पहाड़ में एक शब्द प्रयोग होता है- किटकिनदार. किटकिनदार का मतलब है छोटा ठेकेदार, जिसे अंग्रेजी में पेट्टी कांट्रैक्टर कहते हैं. वैसे पेट्टी (petty) का हिंदी तर्जुमा है- क्षुद्र, तुच्छ, अल्प आदि-आदि. अंग्रेजी से हिंदी तर्जुमे की सहूलियत के लिए हिंदी में पेट्टी
कांट्रैक्टर को उपठेकेदार कह सकते हैं और जैसा पहले ही उल्लेख है कि पहाड़ में इसे किटकिनदार
कहते हैं !
रहा प्रश्न जांच की किटकिनदारी का तो जैसा ठेके में होता
है कि बड़ा ठेकेदार, छोटे ठेकेदार को थोड़ा सा किटकिन दे देता
है, वैसा ही हमारे यहाँ एक जांच में भी हो रहा है !
हुआ यूं कि 15 जुलाई को हेलंग में घास लाती महिला से सीआईएसएफ़
और पुलिस द्वारा घास छीनने की घटना के खिलाफ पूरे उत्तराखंड उद्वेलित हुआ. चमकते-दमकते
चेहरे और ढीली-ढाली शरीर भंगिमा अर्थात बॉडी लैंग्वेज़ वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह
धामी को घटना के छह दिन बाद समझ में आया कि राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें
भी इस घटना पर कुछ करना चाहिए ; सो उन्होंने ट्वीट किया ! शासन करने
का उनका प्रिय शगल है- कमेटी बनाओ, जांच बैठाओ ! हेलंग के मामले
में भी उन्होंने यही किया, कमिश्नर को उन्होंने जांच का आदेश
दिया. यह दीगर बात है कि ट्वीट में उन्होंने थोड़ा फुरतीला दिखने की कोशिश करते हुए
कहा कि गढ़वाल कमिश्नर को त्वरित जांच करने का आदेश दिया गया है.
कमिश्नर साहब ने त्वरित का अर्थ मुख्यमंत्री के इस प्रकरण
में प्रतिक्रिया के समानुपाती समझा होगा, इसलिए त्वरित आदेश का
पालन कच्छप गति से हो रहा है ! घटना को महीना भर होने में दस दिन शेष हैं और जांच नौ
दिन में चले अढ़ाई कोस वाली अवस्था में है, तेजी तो कहीं नजर नहीं
आ रही.
नज़र तो तब से कमिश्नर साहब भी नहीं आए. हाँ, जिन महिलाओं से घास छीना गया, उनके घर दो बार चमोली
के अपर जिलाधिकारी अभिषेक त्रिपाठी जरूर चले गए हैं. दोनों बार वे इस बात का उल्लेख
करना नहीं भूले कि उन्हें कमिश्नर साहब ने भेजा है.
दो बार चमोली के अपर जिलाधिकारी के जांच पर जाने से ही
ऐसा प्रतीत होता है कि इस जांच में कमिश्नर साहब ने अपर जिलाधिकारी को किटकिनदार बनाया
है. जांच का मुख्य ठेका कमिश्नर साहब के नाम खुला. इस बरसात के
मौसम में जब ऑल वैदर रोड भी ऑल स्लाइडिंग रोड में तब्दील हो चुकी है तो कमिश्नर साहब
ने सोचा होगा, कोई यात्रा सीजन में बद्रीनाथ जाना तो है नहीं
तो कौन उतनी दूर हेलंग जाए ! इसलिए उन्होंने अपर जिलाधिकारी को अपने नाम खुले जांच
के ठेके में पेट्टी कांट्रैक्टर यानि किटकिनदार बना दिया
!
