उत्तराखंड के चमोली जिले की थराली तहसील में कुलसारी
के बाजार से कुछ किलोमीटर ऊपर ग्राम पास्तोली के राजस्व ग्राम ककड़तोली में एक
स्टोन क्रशर लगाने की तैयारी काफी अरसे से चल रही है. इस इलाके में लगाए जा रहे
स्टोन क्रशर के खिलाफ बीते तीन महीने से महिलाएं और युवा लगातार आंदोलनरत हैं.
इनका मानना है कि इस दूरस्थ पहाड़ी इलाके में स्टोन क्रशर लगने से यहां की आबोहवा
प्रदूषित हो जाएगी. साफ पानी का जल स्रोत प्रदूषित होगा. जहां स्टोन क्रशर लग रहा
है, उसके नजदीक प्राइमरी स्कूल है, यहां पढ़ने वाले
बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. खेती, पशुपालन
सब प्रभावित होगा. और तो और जो पतली सी सड़क, इनके गांव को
राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ रही है, वह भी रात-दिन चलने वाले सैकड़ों भारी भरकम ट्रकों का बोझ नहीं सह सकेगी.
तीन महीने बीतने के बाद और प्रशासनिक अमले का झुकाव
स्टोन क्रशर लगाने वाले के पक्ष में होने के बावजूद, इस इलाके
में स्टोन क्रशर लगा पाना संभव नहीं हुआ तो इस मामले में तब पुलिस की एंट्री हुई.
07 सितंबर को कर्णप्रयाग के क्षेत्राधिकारी की ओर से छह
महिलाओं और कुछ पुरुषों को नोटिस भेजा गया कि उनके खिलाफ स्टोन क्रशर लगाने के काम
में व्यावधान उत्पन्न करने की शिकायत है तो वे नोटिस मिलने के तीन दिन के अंदर
क्षेत्राधिकारी कार्यालय, कर्णप्रयाग आ कर बयान अंकित करवाएँ.
कर्णप्रयाग यहाँ से लगभग चालीस किलोमीटर दूर है तो जाहिर सी बात है कि बयान दर्ज
करवाने से ज्यादा उद्देश्य आंदोलन कर रही महिलाओं को हैरान परेशान करना है. जिस
नोटिस में तीन दिन की अवधि बयान देने के लिए निर्धारित है,
उसमें पत्र के ऊपर कोई तारीख भी नहीं डाली गयी है !
लेकिन इससे अधिक हैरत की बात है कि यह इलाका, पुलिस के क्षेत्राधिकार में है ही नहीं, यह ग्रामीण
इलाका है, जो राजस्व पुलिस के क्षेत्राधिकार में है. यह गज़ब
है कि क्रशर वाले के हक में पुलिस क्षेत्राधिकारी अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जा
कर, एक गाड़ी पुलिस भेज कर महिलाओं को नोटिस दे आए. इस सिलसिले में जिले की पुलिस अधीक्षक और
प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को पत्र भेजा गया. दोनों ने मामले को दिखवाने की बात
कही. पुलिस अधीक्षक ने बाद में यह भी कहा कि उन्होंने सीओ को समझा दिया है.
लेकिन बात इतने पर ही नहीं रुकी. अगले दिन यानि 08
सितंबर को थराली थाने की पुलिस ने दो
युवाओं को फिर क्रशर वाले की शिकायत के मामले में थाने बुलाया और उनके साथ अभद्र
व्यवहार किया, गाली गलौच की. इस आंदोलन को चला रहे युवा कपूर
सिंह रावत को पहले थाने में आने ही नहीं दिया गया और फिर उन्हें भी धमकाने की
कोशिश की गयी. इस मामले का पता चलने पर पुनः चमोली जिले की पुलिस अधीक्षक और
प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को सूचित किया गया. पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार ने
तत्काल ही उत्तर दिया कि वे एसपी को बोल रहे हैं.
यह ऊपर से आए फोन का दबाव रहा होगा कि थराली थाने के
थानाध्यक्ष और अन्य पुलिस कर्मी, युवाओं से उग्र व्यवहार
करते-करते अचानक ठंडे पड़ गए. घटना का ब्यौरा देते हुए इस आंदोलन को संचालित कर रहे
साथी कपूर सिंह रावत ने बताया कि थानाध्यक्ष समेत सभी पुलिस कर्मी बेहद उग्र
व्यवहार कर रहे थे. अचानक थानाध्यक्ष को एक फोन आया और उसके बाद उनका व्यवहार बेहद
शांत हो गया. पहले वे सीधे मुंह बात करने को राजी नहीं थे और फोन कॉल के बाद
कुर्सी ऑफर करने लगे. उसके बाद ही जिन दो युवाओं को थाने लाया गया, उन्हें पुलिस ने छोड़ा.
पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार तक सूचना पहुँचने के
बाद उनके तत्काल हस्तक्षेप से ये युवा पुलिस के कोप के भाजन होने से बच सके. पर
सवाल है कि थराली पुलिस और कर्णप्रयाग के क्षेत्राधिकारी को राजस्व पुलिस के
क्षेत्र में पड़ने वाले इलाके में इतनी रुचि क्यूँ है ? क्यूँ वे अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जा कर क्रशर के विरुद्ध आंदोलन
करने वालों को डराने-धमकाने पर उतारू हो गए ? क्या क्रशर
वाले का दबाव इतना भारी है कि वह पुलिस से अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण भी
करवा सकता है ? दूसरे को कानून का पाठ पढ़ाने वाली पुलिस खुद
खुलेआम कानून की सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है.
पुलिस महानिदेशक महोदय और पुलिस अधीक्षक महोदया, आपके
हस्ताक्षेप से 08 सितंबर को तो ये युवा किसी अवांछित घटना का शिकार होने से बच गए
पर एक बार पटवारी क्षेत्र में घुसने वाली थराली पुलिस, फिर
वहां घुस सकती है. आपसे निवेदन है कि उनको ताकीद करें कि क्रशर वाला कितना ही बड़ा
क्यूँ न हो, कानून से बड़ा नहीं है,
संविधान से बड़ा नहीं है. जो क्रशर के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, वे भारत के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उपयोग कर रहे हैं. क्रशर
वाले के पास दौलत का पहाड़ भी हो और वह उस दौलत के पहाड़ की चोटी पर भी बैठा हो तो
भी वह देश के कानून और भारत के संविधान से बड़ा नहीं हो जाएगा !
-इन्द्रेश
मैखुरी
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