भगत दा यानि भगत सिंह कोश्यारी. महाराष्ट्र के पूर्व
राज्यपाल, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व सांसद
आदि-आदि.
भगत दा की आवाज़ में तो रौब नहीं है, वो तो कमजोर सी है (दृष्टि की तरह), लेकिन बोलते बड़े
रौब से हैं. रौब हो भी क्यूं ना, उत्तराखंड में भाजपा की सरकार
रहने के दौरान जब-जब मुख्यमंत्री की कुर्सी डोली-डगमगाई, उसमें
हमेशा भगत दा एंगल जरूर था.
सत्ता के गलियारों में विचरते रहते हैं, इसलिए वे बोलने के मामले में ज्यादा विचार की जहमत नहीं उठाते. महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले-
सावित्री बाई फुले के बारे में वे जो बोले, वो कोई सोच-विचार
कर बोलने वाला व्यक्ति तो नहीं बोल सकता ! पर वे बोले और राज्यपाल के पद पर बैठ कर
बोले ! हालांकि उनके राज्यपाल पद पर रहने के दौरान किए कामों पर उच्चतम न्यायालय जितना
बोल चुका, उसके बाद तो किसी की भी बोलती बंद हो जानी चाहिए पर
भगत दा का बोल-बचन जारी है !
बोल-बचन वे निरंतर जारी रखते हैं, बातों के लच्छे उछालते रहते हैं, शब्दों के गोले दागते रहते हैं !
बीते दिनों बागेश्वर में जो बातों के गोले उन्होंने उछाले
वे तो अद्भुत, अभूतपूर्व, चमत्कारिक हैं !
उनसे एक पत्रकार ने पूछा- पहाड़ में जंगली जनवरों से लोग
बहुत परेशान हैं, बंदरों ने जीना मुश्किल किया हुआ है.
भगत दा ताबड़तोड़ हैं, आव देखते हैं ना ताव, तुरंत जवाब देते हैं ! इस प्रश्न के जवाब में भी तपाक से बोले- बंदर आए तो कंटर(कनस्तर) बजाओ !
गज़ब समाधान सुझा दिया भगत दा ने ! पहाड़ी लोग लगभग दो दशक
से परेशान हैं, सूअरों, बंदरों से ! गाँव में
लोग खेती से विरक्त हो गए. क्यूं करें जब दिन में बंदर और रात में सूअरों ने उजाड़ देना
है उसे ?
और देखो भगत दा क्या नायाब आइडिया लाये हैं ! अरे पहाड़ियो
तुम बंदर से घबराते हो, बंदर आए तो कंटर बजाओ, सुअर आए तो कंटर बजाओ !
हा ! भगत दा, आप कहां रहे इतने दिन
! अब तक क्यूं न दे दिया पहाड़ियों को आपने ये कंटर ज्ञान !
पत्रकार ने पूछा : हम तो कंटर बजा लेंगे, लेकिन सरकार क्या करेगी ?
भगत दा फिर बोले सब काम के लिए सरकार पर निर्भर न रहो, कंटर बजाओ !
सही बात है, कंटर बजाने के लिए भी
कोई सरकार पर निर्भर होने की बात है !
क्या-क्या जो करेगी बेचारी सरकार, दारू बेचेगी, नौकरी बेचेगी, रेत-बजरी, जमीन बेचेगी, पानी बेचेगी और इतना करने के बाद कंटर
भी बजाएगी !
सरकार पर निर्भर न रहो- कह कर भगत दा ने बता दिया कि उनका हैंडसम चेला कंटर बजाने के काम का भी नहीं है !
कुल मिला कर दो ही काम हैं भाई पहाड़ियो- सरकार को वोट
दो और उसके बाद कंटर बजाओ !
बुरा हो रे, तेरा हाईकमान, ऐसे कंटर विचारधारी नेता को तूने दोबारा उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नहीं बनने
दिया !
मुख्यमंत्री बनने दिया होता तो बंदरों का जो होता सो होता
पर उत्तराखंड में हर आदमी के हाथ में कंटर जरूर होता !
कहावत तो यूं है – थोथा चना बाजे घना
पर नए कंटर संदर्भ में यह ऐसी भी हो सकती है – थोथा कंटर, उसके आगे सब नतमस्तक !
-इन्द्रेश मैखुरी
2 Comments
यही बात अगर प्रधानमंत्री जी बोलते तो अभी तक बन्दर भी कंटर बजा रहे होते।
ReplyDeleteकनस्तर से बंदर भगाने का यह कैसा नुस्खा है...
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