कमिश्नर साहब के इस कदम से हम अल्प ज्ञानियों को भी यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ कि सिर्फ ठेकेदारी में ही किटकिनदारी व्यवस्था नहीं है, सरकारी जाँचों में भी यह व्यवस्था चल सकती है. लेकिन इतनी बड़ी जांच की कम किटकिनदारी बांटी कमिश्नर साहब आपने ! सिर्फ अपर जिलाधिकारी को ही क्यूँ, थोड़ी किटकिनदारी उपजिलाधिकारी जोशीमठ को भी मिलती, थोड़ा तहसीलदार, नायब तहसीलदार और पटवारी को भी देते. ये बेचारे खामखां जांच के किटकिनदार अपर जिलाधिकारी के साथ भजराम हौलदारी कर रहे हैं. पिछली बार तो बेचारी उपजिलाधिकारी महोदया को इस मुफ्त की भजराम हौलदारी में बैठने को कुर्सी तक नसीब नहीं हुई !
मजबूरन बेचारी उपजिलाधिकारी महोदया को उन महिलाओं के बगल में जमीन पर बैठना पड़ा, जिनसे सीधे मुंह बात करना उन्हें गवारा नहीं था, जिन्हें उन्होंने इस लायक भी न समझा कि उनका दिया प्रार्थना पत्र पकड़ सकें !
वैसे कमिश्नर साहब जब जांच की ऐसी किटकिनदारी बाँट ही रहे थे तो बेचारे जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने क्या बिगाड़ था ? क्या हुआ जो आंदोलनकारी उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं, उन पर टीएचडीसी के कारिंदे की तरह काम करने का आरोप लगा रहे हैं ! और नहीं तो अपने विरुद्ध लगे आरोपों की ही जांच की किटकिनदारी खुराना साहब को सौंपी जा सकती थी ! जब जिलाधिकारी के विरुद्ध मामले में आरोप लगे हों और तब उनके अधीनस्थ अपर जिलाधिकारी को जांच का किटकिनदार बनाया जा सकता तो है तो अपने विरुद्ध आरोपों की जांच की किटकिनदारी स्वयं जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को क्यूँ नहीं दी जा सकती ?
यह दिव्य ज्ञान भी तो हम अल्पज्ञानियों को कमिश्नर के जांच के मुख्य ठेकेदार बनने के
बाद ही प्राप्त हुआ कि जिलाधिकारी के विरुद्ध आरोप हों तो भी उनसे नीचे के अफसर यानि
अपर जिलाधिकारी से जांच करवाई जा सकती है. अधीनस्थ अफसर अपने से उच्च अफसर पर आरोप
होने के बावजूद मामले की जांच करे, यह तो उच्च अफसर की तौहीन
है, कमिश्नर साहब ! इससे बेहतर तो यह कर दीजिये कि खुराना साहब
को खुद उनके विरुद्ध लगे आरोपों का जांच अधिकारी बना दीजिये ! जब शर्म-ओ-हया के सारे
पर्दे उतार फेंके गए हैं तो इसी मामले में क्या लिहाज करना !
वैसा इस बात का जवाब तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
को भी देना चाहिए कि उन्होंने हेलंग प्रकरण की जांच का जिम्मा कमिश्नर को सौंपा था
कि वे जांच को ठेकेदारी की तर्ज पर किटकिन बांटने के अधिकारी बनाए गए हैं ? किटकिनदारी बांटने को जांच का नाम देने की क्या आवश्यकता, उसके लिए शासन-प्रशासन की ढेर सारी योजनाएं हैं, जिनमें
कुछ खाने-कमाने को भी होगा ! जांच की इस किटकिनदारी से तो कुल मिलाकर पीड़ितों का उपहास
होगा और बदले में जांच के ठेकेदारों- किटकिनदारों तथा ऐसी ठेकेदारी बांटने वाली शासन-सत्ता
के प्रति आक्रोश बढ़ेगा ! यही ढर्रा रहा तो “धाकड़” कीमत चुकाने को तैयार रहिएगा धामी
जी.
-इन्द्रेश मैखुरी
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