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क्या अपराध पर नहीं, अपराधी के धर्म से खौलता है खून ?

 






बीती 26 मई को उत्तरकाशी जिले के पुरोला में दो लोगों को नाबालिग बच्ची के साथ पकड़ा गया. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि उक्त दोनों व्यक्ति, नाबालिग बच्ची को बहला-फुसला कर, अपने साथ देहरादून ले जा रहे थे. दोनों को  पुलिस के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने पॉक्सो के तहत मुकदमा दर्ज करके दोनों आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों के नाम है उवैद और जितेंद्र सैनी. तब से लगभग आधा महीना होने को है. लेकिन उत्तरकाशी जिले में और खास तौर पर यमुना घाटी में उक्त मामले की तपिश बनी हुई है. आए दिन कोई न कोई बाजार बंद हो रहे है और बड़े-बड़े जुलूस निकाले जा रहे हैं. पुरोला में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकानों के बाहर, दुकानें खाली करने के पोस्टर चस्पा होने की बात भी सामने आई है. 










यह भी कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पुरोला छोड़ कर जा भी चुके हैं. हालांकि पुलिस और प्रशासन ने इस बात से इंकार किया है.


आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी के बाद भी आधे महीने तक यदि प्रदर्शन जारी रहते हैं तो स्वतः ही प्रश्न पैदा होता है कि यह उस घटना की प्रतिक्रिया है या कोई सुनियोजित कार्यवाही ?


बच्चियों, युवतियों की सुरक्षा के लिए चिंतित होना ठीक है. वे सुरक्षित रहें, यह जरूरी है. लेकिन यह चिंता क्या सिर्फ धर्म विशेष के मामले में ही होनी चाहिए ? क्या बच्चियों से अत्याचार पर खून, सिर्फ धर्म विशेष के मामले में ही खौलना चाहिए ?


यह प्रश्न इसलिए मन में पैदा होता है क्यूंकि पुरोला की घटना के दो दिन के अंतराल पर उत्तराखंड में बच्चियों के उत्पीड़न की दो बड़ी घटनाएं प्रकाश में आई. लेकिन वे दोनों ही घटनाएं चर्चा का विषय नहीं बनी, उनमें किसी तरह की हलचल तक नहीं हुई, जबकि वे प्रकृति में पुरोला की घटना से अधिक गंभीर थी.  


29 मई 2023 के समाचार पत्रों में देहरादून जिले के कालसी ब्लॉक के एक उच्च प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक पर छात्राओं से छेड़छाड़ और अश्लील हरकतें करने के आरोपों की प्राथमिक जांच में पुष्टि होने की खबर आई. खबरों के अनुसार छात्राओं ने इस बात की शिकायत विद्यालय में तैनात महिला शिक्षिका से की थी. आधा दर्जन से अधिक छात्राओं ने ऐसी शिकायत की थी. इस प्रधानाध्यापक के उत्पीड़न से तंग आ कर सात बच्चियों ने स्कूल तक छोड़ दिया था. जांच में आरोपों की पुष्टि होने पर प्रधानाध्यापक को निलंबित कर दिया गया और उपशिक्षाधिकारी कार्यालय, चकराता से संबद्ध कर दिया गया.


28 मई 2023 के अखबारों में पिथौरागढ़ के एक शिक्षक के संबंध में छात्रा के उत्पीड़न की खबर छपी. दसवीं पढ़ने वाली एक छात्रा ने शिक्षक पर अश्लील हरकत करने और उत्पीड़न का आरोप लगाया. खबर के अनुसार अध्यापक ने छात्रा से मेसेज पर निजी फोटो भेजने को कहा. इस मामले में पॉक्सो के तहत मुकदमा दर्ज करके आरोपी शिक्षक को जेल भेज दिया गया है.


06 जून को अखबारों में खबर है कि उधमसिंह नगर जिले के जसपुर में एक युवती ने भारतीय नारी रक्षा सेना के पुत्र पर नशीला पदार्थ खिला कर बलात्कार करने और अश्लील वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने का मुकदमा दर्ज करवाया है.



07 जून को अखबार में देहरादून की एक युवती द्वारा सोशल मीडिया पर बने दोस्त द्वारा नोएडा में नशीला पदार्थ चाय में डाल कर पिलाने, दुष्कर्म करने और ब्लैकमेल करने के मामले में एफ़आईआर दर्ज कराने की खबर छपी है.   



05 जून की  खबर है कि देहरादून में विभिन्न स्पा सेंटरों पर छापेमारी करके पुलिस ने वहाँ चलने वाले सेक्स रैकेट का खुलासा किया है.


इस तरह देखें तो बीते कुछ समय में ही उत्तराखंड में लड़कियों / महिलाओं के यौन शोषण की घटनाओं की एक शृंखला है. लेकिन जितनी हलचल लगभग आधा महीने पहले घटित पुरोला वाली घटना में देखी जा रही है, उसकी अंश भर भी हलचल अन्य घटनाओं में नहीं देखी जा रही है. देहरादून, ऋषिकेश आदि जगह पर स्पा सेंटर के नाम पर सेक्स रैकेट का खुलासा तो आए दिन की खबर जैसा मालूम पड़ता है !


तो क्या बेटियों की सुरक्षा सिर्फ हथियार है, जिसका उपयोग सांप्रदायिक उन्माद व  घृणा को फैलाने और उसके जरिये राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है ? यह सवाल उत्तराखंड जैसे राज्य में तो इसलिए भी पूछा जाना चाहिए क्यूंकि बीते बरस अंकिता भंडारी का जघन्य हत्याकांड हमने देखा है. लेकिन इस कदर तपिश तो उस समय भी नहीं बनी ! लड़कियों, महिलाओं की सुरक्षा के स्वयंभू ठेकदारो, तुम्हारे खून में तभी उबाल क्यूँ आता है, जब कि मामले में धार्मिक ध्रुवीकरण संभव हो ? इसका मतलब यह है कि तुम्हारे अभियान का लड़कियों की सुरक्षा से नहीं घृणा फैलाने से वास्ता है. उत्तराखंड जो अपेक्षाकृत शांत प्रदेश है, वहाँ लड़कियों- महिलाओं की सुरक्षा की चिंता व सरोकार तो अवश्य होने चाहिए, लेकिन इस काम को उनके हवाले कतई नहीं छोड़ा जाना चाहिए, जिनके लिए यह सांप्रदायिक हिंसा और घृणा फैलाने का औज़ार है, उसके जरिये राजनीतिक रोटियाँ सेकने की कवायद है.


-इन्द्रेश मैखुरी

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1 Comments

  1. सही कहा। निष्पक्ष तरीके से बिना राजनैतिक रंग दिए जाँच होनी चाहिए इस तरह की घटनाओं की।

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