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रिपोर्ट थी, कार्यवाही नहीं की !

 










 
जोशीमठ में भू-धँसाव के मामले में उत्तराखंड सरकार से प्रभावी कार्यवाही की मांग के लिए चल रहे आंदोलन और धरना-प्रदर्शन को एक महीना हो चुका है. लेकिन अब तक मुआवजे, पुनर्वास और पुनर्निर्माण को लेकर कोई ठोस कदम उठाने में उत्तराखंड और केंद्र की सरकार नाकामयाब रही है. बयानों में जरूर यह कहा जा रहा है कि जोशीमठ के लिए डबल इंजन की सरकार, सबसे बढ़िया नीति बनाने वाली है, लेकिन महीने भर के बाद भी उस नीति का कहीं कोई अता-पता नहीं है.

जोशीमठ की घटना जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनने लगी तो उत्तराखंड सरकार ने ऐसे व्यवहार किया, जैसे कि उसे पहले से खबर ही नहीं हुई कि पूरा जोशीमठ शहर भूस्खलन और भू धँसाव का शिकार हो रहा है. यह हकीकत नहीं है बल्कि यह अपनी लापरवाही को ढंकने का पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड की भाजपा सरकार का पैंतरा है.  

जोशीमठ में बीते 14 महीनों से लोग आसन्न खतरे को लेकर चेताते रहे.  जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने स्वयं पहल करके जब स्वतंत्र भू वैज्ञानिकों से नगर का सर्वे करवा दिया, तब राज्य सरकार थोड़ा हरकत में आई और उसने जोशीमठ के अध्ययन के लिए 28 जुलाई 2022 को एक कमेटी बनाई. उक्त कमेटी ने सितंबर 2022 में अपनी रिपोर्ट दी. उक्त रिपोर्ट में हालांकि सब कुछ जनता के मत्थे मढ़ दिया गया, लेकिन उक्त रिपोर्ट में जो संस्तुतियाँ की गयी, उस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया.

उक्त रिपोर्ट में खतरे वाले घरों को पुनर्स्थापित (रीलोकेट) करने और निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने की संस्तुति की गयी थी. परंतु इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.

लेकिन यह खतरे की चेतावनी देती इकलौती रिपोर्ट नहीं है, जिस पर उत्तराखंड सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की. उत्तराखंड सरकार, राज्य में आपदा के खतरे की चेतावनी देने वाली सभी सरकारी रिपोर्टों को  सिरहाने रख कर सोती रही है. 

       
इसका एक नमूना- उत्तराखंड में आपदा के खतरे के आकलन की सर्वेक्षण रिपोर्ट (Uttarakhand Disaster Risk Assessment Report) है. उत्तरखंड सरकार द्वारा करवाया गया यह सर्वेक्षण 2016 में शुरू हो कर 2019 में पूरा  हुआ.








इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड का  करीब 50 प्रतिशत हिस्सा  भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र हैं. उक्त रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 6536 भूस्खलन चिन्हित किए गए और रिपोर्ट कहती है कि भूस्खलन के उपचार के लिए सालाना 180 करोड़ रुपये की जरूरत है.
 जलविद्युत परियोजनाओं को अचानक आने वाली बाढ़ (फ्लैश फ़्लड) से अत्याधिक खतरा उक्त रिपोर्ट बताती है. जलविद्युत परियोजनाओं को बड़े भूकंपों से भी सर्वाधिक खतरा, रिपोर्ट में बताया गया है. 
 
उक्त रिपोर्ट के अनुसार चमोली, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों के सरकारी भवनों का सर्वेक्षण करवाया गया और पाया गया कि इन पाँच जिलों के 80 प्रतिशत सरकारी भवन असुरक्षित हैं. 








रिपोर्ट के अनुसार चमोली जिला, जहां जोशीमठ स्थित है, वहाँ के 888 सरकारी भवनों में से 295 भवनों का सर्वेक्षण किया गया और उनमें से केवल 60 को ही सुरक्षित पाया गया, 235 सरकारी भवन सर्वेक्षण में असुरक्षित पाये गए.

