उत्तराखंड में एक विश्वविद्यालय है- मुक्त विश्वविद्यालय.
काफी अरसे से मुक्त विश्वविद्यालय, अकादमिक कारणों से इतर
कारणों के लिए चर्चा में है. भाजपा के एक नेता हैं- शिवप्रकाश. शिवप्रकाश जी भाजपा
के राष्ट्रीय संगठन सह मंत्री हैं, उत्तराखंड के प्रभारी भी रहे हैं.
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आज यानि 17 मार्च
को एक सेमिनार हो रहा है, जिसे
राष्ट्रीय संगोष्ठी कहा गया है. इसमें शिवप्रकाश जी मुख्य वक्ता हैं.
चूंकि शिवप्रकाश जी भाजपा के राष्ट्रीय संगठन सह मंत्री हैं तो मुमकिन है कि उनके होने
से संगोष्ठी “राष्ट्रीय” हो रही हो !
इस संगोष्ठी का जो निमंत्रण पत्र है, वो बता रहा है
कि उसमें आमंत्रित होने वालों में शिवप्रकाश जी ही इकलौते हैं, जो प्रोफेसर, डॉक्टर कुछ नहीं
हैं !
बात इतनी ही होती तो भी चल जाती. लेकिन
इससे आगे की बात यह है कि शिवप्रकाश जी ने हाल ही में, जनवरी के महीने में मुक्त विश्वविद्यालय से ही एमए की डिग्री पायी है. मुक्त
विश्वविद्यालय में अकादमिक और अन्य पदों पर
भाजपा के लोगों की नियुक्ति काफी मुक्त भाव से हुई है, कई बार
तो इन नियुक्तियों के नियम- कायदों से मुक्त होने के आरोप भी लगते रहे हैं. जैसा कि उल्लेख किया ही जा चुका है कि शिवप्रकाश जी उत्तराखंड के प्रभारी
रहे हैं तो उनके विचारधारा के लिहाज़ से “मुक्त” विश्वविद्यालय
की जानकारी उन्हें रही ही होगी ! उन्होंने सोचा होगा कि जब अपने लिए ऐसा मुक्त-उन्मुक्त
विश्वविद्यालय है तो लगे हाथ एमए भी कर लिया जाये ! उन्होंने एमए किया तो वे जनवरी
में हुए दीक्षांत समारोह में स्वर्ण पदक भी पा गए. यह उनकी प्रतिभा-मेधा का कमाल था
या कि उनके विचार के प्रति विश्वविद्यालय का मुक्त-उन्मुक्त भाव, ये तो वे और विश्वविद्यालय ही बेहतर जानते होंगे !
तो बहरहाल एमए करने के तत्काल बाद ही अपने किसी विद्यार्थी
को अपने यहाँ संगोष्ठी में मुख्य अतिथि किसी विश्वविद्यालय ने बुलाया हो, इसका भी बिरला ही उदाहरण यह होगा पर नारा है ही कि …….. है तो मुमकिन है !
यूं जब सरकार, सत्ता, कुलपति से लेकर कर्मचारी तक शिवप्रकाश जी की धारा के बहाव में हैं तो वे शिवप्रकाश
जी को अगर बिना एमए हुए ही या फिर एमए की परीक्षा देते हुए भी मुख्य अतिथि बुला लेते
या बिना एमए किए कुलपति बना देते तो कोई कुछ कर सकता था क्या ? उनकी सत्ता, उनका विश्वविद्यालय, यह क्या कम है कि उन्होंने एडमिशन फॉर्म भरा, फिर परीक्षा
फॉर्म भरा, परीक्षा दी भी होगी ! जिस तरह का प्रचंड डबल इंजन
है, उसमें तो विश्वविद्यालय मानद डॉक्टरेट की तर्ज पर उन्हें
मानद एमए की उपाधि भी दे सकता था ! नहीं दिया, उन्होंने एमए किया,यही गनीमत है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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