उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र, जो हफ्ते भर का प्रस्तावित था, बक़ौल विधानसभा अध्यक्ष बिना बिजनेस के दो ही दिन में समेटना पड़ा. इस अल्पकालिक सत्र के बीच प्रदेश में हुए अंकिता भंडारी हत्याकांड का सवाल भी उठता रहा और यह प्रश्न भी कि आखिर वो वीआईपी कौन है, जिसके लिए गंगाभोगपुर के वनंतरा रिज़ॉर्ट में तथाकथित विशेष सेवाएँ देने से इंकार करने पर रिज़ॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य ने अंकिता भंडारी को मौत की नींद सुला दिया ? यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है.
विधानसभा सत्र के दौरान प्रदेश के संसदीय कार्य और वित्त
मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने अंकिता भंडारी प्रकरण में जिस वीआईपी का उल्लेख किया जा
रहा है, उसके बारे में एक रोचक रहस्योद्घाटन किया. विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से
बैक डोर भर्तियों के लिए सुर्खियां बटोर चुके मंत्री जी ने कहा कि वीआईपी तो कमरे के लिए
किया जाना वाला संबोधन है और प्रेसिडेंशियल सुइट को वीआईपी कमरे के रूप में संबोधित
किया जाता है.
अतीत में लगभग ऐसा ही जवाब अंकिता भंडारी हत्याकांड की
जांच कर रही एसआईटी प्रमुख भी दे चुकी हैं.
संसदीय कार्य मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल के बयान से ऐसा
प्रतीत होता है कि अंकिता भंडारी कांड में किसी वीआईपी की संलिप्तता की बात महज अफवाह
है और वीआईपी व्यक्ति नहीं कमरा है !
लेकिन मंत्री जी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यदि कोई वीआईपी
नहीं था या थे तो फिर अंकिता भंडारी की हत्या क्यूँ हुई ? अभी तक तो यही कहा जा रहा है कि किसी कथित वीआईपी को “विशेष सेवा” देने का दबाव पुलकित आर्य ने अंकिता भंडारी
पर डाला, अंकिता ने इंकार किया और इस इंकार की कीमत अंकिता ने
अपनी जान दे कर चुकाई. अगर कोई वीआईपी था ही नहीं तो अंकिता की हत्या का तो उद्देश्य
और कारण ही खत्म हो गया ! यह तो प्रकारांतर से पुलकित आर्य को बचाने की कोशिश लगती
है, मंत्री जी !
वनंतरा रिज़ॉर्ट के बारे में अंकिता भंडारी हत्याकांड के
बाद यह बात चर्चा में आई कि वहां देह व्यापार होता था. अगर देह व्यापार होता था तो
एक नहीं कई वीआईपी होंगे. अगर देह व्यापार
होता था तो कमरा तो देह व्यापार का लाभार्थी नहीं होगा, मंत्री जी ! वो कोई तथाकथित ऊंचे रसूखदार लोग ही होंगे, जिनके लिए वीआईपी संबोधन का प्रयोग हो रहा होगा. यूं ऐसे लोग वीआईपी नहीं
बल्कि निकृष्ट कहलाने के योग्य हैं पर वीआईपी आजकल तो ऐसों को ही कहा और समझा जा रहा
है.
मंत्री जी के बयान के जो निहितार्थ हैं वे बेहद गंभीर
हैं और अंकिता भंडारी को न्याय मिलने की उम्मीद इनसे और धुंधली हो जाती है. वीआईपी
के होने से इंकार करने का मतलब है कि हत्या के कारण (motive of murder) को ही खत्म करना. संसदीय कार्य मंत्री का यह वक्तव्य तो वनंतरा रिज़ॉर्ट में
देह व्यापार होने को भी नकारता है. यूं तो विधानसभा के बाहर संसदीय कार्य मंत्री का
बयान पूरी सरकार की ही राय मानी जानी चाहिए पर फिर भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
से पूछना है कि क्या वे भी अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने की मुहिम को कमजोर करने के
इस खेल में शामिल हैं ?
सवाल तो यह भी है कि ऐसे कौन वीआईपी हैं, जिनको बचाने के लिए इतने कुतर्क गढ़े जा रहे हैं ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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