देहरादून में मूसलाधार बारिश हो रही है. इसी मूसलाधार
बारिश के बीच परेड ग्राउंड के एक छोर पर कुछ युवा नाटक कर रहे हैं. एक पुलिस की जीप
भी पास ही खड़ी है, लेकिन
लगता है कि बारिश के चलते जीप के अंदर ही पुलिस वालों ने बैठा रहना मुनासिब समझा. कुछ
कांस्टेबल छाता लेकर बाहर भी खड़े हैं. बारिश से पहले जरूर इन युवाओं को यहाँ से हटाने
की कोशिश उन्होंने की, लेकिन
बारिश के बाद उन्हें लगा होगा कि उनका काम बारिश ही कर लेगी !
मूसलाधार बारिश के बीच इस नुक्कड़ नाटक के पात्र बड़े रोचक
हैं. इनमें कोई सचिव है, कोई मुख्यमंत्री, कोई पुलिस तो कोई सिंचाई मंत्री. लंबी मूछों और सिर्फ पर गोल हिमाचली टोपी
के साथ सिंचाई मंत्री का पात्र तो उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री से काफी मिलता जुलता
है.
लेकिन मूसलाधार बारिश के बीच नाटक करने वाले ये युवा कौन
हैं ? ये डिप्लोमाधारी इंजीनियर हैं. है ना अजीबोगरीब बात, डिप्लोमाधारी इंजीनियर और भीषण बारिश के बीच नाटक, ऐसा
क्यूँ ? दरअसल इन युवाओं के भविष्य के साथ जिस नाटक के जरिये
खिलवाड़ किया जा रहा है, उससे मुक़ाबला करने के लिए ये मूसलाधार
बारिश के बीच नुक्कड़ नाटक कर रहे हैं. और सिर्फ नाटक ही नहीं कर रहे हैं, ये धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, आमरण अनशन पर दो चरण में
इनके दो साथी बैठ चुके हैं और अब तीसरा युवा आमरण अनशन पर बैठाया जा चुका है.
पर सवाल फिर वहीं खड़ा है कि क्या इनकी मांग इतनी बड़ी या
जटिल है कि वह मानी नहीं जा सकती, इसलिए उत्तराखंड सरकार इनसे निपटने
को पुलिस को आगे कर रही है ?
जी नहीं, मांग तो इनकी बहुत सामान्य
है. दरअसल बात इतनी है कि बीते बरस उत्तराखंड लोकसेवा आयोग ने नवंबर 2021 में संयुक्त
कनिष्ठ अभियंता भर्ती परीक्षा आयोजित की. पहले इस परीक्षा में सिंचाई विभाग के कनिष्ठ
अभियन्ताओं के पद भी इस परीक्षा के दायरे में थे. इन युवाओं ने परीक्षा दी और परीक्षा
पास भी कर ली. लेकिन फिर तकनीकि गड़बड़ी जैसे
कुछ बहाने बना कर सिंचाई विभाग के कनिष्ठ अभियन्ताओं के 228 पदों को इस भर्ती परीक्षा
के दायरे से बाहर कर दिया गया. सड़क पर आंदोलन करते ये युवा, तब
इस मसले में सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज से मिले. सिंचाई मंत्री ने युवाओं को आश्वस्त
करते हुए उनसे परीक्षा की तैयारी करने को कहा.
नवंबर 2021 से नवंबर 2022 आने वाला है और इन युवाओं की
सुनवाई नहीं हुई, सिंचाई मंत्री का आश्वासन हकीकत में नहीं
बादल सका. दिसंबर 2022 में संयुक्त कनिष्ठ अभियंता भर्ती के साक्षात्कार होने हैं.
लेकिन लिखित परीक्षा पास करके,जिन युवाओं को साक्षात्कार की तैयारी
करनी चाहिए थी, उनमें से सैकड़ों इसलिए सड़क पर हैं क्यूंकि सिंचाई
विभाग के 228 पद, इस परीक्षा के दायरे में पुनः शामिल किए जा
सकें.
यह मांग कोई आसमान से तारे तोड़ लाने जैसी असंभव मांग नहीं है. यदि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजने में कोई त्रुटि हुई भी थी तो उसे तत्काल सरकार के स्तर पर ही दुरुस्त कर लिया जाना चाहिए था. कार्यवाही तो उन पर होनी चाहिए, जिन्हें ठीक से अधियाचन बनाना भी नहीं आता. सार्वजनिक तो यह होना चाहिए कि वो कौन था, जिसने इन युवाओं का भविष्य मझधार में डाल दिया, उसके विरुद्ध तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए थी. छह-सात साल में भर्ती निकलेगी और जो उसका अधियाचन भी त्रुटिहीन तरीके से न बना सकें, उन्हें सरकारी पद पर बने रहने का अधिकार क्यूँ होना चाहिए ?
लेकिन बजाय सुधारात्मक कार्यवाही के, इन युवाओं से निपटने का जिम्मा पुलिस के हवाले करके उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री की सरकार, विज्ञापनों में युवाओं की खुशहाली का ऐलान करने में मशगूल है.
जब
परीक्षा पास किए हुए युवाओं के पद गायब हो जाएँ और उनकी मांग सुनने के बजाय उन्हें
देहरादून शहर से दूर एकता विहार के उस कीचड़ और झाड़ियों वाले गड्डे में धकेल दिया जाये
तो इससे युवा खुशहाल नहीं बदहाल होता है, पुष्कर सिंह धामी जी
! विज्ञापन में “सशक्त युवा-समृद्ध उत्तराखंड” कह देने भर से न युवा सशक्त होगा और
ना ही उत्तराखंड समृद्ध ! इन युवाओं पर पुलिसिया ज़ोर आजमाइश करना बंद कीजिये
मुख्यमंत्री जी, इनके भविष्य से खेलना बंद कीजिये !
-इन्द्रेश मैखुरी
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