जोशीमठ में आपदा पीड़ित मुआवजे की बाट जोह रहे हैं. उनके घरों में
आई चौड़ी-चौड़ी दरारों के बाद, उन्हें घरों से बाहर तो भेज दिया गया है, लेकिन जिन राहत
शिविरों में वे रह रहे हैं, वहाँ कब
तक रहना होगा, कोई बताने
को तैयार नहीं. घर पर
लाल निशान लगा दिया गया है, घर तोड़ा
जा रहा है पर उसके बदले घर कब, कहाँ, कैसे मिलेगा, इसका कोई जवाब न सरकार के पास है, न अफसरशाही
के पास और ना ही सरकार समर्थकों के पास. अपने सवालों के जवाब तलाशने के लिए लोग जोशीमठ
की तहसील में धरने पर बैठे हैं. यह धरना भी तब शुरू हुआ जबकि बीते 14 महीनों से जोशीमठ
में बढ़ती दरारों की चेतावनी देने के लिए प्रभावित और जोशीमठ संघर्ष समिति के लोग उपजिलाधिकारी
से लेकर मुख्यमंत्री तक, हर दरवाजे पर गए और उनकी कहीं सुनवाई
नहीं हुई.
जोशीमठ के आपदा पीड़ितों को उनके सवालों का जवाब तो नहीं
मिला, परंतु धरने देने वालों को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने माओवादी
और चीन का एजेंट बता दिया.
यह बयान सीधे तौर पर राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण में असफल रहने और उसके विरुद्ध
उत्पन्न विक्षोभ के चलते सत्ताधारी पार्टी व उसके प्रदेश अध्यक्ष की खीज का परिणाम
है. लेकिन यह निहायत ही संवेदनहीन बयान है, जो अपनी आँखों के
सामने अपने घर, प्रतिष्ठानों को दरकता देखने के लिए अभिशप्त लोगों
के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.
किसी सत्ताधारी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कितना गैरजिम्मेदार हो सकता है, यह बयान उसका नमूना है. बीती 26 जनवरी को धरने पर बैठने वाले जोशीमठ के आपदा प्रभावितों ने “तिरंगा यात्रा” निकाली और संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया. क्या यह चीन के एजेन्टों का काम था ? इसके अगले दिन यानि 27 जनवरी को जोशीमठ के क्षेत्र के तमाम गांवों के लोगों ने जोशीमठ नगर के आपदा प्रभावितों के समर्थन में एक विशाल रैली निकाली.
इस रैली को जोशीमठ के इतिहास की सबसे बड़ी रैली माना जा रहा है. अनुमान है कि इस रैली में लगभग छह हज़ार से अधिक लोग थे.
क्या ये सारे चीन के एजेंट थे या चीन के एजेंटों के प्रभाव में आ कर इस रैली में आए थे ? अगर ऐसी स्थिति हकीकत बन जाये कि देश के भीतर दूसरा देश, इस तरह हजारों लोगों को सड़क पर उतार सकता हो तो तब तो उस देश का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा ! असल में यह अपनी खीज उतारने के लिए राजनीतिक नासमझी और अज्ञानता के तहत दिया गया बयान है. राजनीतिक मूढ़ता का चरम यह है कि उस जनता को ही विदेशी एजेंट बता रहे हैं, जिन्होंने उनको विधायक बनाया था !
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष धरना देने वालों और उनका नेतृत्व
करने वालों को माओवादी ठहरा दे रहे हैं. यह बात उनकी राजनीतिक ज्ञान शून्यता की अभिव्यक्ति
है. अव्वल तो माओवादी भूमिगत रहते हैं, वे धरना-प्रदर्शन नहीं
करते. स्वयं को माओवादी कहने वाली पार्टी को भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ. केंद्र
सरकार के गृह मंत्रालय में माओवाद प्रभावित राज्यों का एक प्रकोष्ठ बनाया हुआ. केंद्रीय
गृह मंत्रालय की वैबसाइट पर उस प्रकोष्ठ में दर्ज ब्यौरे के अनुसार जिन राज्यों को
भारत सरकार माओवाद प्रभावित मानती है, उनमें उत्तराखंड का नाम
शामिल नहीं है. क्या महेंद्र भट्ट के पास भारत सरकार के गृह मंत्रालय से अधिक जानकारी
है ? क्या राज्य के पुलिस प्रमुख और चमोली जिले के पुलिस अधीक्षक
यह मानते हैं कि महेंद्र भट्ट की जानकारी भारत सरकार के गृह मंत्रालय से अधिक पुख्ता
है ?
