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चमोली जिले में अफसरों के ट्रांस्फर पर

 









अंततः चमोली जिले के मुख्य विकास अधिकारी वरुण चौधरी (आईएएस) का तबादला हो ही गया. उनकी जगह उधमसिंह नगर में अपर जिलाधिकारी पद पर तैनात पीसीएस अफसर डॉ.ललित नारायण मिश्रा को चमोली जिले का सीडीओ बनाया गया है.














यूं ट्रांस्फर-पोस्टिंग सामान्य-रूटीन प्रक्रिया है, उस पर निगाह रखते हुए भी आम तौर पर मैं उस पर टिप्पणी नहीं करता. अफसरों के आने-जाने से न ज्यादा खुश होता हूं, न दुखी क्यूंकि अंततः अफसर को सत्ता के पक्ष में रहना है और हमको जनता के पक्ष में. इसलिए अफसर से ज्यादा प्यार-प्रेम किसी काम का सिद्ध नहीं होता.


लेकिन वरुण चौधरी के सीडीओ पद से हटाए जाने और बाध्य प्रतीक्षा में रखे जाने का मामला, इस राज्य में व्याप्त प्रशासनिक अराजकता को दर्शाता है. जब से वरुण चौधरी चमोली जिले के सीडीओ बन कर आए, उनके और जिलाधिकारी हिमांशु खुराना के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे. धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बनती गयी कि जिलाधिकारी और सीडीओ, एक दूसरे की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते थे. जिस मीटिंग में हिमांशु खुराना होते, उस मीटिंग में वरुण चौधरी नहीं होते और जिस मीटिंग में वरुण चौधरी होते, उसमें हिमांशु खुराना नहीं. फिर नौबत ये हो गयी कि वरुण चौधरी जिले में हैं तो हिमांशु खुराना नहीं हैं और हिमांशु खुराना जिले में रहेंगे तो वरुण चौधरी नहीं रहेंगे ! पिछले कुछ महीनों से ये सिलसिला जारी था. आखिरी दौर में तो वरुण चौधरी मेडिकल लेकर ही चले गए. वापस लौटने के कुछ दिनों बाद ही उनका तबादला हुआ है और वे बाध्य प्रतीक्षा में रखे गए हैं.


लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ वरुण चौधरी ही क्यूँ हटाए गए, हटाया तो दोनों को जाना चाहिए था. अगर वरुण चौधरी की ओर से संबंधों में खटास थी तो मिठास तो हिमांशु खुराना भी नहीं घोल रहे थे. जिले के सबसे बड़े अफसर होने के नाते अपने अधीनस्थों को साथ लेकर चलने का दायित्व तो हिमांशु खुराना पर ही था, जिसमें वे नाकाम सिद्ध हुए. भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो अफसर एक जिले में तैनात होते हैं और दोनों एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं देखना चाहते, यह तो इस पूरी सेवा और उसकी ट्रेनिंग पर भी प्रश्न चिन्ह है ! ये जिले को क्या आगे ले जाएँगे, जब ये एक दूसरे को साथ ले कर नहीं चल सकते. लेकिन दोनों पर कार्यवाही करने के बजाय एक पर ही कार्यवाही की गयी. और अब पीसीएस अधिकारी को इस पद पर नियुक्त करके क्या शासन ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि निचले कैडर का अफसर नियुक्त होने से हिमांशु खुराना का वर्चस्व प्रशासन पर बना रहे ? इसका संकेत तो यही है. लेकिन जिसके लिए, अपने कैडर का अफसर नियुक्त होने पर प्रशासन को सुगमता से चलाना संभव न हो, उसके हाथ में किसी जिले की कमान क्यूं रहनी चाहिए ?


और क्या वरुण चौधरी के साथ विवाद हिमांशु खुराना का इकलौता विवाद है ? कतई नहीं.


15 जुलाई 2022 को हेलंग में घास लाती महिला से पुलिस और सीआईएसएफ़ द्वारा घास छीनने की घटना हुई. घटना में निरपेक्ष रवैया अपनाने और घटना की जांच करवाने के बजाय हिमांशु खुराना ने एकतरफा रवैया अपनाया और जिन महिलाओं से घास छीना गया, उन्हें ही दोषी ठहराने पर पूरा ज़ोर लगा दिया. इस पूरे घटनाक्रम में उनकी भूमिका ऐसी थी, गोया वे चमोली जिले के जिलाधिकारी न हो कर परियोजना निर्माता कंपनी- टीएचडीसी के कारिंदे हों !


