देश में एक राज्य है कर्नाटक. यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. भाजपा के एक विधायक हैं- मडल वीरूपक्षप्पा. वे दावणगेरे जिले की चेन्नगिरी सीट से विधायक हैं. सत्ताधारी भाजपा से जुड़े होने की वजह से विधायक जी, प्रसिद्ध मैसूर साबुन बनाने वाले सार्वजनिक उपक्रम- कर्नाटक सोप्स एंड डिटर्जेंट लिमिटेड (केएसडीएल) के अध्यक्ष पद पर आसीन थे. विधायक जी के पुत्र प्रशांथ कुमार एमवी, बंगलुरु जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड में अकाउंटेंट हैं.
बीते दिनों विधायक जी के पुत्र को 40 लाख रुपए की रिश्वत
लेते हुए कर्नाटक लोकायुक्त की पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ा. उनके दफ्तर से 1.7 करोड़ रुपये
नकद बरामद हुए. उसके बाद विधायक जी के आवास एवं दफ्तर की तलाशी में 08 करोड़ रुपए बरामद
हुए. विधायक जी ने केएसडीएल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.
लेकिन बात सिर्फ छापे और इस्तीफे पर नहीं रुकी. भ्रष्टाचार
के आरोप झेल रहे विधायक जी और उनके पुत्र बंगलुरु की एक अदालत चले गए और उन्होंने अदालत
में जा कर अपने विरुद्ध चल रही भ्रष्टाचारी होने की खबरें मीडिया द्वारा दिखाये जाने
पर रोक लगाने की मांग कर डाली. हैरत यह कि अदालत ने उनकी यह मांग मान भी ली और सुनवाई
की अगली तारीख तक 45 मीडिया संस्थानों को पिता-पुत्र के भ्रष्टाचार संबंधी प्रसारण
करने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया.
अदालत में भाजपा विधायक और उनके पुत्र ने पूरी कहानी सुनाई
और बताया कि उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि विधायक जी का बेटा रिश्वत एक ठेकेदार
से इसलिए ले रहा था क्यूंकि ठेकेदार केएसडीएल को कच्चा माल सप्लाई करने का ठेका चाहता
था. लेकिन अदालत में विधायक जी और उनके पुत्र ने कहा कि ये सब कहानी इसलिए बुनी जा
रही है क्यूंकि लोग उनकी समृद्धि से जलते हैं !
इस मामले में
जज बालगोपालकृष्णन ने जो टिप्पणी की, वो बड़ी रोचक है. उन्होंने
अपने नौ पृष्ठों के फैसले में लिखा कि “लोकायुक्त पुलिस द्वारा याची नंबर 2 के ऑफिस
पर रेड की गयी और नोटों के बंडल जब्त किए गए, सिर्फ इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि याचीगण भीषण भ्रष्टाचार में लिप्त
हैं ! सिर्फ रकम जब्त होना, इस नतीजे पर पहुँचने का आधार नहीं
हो सकता कि याचीगण बड़े भ्रष्टाचारी हैं !......... बेशक मीडिया द्वारा जो भी बयान दिये
जाएँ, वे प्रामाणिक होने चाहिए. सिर्फ यह कहना कि याचीगण भ्रष्ट
हैं, यह स्वीकार्य है, लेकिन प्रतिवादियों
के विभिन्न चैनलों द्वारा यही बात अक्सर प्रसारित करना और इस पर पैनल चर्चा करवाना
और कुछ नहीं याचीगणों का चरित्र हनन है....... !”
यह एक तरह से न्याय की बिल्कुल नयी परिभाषा है, जिसमें एक बार भ्रष्ट कहने पर चरित्र हनन नहीं होता, लेकिन बार-बार भ्रष्ट कहने से चरित्र हनन होता है. भ्रष्टाचार की भी नयी परिभाषा
इस फैसले में रची गयी है. कहा गया है कि सिर्फ नोटों के बंडल जब्त होने के आधार पर
किसी को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता. हालांकि दोनों ही बातों को एक जगह रख दिया जाये तो
लगता है कि लिखने वाले खुद भी असमंजस में हैं
कि भ्रष्ट कहा जा सकता है या नहीं ! अगर भारी मात्रा में नोटों के बंडल जब्त होने को
भ्रष्टाचार नहीं कह सकते तो फिर किसी को एक बार भ्रष्ट कहना भी कैसे सही है ? अगर रिश्वत की रकम पकड़ा जाना भ्रष्टाचार नहीं है, अनाम
स्रोतों से प्राप्त धनराशि, भ्रष्टाचार की परिभाषा में नहीं आती
तो फिर आखिर भ्रष्टाचार है क्या ?
भाजपा विधायक और उनके सरकारी अफसर पुत्र को मीडिया से बचाने के चक्कर
में जज साहब ने तो लोकायुक्त पुलिस और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अस्तित्व को ही
संकट में डाल दिया क्यूंकि अगर इस तरह रिश्वत की रकम पकड़ा जाना भ्रष्टाचार के दायरे
से बाहर है तो तब लोकयुक्त, पुलिस और भ्रष्टाचार अधिनियम की जरूरत
ही क्यूं रह जाएगी ?
यह भी रोचक है कि जहां याचीगण यानि भाजपा विधायक और उनके
बेटे, लोकायुक्त की पुलिस की रेड और उसमें रकम जब्त होने की पूरी कहानी को ही मनगढ़ंत
बताते हैं, वहीं जज साहब छापा पड़ने, नोट
जब्त होने आदि को तो मनगढ़ंत नहीं मानते पर उसे भ्रष्टाचार नहीं मानते !
कुल मिला कर ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार के आरोपी
विधायक और उनके सरकारी अफसर पुत्र को मीडिया से बचाने के लिए जज साहब ने कानून की सीमा
रेखा लांघ दी ! इससे बेहतर होता कि भ्रष्टाचार के आरोपी पिता-पुत्र को ताकीद किया जाता कि बजाय अदालत में मीडिया का मुंह बंद करवाने की
कोशिश के, वे अपने कृत्यों पर रोक लगाएं ! यह विचित्र बात है
कि भाजपा के इन विधायक और इनके पुत्र को रिश्वत लेने और करोड़ों रुपए पकड़े जाने से डर
नहीं लगता, उन्हें इस प्रकरण की खबर छापने और दिखाने से कष्ट
होता है ! उन्हें जिस भी बात से कष्ट होता है, लेकिन कानून के
पहरूओं को उनके कष्ट से द्रवित हो कर मीडिया का मुंह क्यूं बंद करना चाहिए था ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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