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उत्तराखंड विधानसभा : भ्रष्ट तरीके से नियुक्ति पाने वाले बर्खास्त, भ्रष्ट तरीके से नियुक्ति करने वाले आजाद क्यूँ ?

 






 

उत्तराखंड विधानसभा के तदर्थ कर्मचारियों की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किये जाने से यह पुनः सिद्ध हुआ कि ये नियुक्तियां नियम-विरुद्ध हुई थी.  हालांकि कानूनी दाँवपेंच का यह अंतिम पायदान तो नहीं था, लेकिन फिर भी तात्कालिक रूप से तो यह पुष्ट हुआ है कि ये नियुक्तियां भ्रष्टाचार की जिंदा मिसाल हैं.











लेकिन इसके साथ ही यह सवाल पुनः खड़ा होता है कि जो बैक डोर से नियुक्त हुए, वे बर्खास्त हुए पर जिन्होंने ये बैकडोर से, नियम विरुद्ध नियुक्तियां की और भ्रष्टाचार करते हुए, उत्तराखंड के सुयोग्य युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया, वे आजाद क्यों हैं ? उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यूँ नहीं है ? कार्यवाही तो छोड़िए कार्यवाही की बात तक नहीं हो रही है ! क्या बर्खास्त किए कर्मचारियों स्वयं ही स्वयं को विधानसभा में नियुक्त किया ? ऐसा तो नहीं हुआ ! विधानसभा में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने उन्हें इन पदों की जानकारी दी, आवेदन लिए और फिर नियुक्ति पत्र दिये. भ्रष्टाचार के असली दोषी तो नियुक्ति करने वाले हैं. भ्रष्टाचार के दोषी तो वो नौकरशाह भी हैं, जिन्होंने इन नियम- विरुद्ध और बैकडोर नियुक्तियों को रोकने में कोई रुचि नहीं दिखाई. पूरी प्रक्रिया को देख कर ऐसा लगता है, जैसे कि सारे शक्तिशाली और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों में यह होड़ थी कि कौन अपने प्रिय पात्रों को ज्यादा से ज्यादा पिछले दरवाजे से विधानसभा में खाली पदों पर बैठा सकता है. इसमें उत्तराखंड की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भाजपा-कॉंग्रेस, नेता-नौकरशाह- पत्रकार सब शामिल थे.


इसलिए बैकडोर से नियुक्ति पाये कर्मचारियों की बर्खास्तगी एक बात है, असली कार्यवाही तो नियम विरुद्ध नियुक्ति करने वालों के विरुद्ध होना आवश्यक है. अन्यथा यह होगा कि नियम विरुद्ध नियुक्ति पाने वाला एक समूह हटाया जाएगा और उस खाली जगह को भरने के लिए पिछले दरवाजे से लोगों को प्रवेश करवाने वाले तैयार बैठे होंगे.  


उच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में यह मांग दोहरानी है कि वर्तमान कैबिनेट मंत्री और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल को तत्काल मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल व गोविंद सिंह कुंजवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित  जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए. 


उत्तराखंड विधानसभा में राज्य गठन के समय से हुई सभी नियुक्तियां नियम विरुद्ध हैं, इसलिए 2016 से पूर्व की नियुक्तियों की भी जांच की जाए और नियम विरुद्ध नियुक्तियों के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जाए. 


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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