महेंद्र भट्ट जी, चीन के नाम पर जोशीमठ के आंदोलनकारियों को ऐसे गरिया रहे हैं, जैसे कि चीन के खिलाफ उनकी सरकार खम ठोक कर खड़ी हो ! हकीकत यह है कि चीन के सामने इस समय की केंद्र सरकार, सबसे कमजोर सरकार सिद्ध हुई है. बीते दिनों देश के पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में एक शोध पत्र जमा किया गया. उक्त शोध पत्र के अनुसार पूर्वी लद्दाख में 65 निगरानी चौकियों में से 25 निगरानी चौकियों पर भारत ने नियंत्रण खो दिया है. प्राप्त सूचना के अनुसार इस शोध पत्र पर इतनी ही कार्यवाही की जा सकी कि इसे चर्चा के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया !
लेकिन गलवान से लेकर पूर्वी लद्दाख तक की इन खबरों की
बीच क्या चीन के प्रति केंद्र में बैठी हुई नरेंद्र मोदी की सरकार के नरम रुख में कुछ
कमी आई है ? जी नहीं, बिल्कुल नहीं. इसकी
तस्दीक चीन के साथ भारत के व्यापार के आंकड़ों को देख कर की जा सकती है. हाल ही में
चीनी कस्टम द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि 2021 में भारत का चीन के साथ व्यापार 125.6
अरब डॉलर था, जो कि 2022 में बढ़ कर 135.98 अरब डॉलर हो गया. चीन
से भारत का आयात 2021 के 97.5 अरब डॉलर से बढ़ कर 2022 में 118.5 अरब डॉलर हो गया. हैरत की बात है कि इसी अवधि में चीन को भारत से
किए जाने वाले निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गयी. 2021 में भारत से चीन को निर्यात
28.1 अरब डॉलर था, जो 2022 में गिर कर 17.48 अरब डॉलर हो गया.
चीन के साथ व्यापार के इस आंकड़े और उसमें भी चीन के वर्चस्व से साफ जाहिर के चीन के
व्यापार को भारत में भाजपा के शासन काल में खूब फलने-फूलने का अवसर मिला है.
जैसे एक तरफ भाजपा के लोग दीपावाली में चीन की लड़ी का
विरोध करके राष्ट्रभक्ति दिखने की कोशिश करते हैं और दूसरी तरफ चीन के अरबों-अरब डॉलर
के व्यापार को भारत में फलने-फूलने देते हैं, उसी तरह का दोगलापन
भाजपा के राष्ट्रवाद की विशेषता है.
जोशीमठ के आपदा पीड़ितों और उनके नेताओं को चीन का एजेंट बताने वाले भाजपा के उत्तराखंड अध्यक्ष को जुबान खोलने से पहले अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूला झूलते नरेंद्र मोदी की तस्वीर याद कर लेनी चाहिए.
उन्हें दक्षिण भारतीय परिधान पहन कर तमिलनाडू के ममलापुरम में शी जिनपिंग के हाथों में हाथ डाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का भी स्मरण कर लेना चाहिए.
चीनी यात्री ह्वेन सांग के अपने गाँव में रहने और फिर वहाँ से वापस चीन
जाने पर शी जिनपिंग के गाँव जाने का किस्सा तो मोदी जी के मुखारविंद से भट्ट जी ने
सुना ही होगा, जिसमें मोदी जी बताते हैं कि शी जिनपिंग ने यह किस्सा
उन्हें स्वयं बताया था. किस्सा सुनाते वक्त जिनपिंग के प्रति मोदी जी के आत्मीय भाव
का भी भट्ट जी को स्मरण होगा ही !
महेंद्र भट्ट जी को याद करना चाहिए कि बीते कुछ सालों
में सर्वाधिक बार चीन जाने वालों में भाजपा के नेताओं की लंबी फेरहिस्त है. यहाँ तक
कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पार्टी स्कूल में (जहां पर पार्टी का वैचारिक प्रशिक्षण
होता है), वहाँ भी भाजपा के सांसदों, विधायकों और अन्य नेताओं
का प्रतिनिधिमंडल जाता रहा है.
इसलिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को जोशीमठ
के आपदा पीड़ितों और उनके नेताओं को चीन परस्त बताने का प्रलाप बंद करना चाहिए. आंकड़े
और तथ्य इस बात की तस्दीक करते हैं कि वैचारिक रूप से विपरीत ध्रुवों पर खड़े होने के
बावजूद यदि चीन और वहाँ की सत्तासीन पार्टी से, किसी का सर्वाधिक प्रगाढ़
संबंध है तो महेंद्र भट्ट जी की पार्टी- भाजपा- का है.
आपदा पीड़ितों को लांछित करने का यह घिसा-पिटा दांव अब
और नहीं चलेगा. या तो जोशीमठ में लोगों के राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण का इंतजाम कीजिये या फिर गद्दी खाली कीजिये.
ऐसी अनर्गल, बेहूदा बातें करने वालों
को यह दोहा समर्पित है :
“जो ओछो बढ़े तो ही अति इतराय
प्यादो सो फर्जी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाये
!”
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
आईना दिखाता लेख , इन्होंने किसान आंदोलन कारियों को भी खालिस्तानी बोला था
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