्री एनडी तिवारी से लेकर अब तक हर मुख्यमंत्री से क्षेत्र की जनसमस्याओं के
निदान के लिए वे मिले हैं. हर बार बेहद सम्मानजनक और गरिमापूर्ण तरीके से बात हुई है.
केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी से भी वे मिले थे. मैं सवाल करता हूं- क्या
पुष्कर सिंह धामी का प्रोटोकॉल नितिन गड़करी
से बड़ा है ? इस सवाल पर मुलाक़ात करवाने और सूचना पहुंचाने का
माध्यम बने सरकारी तंत्र के लोग, तर्क से सहमत तो होते हैं पर
अफसरों की असहमति वाली विवशता दोहराते हैं.
इस पूरे दबाव का नतीजा यह होता है कि राजीव गांधी अभिनव
विद्यालय के मामले में प्रशासन, दो अभिभावकों को मुख्यमंत्री पुष्कर
सिंह धामी से मिलवाता है और मुख्यमंत्री कार्यवाही का भरोसा भी दे देते हैं. यह इस
लिहाज से बड़ी उपलब्धि समझी जानी चाहिए कि जब भाजपा के कार्यकर्ताओं, यहाँ तक कि विधायकों को भी मुख्यमंत्री से मिलने के लिए भारी मशक्कत करनी
पड़ी तो ऐसे में इन अभिभावकों की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात निश्चित ही अतुल भाई की अगुवाई
में चले आंदोलन के दबाव का सकारात्मक नतीजा था.
लेकिन सवाल यह है कि अतुल भाई के घर के आगे पुलिस और इंटेलिजेंस की घेरेबंदी
क्या सिर्फ राजीव गांधी अभिनव विद्यालय की मांग और उसके लिए काले झंडे के ऐलान की वजह
से की गयी ? ऐसा लगता तो नहीं है. अगर यही एकमात्र वजह होती तो
फिर तो उन अभिभावकों की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात के लिए प्रशासन क्यूँ राजी होता, जो इस आंदोलन में दो महीने से निरंतर अतुल भाई के नेतृत्व में डट कर खड़े हैं
?
दरअसल राजीव गांधी अभिनव विद्यालय के आंदोलन के दबाव से
ज्यादा 15 जुलाई को हेलंग में महिला से घास छीनने के बाद खड़े हुए प्रदेशव्यापी आंदोलन
से प्रशासन आशंकाग्रस्त है. यह ज्ञात हुआ कि अतुल भाई को मुख्यमंत्री से मिलाए जाने
पर सर्वाधिक आपत्ति चमोली जिले के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों को थी. हेलंग आंदोलन
में सबसे प्रमुख मांगों में से एक है कि चमोली जिले के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को
उनके पद से हटाया जाए.
निश्चित ही राजीव गांधी अभिनव विद्यालय मामले में कॉमरेड
अतुल सती के मुख्यमंत्री से मिलने पर हेलंग प्रकरण की कार्यवाही की मांग उठाने की आशंका
से चमोली जिले के जिलाधिकारी ग्रस्त रहे होंगे. उनके खिलाफ आवाज मुख्यमंत्री के सामने
ना उठे, इसलिए अपनी शक्ति का बेजा इस्तेमाल करते हुए, उन्होंने
यह व्यवस्था की कि अतुल सती को मुख्यमंत्री से न मिलने दिया जाये.
अफसर जनता के साथ दुर्व्यवहार करके, उनके खिलाफ दुराग्रहपूर्ण प्रचार अभियान चलाने के बाद भी चाहते हैं कि उनके
खिलाफ कोई स्वर न उठे. पर सवाल तो यह है कि क्या उत्तराखंड राज्य अफसरों के पूर्वाग्रहों
और मनमानी इच्छाओं के हिसाब से चलेगा ? असल सवाल तो राज्य को
चलाने वाले युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर है. हेलंग प्रकरण उनके संज्ञान में
है ही, तब जनता से बेअदबी से पेश आने वाले अफसरों को बचाने के
पीछे उनकी क्या विवशता है ? क्यूँ हेलंग की घटना के 25 दिन बाद
भी किसी छोटे से अधिकारी-कर्मचारी पर कार्यवाही करने की वे हिम्मत नहीं दिखा पा रहे
हैं ? क्या वे अफसरों के बंधक है जो जोशीमठ आ कर भी सीआईएसएफ़
और पुलिस द्वारा उत्पीड़ित हेलंग की महिलाओं से मिलने का साहस मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नहीं जुटा सके ? अफसरशाही की इच्छा-आकांक्षा और उद्दंडता को क्या
मुख्यमंत्री राज्य की महिलाओं के मान-सम्मान और गरिमा से ऊपर समझते हैं ?
क्या अतुल सती
को घर पर रोकने के लिए उनके घर के बाहर बैठाए गए पुलिस और इंटेलिजेंस के पहरे की कोई
कानूनी स्वीकृति थी ? क्या मुख्यमंत्री जानते थे कि उनके एक
इलाके में दौरे के दौरान अफसरों ने अपनी खाल बचाने के लिए उस इलाके के प्रमुख एक्टिविस्ट
को बंधक जैसी अवस्था में रख छोड़ा है ? अगर यह उनकी सहमति से हुआ
तो क्या वे भी हेलंग की घटना के जिक्र होने की आशंका से वैसे ही भयभीत थे, जैसे चमोली जिले के जिलाधिकारी और अन्य आला अफसर थे ? अगर यह उनकी सहमति से नहीं हुआ तो पुष्कर सिंह धामी कैसा शासन-प्रशासन चला
रहे हैं कि उन्हें अंधेरे में रख कर, प्रशासन के आला अफसर, अपनी खाल बचाने के लिए एक्टिविस्टों को उनके घरों पर बंधक बना रहे हैं ?
नजरबंदी से जनता के पक्ष में खड़े लोगों को कोई फर्क नहीं
पड़ता, लेकिन राज्य का मुख्यमंत्री यदि अफसरों की मनमानी और उद्दंडता के बावजूद, उनके शिकंजे में नजरबंद जैसी अवस्था में होगा तो राज्य की दुर्गत जरूर हो
जाएगी !
-इन्द्रेश मैखुरी
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