सुबह फ़ेसबुक देख रहा था, उसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के जन्मदिन की
बधाइयाँ चल रही थी. कल ही पता चला कि मुख्यमंत्री जी का जन्मदिन संकल्प दिवस के
रूप में मनाया जाना है. राज्य की जैसी स्थिति हो, लेकिन
मुख्यमंत्री जी के जन्मदिवस और उनके धरती पर आने को धन्य-धन्य दिवस के रूप में
मनाने के लिए तो कुछ लोग संकल्पित दिख ही रहे हैं.
तभी फोन बजा, देहरादून के एसटीडी
कोड वाला लैंडलाइन नंबर स्क्रीन पर आया. फोन उठाया तो उधर से अर्द्ध यांत्रिक स्वर
में एक महिला ने कहा कि यह मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन है. स्वर को
अर्द्धयांत्रिक इसलिए कहा कि कस्टमर केयर वाले नंबरों के जैसे, पूरी तरह तरह यांत्रिक नहीं था, वह स्वर !
हम इस प्रदेश
में वो हैं, जिनका सामना मुख्यमंत्री,
किसी सूरत में नहीं करना चाहते तो मैं हैरत में था कि फिर मुख्यमंत्री कार्यालय से
फोन क्यूँ ?
अर्द्धयांत्रिक महिला स्वर ने कहा – आशा करते हैं कि
आपके पत्र का समाधान आपको प्राप्त हो चुका होगा.
मैंने पूछा – कौन सा पत्र ? असल में मेरा सवाल था कि कौन सा वाला पत्र क्यूंकि प्रदेश के सवालों पर
निरंतर ही मुख्यमंत्री और अन्य संबंधित लोगों को, मैं पत्र
भेजता ही रहता हूँ.
तब महिला स्वर ने बताया कि मेरे द्वारा हेलंग की
महिलाओं का उत्तराखंड पुलिस अधिनियम 2007 में गलत चालान किए जाने की जो शिकायत की
गयी थी, यह उसके संबंध में बात हो रही है.
दो महीने पहले, 15 जुलाई को हेलंग
में सीआईएसएफ़ और उत्तराखंड पुलिस द्वारा घास लाती महिला से घास छीनी गयी. उसके बाद
इन महिलाओं को छह घंटे तक जोशीमठ कोतवाली में बैठाये रखा गया और फिर उत्तराखंड
पुलिस अधिनियम 2007 की धारा 81 के तहत 250 रु का चालान करके छोड़ा गया. इसी संदर्भ
में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक
को 02 अगस्त को मैंने पत्र भेज कर कहा था कि यह चालान न केवल गलत है, बल्कि उत्तराखंड पुलिस एक्ट का अतिक्रमण करके किया गया.
ऐसा मैंने क्यूँ कहा, इसके लिए
मैं ज्ञापन में दिये गए तथ्य, यहाँ पुनः दोहरा देता हूँ.
81 पुलिस एक्ट में जिन अपराधों का उल्लेख है, वे निम्नलिखित हैं :
(क) नशे में धुत्त तथा दंगा या जनता में
उपद्रव करते हुये पाया
जाने
पर;
(ख) पुलिस, अग्निशमन दल या किसी अन्य आवश्यक सेवा को झूठा
आलार्म
लगाकर गुमराह करने या जानबुझ कर अफवाह फैलाने
पर;
हेलंग के
मामले में बिन्दु संख्या (ख) तो लागू नहीं होता तो जाहिर है कि बिन्दु संख्या (क)
के तहत चालान किया गया होगा. बिन्दु संख्या- क- में कैसे चालान किया गया ? नशे में धुत्त
हो कर दंगा तो ये महिलाएं नहीं कर रही थी, अपने जंगल और चारागाह बचाने को नशे में धुत्त हो
कर दंगा करने की श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता है ! बिंदु (क)
का दूसरा भाग है कि जनता में उपद्रव करते हुए पाये जाने पर. टीएचडीसी के अफसरों से
लेकर जिलाधिकारी चमोली तक कह रहे हैं कि इन महिलाओं के साथ कोई नहीं है तो जनता
में उपद्रव ये कैसे फैला सकती हैं ? पीठ पर घास का
भारी-भरकम बोझ लाती महिला, उपद्रव कैसे फैलाएगी ?
अब ढाई सौ रुपए के चालान पर चर्चा करते हैं.
उत्तराखंड पुलिस अधिनियम के धारा 81 की उपधारा 3 कहती है -
“इस धारा में उल्लिखित अपराधों का, इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त
पुलिस
अधिकारियों द्वारा, विहित न्यूनतम राशि की आधी राशि जमा
करने
पर घटना स्थल पर ही शमन किया जा सकता है।”
इससे स्पष्ट है कि 250 रुपये का चालान तो घटनास्थल पर यानि हेलंग में किया जा सकता था. जोशीमठ कोतवाली में छह घंटे बैठाए रखने के बाद 250 रुपये का चालान करने स्पष्ट तौर पर उत्तराखंड पुलिस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है.