उक्त रिपोर्ट में खतरा कम करने के लिए रणनीतिक योजना बनाने हेतु जो जगहें चिन्हित की गयी, उनमें जोशीमठ शहर भी शामिल था. 2019 में खतरा के हॉटस्पॉट और खतरा कम करने की रणनीतिक योजना में चिन्हित किए जाने के बावजूद जोशीमठ को खतरे से बचाने के लिए क्या उपाय किए गए कोई नहीं जानता !
 
उक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट में 18 मार्च 2015 को जापान के सेंदई (Sendai) में तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में गृहित आपदा खतरा न्यूनीकरण फ्रेमवर्क 2015-2030 का भी उल्लेख है.

सेंदई फ्रेमवर्क में आपदा के खतरे को समझने, आपदा के खतरे से निपटने के प्रबंधन और प्रशासन को मजबूत करने, आपदा के खतरे को कम करने के लिए ढांचागत और गैर ढांचागत निवेश तथा आपदा से निपटने की बेहतर पूर्व तैयारियों पर बल दिया गया है.

उक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट में इन बातों का उल्लेख करने के बाद भी क्या किया गया, कोई नहीं जानता !

सर्वेक्षण की रिपोर्ट में तो आपदा प्रबंधन चक्र भी दिया गया है, जिसमें अल्पकालिक- दीर्घकालिक समेत विविध तरह के कार्यों के उल्लेख है. पर धरातल पर न कोई अल्पकालिक उपाय नजर आता है और ना ही दीर्घकालिक !  

उक्त सर्वेक्षण के काम में चूंकि मेक्सिको, सिंगापुर आदि की एजेंसियां शामिल थी, इसलिए जाहिरा तौर पर इसमें भारी मात्रा में पैसा खर्च हुआ होगा. यूडीआरपी के जरिये करवाया गया यह सर्वेक्षण विश्व बैंक द्वारा पोषित परियोजना है.

प्रशिक्षण और क्षमता विकास के काम का दावा भी उक्त रिपोर्ट में किया गया है, जिसमें मेक्सिको, सिंगापुर और बैंकॉक की एजेंसियां शामिल रही हैं. प्रशिक्षण और क्षमता विकास के नाम पर 2018 में मेक्सिको का दौरा भी हुआ. 
 
लेकिन उसके बावजूद उक्त रिपोर्ट पर किया गया कोई काम दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आता है.

संयुक्त राष्ट्र के आपदा न्यूनीकरण कार्यालय के एक उद्धरण का प्रयोग उक्त रिपोर्ट में किया गया है. उक्त उद्धरण कहता है- “हालांकि ऐतिहासिक नुकसान अतीत की व्याख्या करते हैं, पर यह जरूरी नहीं कि वे भविष्य के लिए मार्गदर्शक हों, अधिकांश आपदाएँ जो आ सकती हैं,वे अभी तक आई ही नहीं हैं. इस उद्धरण नुमा चेतावनी के बावजूद जोशीमठ जैसी बनती-बढ़ती आपदा के प्रति उत्तराखंड सरकार और उसकी नौकरशाही गाफिल रही !

रिपोर्ट कहती है कि आपदा पूर्व बचाव में खतरे का आकलन, न्यूनीकरण, तैयारी और आपातकालीन योजना शामिल होती है.

जोशीमठ के मामले में किंकर्तव्यविमूढ़ और हतप्रभ आवस्था में खड़ी उत्तराखंड सरकार को बताना चाहिए कि क्या इस रिपोर्ट के बावजूद जोशीमठ या उत्तराखंड में कहीं भी किसी संभावित आपदा से निपटने की उसकी कोई पूर्व तैयारी या योजना है ? जोशीमठ में आपदा के एक महीने के बावजूद सरकार के अनिर्णय की स्थिति तो बता रही है कि उसके पास गाल बजाने के अलावा न तो किसी और बात की तैयारी है और ना ही कौशल !

लेकिन उत्तराखंड की भाजपा सरकार और उसकी नौकरशाही से यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि जब किसी भी संभावित आपदा से निपटने की कोई पूर्व तैयारी करनी ही नहीं है तो आपदा के खतरे के आकलन का यह सर्वे करवाया क्यूँ था ? फ़ाइलों का पेट भरने के लिए या फिर विश्व बैंक का पैसा को ठिकाने लगाने के लिए ?    
 

-इन्द्रेश मैखुरी

 

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