05 सितंबर 2022 को यूकेएसएसएससी, विधानसभा आदि की भर्तियों में धांधली के खिलाफ गोपेश्वर में युवाओं का प्रदर्शन हुआ. युवाओं का ज्ञापान लेने, जिलाधिकारी हिमांशु खुराना सामने आए ही नहीं.  एडीएम अभिषेक त्रिपाठी ज्ञापन लेने आए तो उन्होंने शर्त रख दी कि ज्ञापन वे तब लेंगे, जब युवा पाँच प्रश्नों का जवाब देंगे. पिछले 28 सालों में यह मैंने पहली बार सुना कि ज्ञापन देने के लिए प्रश्न पत्र हल करना पड़ता है या परीक्षा देनी पड़ती है. लेकिन युवाओं ने डीएम-एडीएम की अफ़सरी धौंस पर तीव्र प्रहार किया और जवाब दिया- पाँच नहीं, दस सवालों का जवाब देंगे, उसके बाद नियुक्ति पत्र दे देंगे या घोटालों की सीबीआई जांच करवा देंगे ? इस मुंहतोड़ जवाब के बाद युवाओं ने एडीएम को ज्ञापन देने के अयोग्य करार देते हुए डीएम को ही ज्ञापन देने की घोषणा कर दी. पूरे छह घंटे तक युवा आंदोलनकारी, जिलाधिकारी आवास के बाहर डटे रहे, तब जाकर खुराना साहब ने नमूदार होने की जहमत उठाई.


चमोली जिले के कुलसारी के पास जबरकोट में  बीते चार महीने से लोग स्टोन क्रशर के विरुद्ध आंदोलन चला रहे हैं. 22 सितंबर को महिलाओं समेत कुछ आंदोलनकारियों ने जिलाधिकारी हिमांशु खुराना से मिलने का निश्चय किया. पहले दिन उन्होंने पत्रकारों के जरिये दरियाफ्त किया कि क्या जिलाधिकारी कार्यालय में रहेंगे ? पता चला कि रहेंगे. लगभग सौ किलोमीटर की दूरी तय करके स्थानीय महिलाएं और अन्य आंदोलनकारी जिलाधिकारी कार्यालय गोपेश्वर पहुंचे. लेकिन जिलाधिकारी कार्यालय में नहीं थे. दिन भर महिलाएं उनके दफ्तर के बाहर इंतजार करती रही. जिलाधिकारी हिमांशु खुराना कहाँ थे ? वे नजदीक ही एक खेत में धान काटने का अभिनय कर रहे थे ! 











पहाड़ के खेतों में धान, गेंहू, कोदा, झंगोरा उगाने वाली महिलाएं, उनके दफ्तर के दरवाजे पर खड़ी हो कर स्टोन क्रशर की तबाही से अपनी खेती, हवा-पानी आदि बचाने की गुहार लगा रही थी, उस वक्त घंटों तक जिलाधिकारी हिमांशु खुराना धान काटने का अभिनय करते हुए फोटो सेशन करवा रहे थे ! आखिरकार वे महिलाएं, जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर नारे लगा कर लौट गईं. 












इस तरह देखें तो आम जन हिमांशु खुराना को रास नहीं आते, अपने साथी अफसरों से उनकी पटरी नहीं बैठती तो उन्हें जिले की सबसे बड़ी कुर्सी पर क्यूं बैठाया हुआ पुष्कर सिंह धामी जी ? वरुण चौधरी और हिमांशु खुराना दोनों ही आपस में झगड़ रहे थे तो फिर चौधरी को हटाने और खुराना को बनाए रख कर, पुष्कर सिंह धामी जी और मुख्य सचिव डॉ.एसएस संधू साहब आप क्या जता रहे हैं कि आप दो आईएएस अफसरों के झगड़े में उस अफसर के साथ हैं, जिसे अपने अधीनस्थों से तालमेल बैठना और काम लेना नहीं आता ? हेलंग के प्रकरण के बाद से हिमांशु खुराना को चमोली जिले के जिलाधिकारी पद से हटाने की मांग पूरे प्रदेश में आंदोलनकारियों ने की. अपने साथी अफसर के बाद झगड़े के बावजूद, ऐसे अफसर को कुर्सी पर बैठाये रखना आपकी कौन सी मजबूरी है, पुष्कर सिंह धामी जी ? ऐसे कौन से काम लेते हैं, आप खुराना साहब से, जिनको किसी दूसरे अफसर से नहीं लिया जा सकता ?


-इन्द्रेश मैखुरी      

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