उत्तराखंड पुलिस अधिनियम की धारा 81 को पढ़ने से
साफ जाहिर होता है कि हेलंग की महिलाओं का गलत चालान किया गया है. लेकिन सरकारी
तंत्र और वह भी पुलिस यदि आसानी से अपनी गलती मान लें तो फिर उनकी बात ही क्या रह
जाएगी ?
तो मुख्यमंत्री कार्यालय से आए फोन पर बताया गया
कि पुलिस ने वही पुरानी कथा दोहराई कि हेलंग में खेल मैदान के
निर्माण में बाधा पहुंचाने पर उपजिलाधिकारी, जोशीमठ के लिखित
आदेशों पर तहसीलदार, जोशीमठ की मौजूदगी में शांति व्यवस्था
बनाए जाने के मद्देनजर 81 पुलिस एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही करके उन्हें परिजनों के
सुपुर्द किया गया. पुलिस ने यह भी कहा कि उक्त संदर्भ में जांच गढ़वाल कमिश्नर
द्वारा की जा रही है और थाना स्तर से अलग से कोई कार्यवाही की आवश्यकता प्रतीत
नहीं है.
अरे महाराज, जांचकर्ताओ थाना
स्तर से कार्यवाही की तो मांग ही नहीं की गयी. मांग तो थाने(कोतवाली) पर करने की है, उन पर है,
जिन्होंने गलत चालान किया. आखिर जिन्हें खुद के कानून की जानकारी नहीं, उन्हें थाने या कोतवाली में क्यूँ बैठाये रखना है ?
चमोली पुलिस का यह तर्क कि उन्होंने तो उपजिलाधिकारी, जोशीमठ के आदेश से और तहसीलदार, जोशीमठ की मौजूदगी
में कार्यवाही की, बेहद हास्यास्पद और बचकाना है.
उपजिलाधिकारी और तहसीलदार ही नहीं बल्कि चमोली के जिलाधिकारी के भी परियोजना कंपनी
के कारिंदे की तरह कार्य करने के खिलाफ तो आंदोलनकारी अभियान चलाये ही हुए हैं.
लेकिन चमोली जिले की पुलिस अधीक्षक महोदया या पुलिस में जिनका भी यह तर्क है कि
उन्होंने प्रशासन के कहने पर कार्यवाही की, वे बताएं कि
महिलाओं को छह घंटे तक पानी भी नहीं पूछना है, यह भी उन
प्रशासकीय आदेशों का हिस्सा था, जिनके तहत आपने कार्यवाही की
? पुलिस अधिनियम का उल्लंघन करके चालान करना है, इसका भी प्रशासकीय आदेश था ? घास लाती महिला से घास
छीन कर, उसे कोतवाली ले जाना है, ऐसा
कोई प्रशासकीय आदेश है तो निश्चित ही उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
और हाँ पुलिस जी, जिस प्रशासन का आप हवाले देते घूम रहे हैं, उस प्रशासन के एडीएम और एसडीएम, उन महिलाओं के घर जा चुके दो बार. वही एसडीएम बाकायदा जमीन पर बैठी, जो एक समय उन महिलाओं का ज्ञापन हाथ में पकड़ने को तैयार नहीं थी.
एडीएम ने
उनसे कहा कि कोई मलबा नहीं डालेगा, कोई उन्हें परेशान नहीं करेगा.
प्रशासन तो कदम पीछे खींच चुका, आप कब तक उस प्रशासन की पिपरी
बजाते रहेंगे, पुलिस जी ? सनद रहे कि अमानवीयता
और ड्यूटी दो अलग-अलग बातें हैं, पुलिस जी. हेलंग में जो
किया गया, वह ड्यूटी नहीं अमानवीयता थी.
बहरहाल, मुख्यमंत्री
कार्यालय से जो फोन आया, उसको करने वाले महिला स्वर ने पुलिस
का पक्ष सुनाने के बाद मुझसे कहा कि क्या सहमत हैं आप इससे ?
मैंने जवाब में वही कहा, जो ऊपर लिखा हुआ है. उन्होंने कहा- हम आपकी ओर से लिख देते हैं कि मैं इस
निराकरण से सहमत नहीं हूँ,
कृपया सही निराकरण जल्द से जल्द करने की कृपा करें.
बड़ा भोला है मुख्यमंत्री जी आपका कार्यालय और उतनी ही
भोली है, आपकी जांच ! पुलिस ने कुछ कहा तो आपने मान लिया,मैंने
उससे असहमति जताई तो उसे भी दर्ज कर लिया ! यह तो पोस्टमैन वाली भूमिका है, उधर से चिट्ठी आई तो इधर सरका दी, इधर की चिट्ठी
उधर बढ़ा दी ! इसमें जांच कहां है ?
हेलंग की घटना को दो महीने हो चुके हैं और अभी तक
उत्तराखंड सरकार जांच की चिट्ठी ही इधर से उधर सरका रही है. यही इस सरकार की मोडस ओपरेंडी (modus operandi) यानि काम करने का तरीका है.
जन्मदिन मुबारक हो मुख्यमंत्री जी, आप मस्त रहें, प्रसन्न रहें और इसी तरह कमेटी-कमेटी, जांच-जांच खेलते रहें !
-इन्द्रेश
मैखुरी
1 Comments
हद्द है प्रशासन को भी शासन को भी
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