उत्तराखंड में तीन जिलों के जिलाधिकारी बदले गए हैं
और दो जिलों के पुलिस अधीक्षक.
पौड़ी जिला जो अंकिता हत्याकांड के वजह से चर्चा में
बना हुआ है, उसके जिलाधिकारी
और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दोनों को बदला गया है, इन पदों पर तैनात दोनों अफसरों को बाध्य प्रतीक्षा
में रखा गया है.
पर क्या प्रदर्शन आधार रहा होगा ? ऐसा लगता तो नहीं
है. प्रदर्शन और कार्यशैली ही आधार हो तो अफसर क्या इन अफसरों को बदलने वाले सत्ताधीश
ही कुर्सी पर बने रहने लायक नहीं हैं.
प्रदर्शन ही पैमाना हो तो चमोली जिले के जिलाधिकारी
हिमांशु खुराना को कब का बदल दिया जाना चाहिए था, जिनकी न जनता से पटरी बैठी, न जिले में अपने
अधीनस्थ अफसरों से. हेलंग प्रकरण में तो वे जिलाधिकारी से ज्यादा टीएचडीसी
के मुलाज़िम की तरह बर्ताव करते नजर आए. तब से उन्हें हटाए जाने की निरंतर मांग आंदोलनकारी
तो करते ही रहे हैं. पर वे लगता है कि कवच-कुंडल पहन कर आए हैं, जो जमे हुए हैं. अब उन्हें कवच-कुंडल पहनाने वालों को ही तलाशना होगा !
अद्भुत किस्म का आदेश तो उत्तराखंड सरकार के गृह विभाग
ने निकाला. दो जिलों के पुलिस कप्तान बदलने का आदेश निकला है. पौड़ी जिले के वरिष्ठ
पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह चौहान को बाध्य प्रतीक्षा में भेज कर उनकी जगह चमोली जिले
में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात श्वेता चौबे को भेजा गया. श्वेता चौबे को पौड़ी भेजा
गया है तो उनके स्थान पर किसको भेजा गया ? इसका आदेश में कोई जिक्र
नहीं है. ये मुख्यमंत्री के अधीन विभाग का हाल है कि वो एक जिले के पुलिस अधीक्षक पद
पर बैठा अफसर का तबादला करता है, अफसर को तत्काल नयी जगह तत्काल
पदभार ग्रहण करने को कहता है पर उनकी जगह किसी को तैनात नहीं करता ! क्यूँ भई जहां
जगह खाली छोड़ दी है, वहाँ मैच फिक्स नहीं हो सका क्या ? ये प्रशासनिक दक्षता है और तब यह अपेक्षा है कि ये प्रदर्शन के आधार पर नियुक्ति
करेंगे ?
पौड़ी जिले के
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पद पर भेजी गयीं श्वेता चौबे अब तक चमोली जिले में पुलिस अधीक्षक
पद पर थी. इस नाते उनसे कई बार वार्तालाप होता रहा, तीव्र असहमति
के बावजूद बातचीत की गुंजाइश बनी रही. लेकिन यह अफसोस बना रहेगा कि हेलंग में महिलाओं
से घास छीनने की घटना को उन्होंने सिर्फ पुलिस अफसर की नज़र से देखा, महिला की नज़र से से नहीं देखा !
-इन्द्रेश मैखुरी
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