प्रति
अध्यक्ष महोदया
विधानसभा
उत्तराखंड,
देहरादून.
विषय : उत्तराखंड विधानसभा में भ्रष्टाचार के अंतर्गत
की गयी अवैध नियुक्तियों के संबंध में
महोदया ,
उपरोक्त विषय पर निवेदन करना है कि समाचार पत्रों के माध्यम से यह जानकारी
प्राप्त हुई है कि उत्तराखंड विधानसभा में हुई भ्रष्टाचार के कारण अवैध
नियुक्तियों के संबंध में महोदया के द्वारा श्री डी.के. कोटिया की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की गयी है
यह कि श्री डी.के. कोटिया, उत्तराखंड पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल में
उपाध्यक्ष रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल एक्ट 1976 की धारा
3 (11) के अनुसार :
“ On ceasing to hold office, the Chairman,
Vice-Chairman or other member shall be ineligible for further employment under
the State Government, or any local or other authority under the control of the
State Government, or any corporation or society owned or controlled by the
State Government :”
उपरोक्त प्रावधान के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि
कमेटी का गठन कानून सम्मत नहीं है और ऐसी कमेटी की रिपोर्ट का कोई वैधानिक
अस्तित्व नहीं है.
समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के
माध्यम से यह तथ्य सामने आया है कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्षों
द्वारा जितनी भी नियुक्तियाँ की गयी हैं,वे बिना पारदर्शिता
के हैं और उनमें भाई-भतीजावाद हुआ है. समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से
यह तथ्य सामने आया है कि पूर्व अध्यक्षों द्वारा अपने बेटे -बहुओं और अपने
नज़दीकियों को बिना किसी पारदर्शिता के, नियुक्तियाँ दी गयी
हैं और इस तरह से सारी नियुक्तियाँ wrongful gain और wrongful
loss की श्रेणी में आती हैं. जिनको नियुक्तियाँ दी गयी हैं, उनको wrongful gain हुआ है और जो व्यक्ति दक्ष होते
हुए भी नियुक्ति पाने से रह गए हैं, उनको wrongful
loss हुआ है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988
में undue advantage और gratification को
इस तरह परिभाषित किया गया है :
“ [(d) “undue
advantage” means any gratification whatever other than
legal remuneration.
Explanation for the purpose of this clause-
(a)
The
word “gratification” is not limited to pecuniary gratification or to
gratification estimable in money ; ”
यह कि ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने लोगों को विधानसभा में नियुक्त करने के लिए पहले तो कोई नियमावली नहीं बनाई गयी और जब बनाई गयी तो नियमवाली के अनुसार कोई सार्वजनिक परीक्षा आयोजित नहीं की गयी और पूर्व अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने लोगों की नियुक्तियाँ की गयी, जो सरासर भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है. पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 16(a) का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया गया है.
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष, जिनके द्वारा
नियुक्तियाँ की गयी हैं एवं जिन अभ्यर्थियों को नियुक्त किया गया है, सभी के द्वारा भ्रष्टाचार का अपराध कारित किया गया है.
यह
कि सभी विधानसभा अध्यक्षों द्वारा नियुक्ति करते समय अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व निर्धारित नहीं
किया गया है और इस तरह से अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति के
लोगों को उनकी सार्वजनिक नौकरियों (job) से वंचित किया गया
है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 की उपधारा 1 के स्पष्टीकरण
में खंड E इस प्रकार है : “practicing any profession
or the carrying on of any occupation, trade or business or employment in any
job which other members of the public, or any section thereof, have right to
use or have access to ; ”
इस
तरह से सभी पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अनुसूचित
जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का
भी अपराध कारित किया गया है.
अतः महोदया से निवेदन है कि सभी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, जिनके द्वारा विधानसभा में भ्रष्टाचार युक्त नियुक्तियाँ की गयी हैं एवं जिन लोगों को भ्रष्टाचार के कारण नियुक्तियाँ मिली हैं, के विरुद्ध संबंधित थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने एवं संबंधित थाने को जांच की अनुमति देने की कृपा करें.
सधन्यवाद,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश
मैखुरी,
गढ़वाल सचिव,
भाकपा(माले)
(पत्र ईमेल और व्हाट्स ऐप द्वारा प्रेषित)
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