31 दिसंबर की रात में गढ़वाल और कुमाऊँ की सीमा से
गुजर रहा था. अचानक एक झूमता-लहराता युवा गाड़ी के आगे से सनसनता हुआ निकलता है. मुझे
ख्याल आया- यह दोनों मंडलों का मिलन बिंदु है. दोनों मंडलों के वाशिंदे हम एक ही हैं-
डिवाइडेड बाइ पॉलिटिक्स, यूनाइटेड
बाइ दारू ! राजनीति ने भले हमको बांटा पर दारू ने देखो कैसे एक किया, उधर भी झूम रहे हैं, इधर भी झूम रहे हैं. बार्डर पर
तो झूमने वाले का एक कदम गढ़वाल में है और एक पग कुमाऊँ में धरा है !
उत्तराखंड की सरकार भी समझ रही थी कि दारू के इस महात्म्य
को, इसलिए उसने ऐलान कर दिया था कि तीन दिन तक दारू सप्लाइ में कोई कमी नहीं होनी
चाहिए. धाकड़ धामी की सरकार ने फरमान कर दिया था कि 2022 से 2023 में प्रवेश करते हुए
पानी की किल्लत भले हो जाये पर दारू की कतई कमी नहीं होनी चाहिए, दवा मिले न मिले, लेकिन दारू चारों पहर, आठों याम मिलती रहनी चाहिए.
धाकड़ धामी ने तो कह दिया था- राम नाम की लूट है, तीन दिन दारू पीने के फुल छूट है.
नए साल के उत्सव के लिए संदेश दे रहे थे धाकड़ धामी- इतना पियो
के शरीर और बोतल जाये न थामी. याद न रहे बीते साल की कोई नाकामी, इसलिए तीन दिन ओ रात पीने का इंतजाम कर रहे थे धाकड़ धामी.
पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि सूर्य अस्त, पहाड़ मस्त. लेकिन धाकड़ धामी चाहते थे कि 2022 की विदाई और 2023 के स्वागत
के दौरान मस्त होने के लिए पहाड़ी सूर्य अस्त होने का मोहताज न रहे. बल्कि धाकड़ धामी
का था पैगाम, मस्त रहेगा पहाड़ी, सूर्यास्त
हो या चड़चड़ा घाम ! इस तरह चौबीसों घंटे शराब की दुकान खुलने से सूर्य अस्त पर ही पहाड़
के मस्त होने वाली कहावत को बदलने का युगांतकारी इंतजाम धाकड़ धामी ने कर दिया था !
यूं कहा तो गया कि यह पर्यटकों की सुविधा के लिए
पर्यटन विभाग के अनुरोध पर किया जा रहा है. पर्यटन का यह दारू मॉडल अद्भुत है. बाकी
कुछ मिले न मिले, दारू चौबीसों घंटे मिल जाये तो पर्यटन
सफल ! उनके नए साल का सेलिब्रेशन कैसा है- यार रोज दिल्ली में दारू पीते-पीते बोर हो
गया हूं, चल नए साल में चोपता में दारू पिएंगे ! यानि कुल जमा
जीवन दारू के इर्द-गिर्द ही घूमना है.
चूंकि राज्य को हॉस्पिटैलिटी
में अव्वल आना है, इसलिए
पर्यटकों की जीवन धुरी की दुकानों को चौबीसों घंटे खोलने का आदेश सरकार की ओर
से जारी कर दिया गया.
शराब वालों ने भी अपनी तरफ से सरकार के कंधे से कंधा मिला
कर हॉस्पिटैलिटी में राज्य को अव्वल स्थान पर पहुंचाने के लिए भरसक प्रयास
शुरू कर दिये थे. जगह-जगह दुकानों के बाहर शराब के स्पेशल ऑफर के बोर्ड चस्पा थे.
लेकिन कुछ विघ्न संतोषियों से उत्तराखंड को अव्वल
स्थान पर पहुंचाने का धाकड़ सरकार, पर्यटन विभाग और शराब वालों का यह संयुक्त उपक्रम
बर्दाश्त न हुआ. उन्होंने सोशल मीडिया पर इतनी चिल-पौं मचा दी कि क्या कहें ! सरकार
कह रही थी कि ब्रो नए साल पर चिल करो पर ये नामुराद चिल-पौं मचाए रहे !
मजबूरन, मन मसोस कर धाकड़ सरकार को अपने इस उपक्रम में हाथ पीछे खींचने पड़े. नयी व्यवस्था में रात दिन खुले रहने का इंतजाम बार तक सीमित कर दिया गया.
बताइये इससे बड़ा भेदभाव कुछ हो सकता है भला- बार में बहार है और उसके
बाहर ठंड की मार है !
हो सकता है अपने नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, उपचार के बिना ही मस्त रखने का पायलट प्रोजेक्ट लॉंच कर रही होगी धाकड़ सरकार, नए साल के मौके पर, लेकिन इन विघ्न संतोषियों को कौन समझाए !
-इन्द्रेश मैखुरी
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