आदरणीय डीजीपी साहेब,
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा सेवा चयन आयोग (यूकेएसएससी)
की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार का मसला, इस समय सुर्खियों में बना हुआ है. इस मामले में एसटीएफ़
द्वारा की जा रही कार्यवाही की भी तारीफ की जा रही है कि एसटीएफ़ ने त्वरित कार्यवाही
करते हुए कई आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिसमें अब तक इस पूरे मामले का मास्टर माइंड बताया
जा रहा- जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह रावत भी शामिल है. अब तक की गयी कार्यवाही, कुछ उम्मीद तो
जगाती है कि युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले भ्रष्टाचारी, सजा पाएंगे. इसके
लिए आप, उत्तराखंड
पुलिस और एसटीएफ़ बधाई के पात्र हैं.
अब तक इस मामले में मास्टर माइंड बताए जा रहे- हाकम
सिंह रावत का जिक्र आया तो ध्यान आया कि हाकम सिंह का नाम सामने आने के बाद, निरंतर उसके बारे
में कई खुलासे हो रहे हैं. एक एफ़आईआर भी सोशल मीडिया में घूम रही है. यह एफ़आईआर 2020
में फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा में हुए घपले से समबंधित है, जो हरिद्वार जिले के मंगलौर पुलिस थाने में दर्ज हुई थी. इस एफ़आईआर में भी
हाकम सिंह का नाम था.
महोदय, परीक्षा में धांधली
के आरोप हाकम सिंह पर पहले से लगते रहे हैं, यह एफ़आईआर इस बात का सबूत है. लेकिन इसके बावजूद हाकम सिंह और उस जैसे अब
तक महफूज रहे. हाकम सिंह के गिरफ्तार होने के बाद उसकी माननीय मुख्यमंत्री, माननीय पूर्व मुख्यमंत्री व माननीय मंत्रीगणों के साथ तस्वीरें वायरल हो रही
हैं.
लेकिन इससे भी हैरत की बात है, महोदय कि आपकी सपरिवार तस्वीर भी हाकम सिंह के साथ वायरल हो रही है. यह तस्वीर
हाकम सिंह के रिज़ॉर्ट की बताई जा रही है.
हाकम सिंह नेताओं को टोपी पहना रहा था. लेकिन हैरत यह
है कि वह राज्य की पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी को भी टोपी पहना रहा था !
महोदय, हाकम सिंह पकड़ा भले
ही अब गया हो, लेकिन जैसी जानकारी अब सामने आ रही है, उससे तो ऐसा लगता है कि परीक्षाओं में धांधली के जरिये धन कमाने की राह पर
तो वह काफी पहले निकल पड़ा था. आम जनता को उसके इस काले रास्ते का पता न हो और उसके
सामने सिर्फ दौलत के चमचमाते महल ही सामने आएँ, यह मुमकिन है.
लेकिन महोदय, आपसे मेरा सीधा प्रश्न
है कि जब हाकम सिंह के रिज़ॉर्ट में आप रुके तो क्या आप जानते थे कि वह किस प्रवृत्ति
का व्यक्ति है, उसने यह धन-संपदा कैसे अर्जित की है ? अगर आप जानते थे तो मुझे इस पर कुछ नहीं कहना है, तब
कहने को बचता ही क्या है ?
लेकिन अगर आप नहीं जानते थे तो यह प्रदेश में पुलिस और
अभिसूचना के पूरे तंत्र पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है. आखिर इतने बड़े तंत्र के बावजूद
कैसे पुलिस जैसे महकमें के सबसे बड़े अफसर को इस बात से गाफिल रखा जा सकता है कि जहां
वे ठहरने जा रहे हैं, वह घोषित अपराधी तो नहीं है, परंतु उसकी पृष्ठभूमि संदिग्ध जरूर है ?
महोदय, आप थोड़ा सामान्य व्यक्ति
के नजरिए से इस बात पर विचार करके देखिये. आपकी एसटीएफ़ एक व्यक्ति को भर्ती घोटाले
के लिए गिरफ्तार करती है और उसे इस पूरे कांड का मास्टर माइंड बताती है. उसकी गिरफ्तारी
के कुछ ही समय में इस मास्टर माइंड के साथ आपकी तस्वीरें सोशल मीडिया में तैरने लगती
हैं. क्या यह embarrassing situation नहीं है ? क्या यह पूरी जांच की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर संदेह नहीं पैदा करता है
?
महोदय, न्याय के बारे में कहा
जाता है कि न्याय सिर्फ होना नहीं चाहिए, वह होता हुआ भी दिखना
चाहिए. वही बात किसी भी जांच पर लागू होती है कि वह न केवल स्वांतत्र और निष्पक्ष होनी
चाहिए बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष दिखनी भी चाहिए. बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ता है
कि तस्वीर वाले एपिसोड ने इसको धक्का पहुंचाया है.
कहावत है कि काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाए, एक लीक काजल की लागिहैं पै लागि जाए यानि काजल की कोठरी में कैसा ही सयाना, होशियार, बुद्धिमान भी जाए पर काजल का कुछ दाग तो लगेगा
ही ! हाकम सिंह के काजल के साम्राज्य पर भी यह बात लागू होती है.
न्याय-नैतिकता का तकाज़ा तो पदमुक्ति है पर चूंकि आप उत्तराखंड
पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी हैं तो यह आप को ही तय करना है कि हाकम के काले साम्राज्य
की तस्वीरें वायरल होने के बाद बेरोजगारों के भविष्य से जुड़ी जांच पर, यह काली छाया न पड़े, इसके लिए आप क्या उपाय करेंगे.
सादर,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश मैखुरी
गढ़वाल सचिव
भाकपा(माले)
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