एक युवा राजनीतिक कार्यकर्ता जो दो बार विधानसभा का
चुनाव लड़ चुका हो, वह सिर्फ
इसलिए मारा जाता है क्यूंकि वह दलित है और उसने सवर्ण युवती से शादी कर ली
थी ! किसी सभ्य समाज के लिए ऐसी बात की कल्पना भी शर्मसार करने वाली होनी चाहिए. लेकिन
हमारी सारी सभ्यता के सारे पाए तो मनुष्य के मनुष्य से घृणा के आधार पर खड़े हैं ! इसलिए
जाति के तंगनजर खांचों को तोड़ने वाले विवाह को हमारा समाज, बेइज्जती समझता है और जातीय श्रेष्ठता के मद में चूर हो कर हत्या करने को
उस गयी इज्जत की वसूली समझता है.
जाति के इस क्रूर नकली श्रेष्ठताबोध ने एक बार फिर एक
जीवन लील लिया. जगदीश चंद्र एक युवा राजनीतिक कार्यकर्ता थे, जो उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के टिकट पर अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा क्षेत्र
से दो बार विधानसभा का उपचुनाव लड़ चुके थे. उनका कसूर इतना ही था कि उन्होंने एक सवर्ण
युवती से शादी कर ली, जो अपने सौतेले बाप से पहले से उत्पीड़ित
थी.
इसी 27 अगस्त को अल्मोड़ा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिखे पत्र में जगदीश चंद्र की पत्नी गीता ने अपने सौतेले पिता से खतरे की आशंका व्यक्त करते हुए सुरक्षा की गुहार लगाई थी.
इस पत्र को
पढ़ने से साफ हो जाता है कि गीता का सौतेला पिता जोगा सिंह, उसका लगातार उत्पीड़न करता था. इस उत्पीड़न से मुक्ति पाने के लिए ही उसने जगदीश
चंद्र से शादी की थी. लेकिन गीता को उसके सौतेले पिता के जुल्म
से बचाने का साहस, जगदीश चंद्र के लिए जानलेवा सिद्ध हुआ.
यह सिर्फ जातीय उत्पीड़न की घटना मात्र नहीं है बल्कि महिला
उत्पीड़न और जातीय उत्पीड़न, इसमें गुंथा हुआ है. गीता अपनी जिंदगी
में इसलिए उत्पीड़ित होती है कि उसके अपने पिता ने उसकी मां का परित्याग कर दिया और
उसकी मां ने जोगा सिंह नामक व्यक्ति के साथ अपनी जिंदगी जोड़ ली. जोगा सिंह, गीता का लगातार उत्पीड़न करता है और वह अपनी मर्जी से शादी करती है तो उसके
पति को मौत के घाट उतार देता है. जातीय श्रेष्ठता का यह नकली बोध ऐसे ही कुंठित परपीड़कों
का हथियार है.
अल्मोड़ा जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को 27 अगस्त को जब गीता सुरक्षा की गुहार लगाते हुए पत्र लिख चुकी थी तो इस दंपति की सुरक्षा का बंदोबस्त क्यूं नहीं किया गया ? कुछ न्यूज़ पोर्टल्स में अल्मोड़ा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पी.के.राय का बयान छपा है कि यह मामला राजस्व पुलिस क्षेत्र का है. इतने गंभीर मसले में, जहां जीवन के खतरे की आशंका प्रकट की गयी हो और जहां पाँच दिन के भीतर वह आशंका, सच भी साबित हो गयी हो, यह बयान बेहद लचर, गैरजिम्मेदाराना और इस बात का सबूत है कि शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया.
21 अगस्त को शादी हुई, 27 अगस्त को गीता ने अल्मोड़ा के वरिष्ठ
पुलिस अधीक्षक को पत्र लिख कर खतरे की आशंका प्रकट की और 01 सितंबर को उसकी आशंका सच
भी साबित हो गयी.
चट मंगनी, पट ब्याह की कहावत तो
पुरानी है पर जाति के जहर से भरा समाज चट शादी
और पट हत्या की नयी पीड़ादायक,शर्मनाक कहावत गढ़ रहा है. अफसोस
यह कि जाति के जहर से भरे उसके अच्छे-खासे हिस्से को अपने इस कृत्य पर तनिक भी शर्मिंदगी
नहीं होगी. न्यूज़ पोर्टल्स में प्रकाशित विवरण के अनुसार युवती के सौतेले बाप ने राजस्व
पुलिस के सामने स्वीकार किया कि दलित युवक से शादी के कारण ही यह हत्या की गयी है.
मनुष्य के जीवन का मोल जाति के आधार पर तय करने वाली यह
धारणा, हमारे समाज में गहरे पैठी हुई है. उत्तराखंड में लोग इस जहर के होने को भी
स्वीकार नहीं करते. लेकिन जाति का यह जहर समय-समय पर अपने क्रूर और बदरंग चेहरा के
साथ प्रकट होता रहता है. जबतक जाति के इस जहर का समूल नाश नहीं हो जाता, तब तक तो किसी भी जोगा सिंह या जोगा प्रसाद की मनुष्यता की हत्या यह जहर करेगा
और मृत मनुष्यता का प्रतिनिधि जोगा सिंह, किसी जगदीश चंद्र को
सिर्फ उसकी जाति की वजह से मौत के घाट उतार देगा. जाति के जहर का समूल नाश ही मनुष्यता
की रक्षा और मनुष्य द्वारा मनुष्य के बीच खड़े इस जहरीले हत्यारे भेदभाव का खात्मा कर
सकता है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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