मृत्युंजय मिश्रा फिर चर्चा में हैं. एक
आदेश विभिन्न समाचार पोर्टल्स पर तैर रहा है. अपर सचिव डॉ.विजय कुमार जोगदंडे की ओर
से जारी पत्र कह रहा है कि आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवाएँ निदेशालय, देहरादून में विशेष कार्याधिकारी(ओएसडी) ,आयुष के पद
पर नियुक्त किए जाने की “श्री राज्यपाल सहर्ष स्वीकृति प्रदान
करते हैं.”
जिन हज़रत का नाम डॉ.मृत्युंजय कुमार मिश्रा है, उनके कारनामों की जो फेरहिस्त है, उसमें भ्रष्टाचार
से लेकर आय से अधिक संपत्ति तक के मामले में हैं. क्या इनकी नियुक्ति
को “सहर्ष” स्वीकृति प्रदान करते हुए, इन कारनामों की जानकारी
श्री राज्यपाल को न रही होगी या कि उक्त कारनामों की जानकारी के बावजूद यह हर्ष है
?
अभी दो दिन पहले ही तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा
चार मामलों में विजिलेंस जांच की मंजूरी पर दरबारी पत्रकार लहालोट हो रहे थे और बहुत
अरसे बाद पुनः सुनाई दिया कि “मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार के विरुद्ध
ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपना रहे हैं !”
हे सरकार समर्थक, सरकार की विरुदावली
गाने वालो, सरकार का जयकारा लगाने वालो, यह बताओ कि यदि चार लोगों पर विजिलेंस जांच का आदेश देना, भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस है, भ्रष्टाचार पर
कड़ा प्रहार है तो विजिलेंस द्वारा भ्रष्टाचार
के गंभीर आरोपों में जेल भेजे गए व्यक्ति को विशेष कार्य का अधिकारी बनाना क्या है
?
मृत्युंजय मिश्रा उत्तराखंड आए तो राजकीय महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक के तौर पर लेकिन पिछले एक दशक से अधिक समय से वे मूल नियुक्ति के काम के अलावा जाने क्या-क्या करते रहते हैं !
उत्तराखंड तकनीकि विश्वविद्यालय के बाद मिश्रा,आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव बनाए गए. क्यूँ बनाए गए पता नहीं ! एक राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक के पास आयुर्वेद
या तकनीकि जैसे विशिष्ट विषय के विश्वविद्यालय का कुलसचिव होने की क्या योग्यता पायी
गयी, यह भी आजतक कोई नहीं जानता ! कुलसचिव पद पर रहते हुए ही उन पर घोटाले के गंभीर
आरोप लगे और नवंबर 2018 में मुकदमा दर्ज करने के बाद, 03 दिसंबर
2018 को उन्हें विजिलेंस द्वारा एक करोड़ से अधिक के घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया
गया. उक्त मामले में उनकी पत्नी और ड्राईवर को भी विजिलेंस ने आरोपी बनाया.
उसके बाद मई 2019 में मृत्युंजय मिश्रा के खिलाफ आय से
अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया. विजिलेंस ने मृत्युंजय मिश्रा की 12 करोड़ की
संपत्ति पकड़ने के दावे के साथ मार्च 2019 में मिश्रा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के
मामले में उत्तराखंड शासन से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी और मई 2019 में यह अनुमति
मिलने के बाद उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.
16 अगस्त 2021 को मिश्रा उच्चतम न्यायालय से सशर्त जमानत पर रिहा हुए. दिसंबर 2021 में उन्हें बहाल करते हुए पुनः उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का कुलसचिव बनाया दिया गया. लेकिन उनकी यह नियुक्ति शुरू में ही विवादास्पद हो गयी. उनकी बहाली और निलंबन अवधि के सम्पूर्ण वेतन भुगतान के साथ पुनः उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद पर नियुक्त किए जाने को नियम सम्मत नहीं माना गया. उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो.सुनील जोशी ने मिश्रा को जॉइन कराने से इंकार कर दिया और आदेश जारी कर दिया कि मिश्रा को कोई फाइल न दिखाई जाये.
अंततः
24 जनवरी 2022 को मृत्युंजय मिश्रा को आयुष एवं आयुष शिक्षा विभाग से सम्बद्ध कर दिया
गया.
मृत्युंजय मिश्रा तब से वहीं संबद्ध थे. मिश्रा को ओएसडी
बनाने का फैसला भी अद्भुत है. डेढ़ साल से आदमी जिस विभाग में संबद्ध था, वहीं उसके लिए विशेष कार्याधिकारी का पद सृजित करके नियुक्त कर दिया गया.
यह तो उत्तराखंड सरकार को बताना ही चाहिए कि डेढ़ साल से आयुष एवं आयुष विभाग में मृत्युंजय
मिश्रा ऐसा कौन सा विशेष कार्य कर रहे थे, जिससे प्रसन्न हो कर
उनके लिए इसी विभाग में विशेष कार्य अधिकारी का पद सृजित किया गया है ?
आयुर्वेद के क्षेत्र में तो मृत्युंजय मिश्रा का घोटाले
और विवादों के अलावा कोई उल्लेखनीय काम नज़र आता नहीं है. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है
कि उनके पास कोई बूटी जरूरी है, जिससे वे सत्ताशीर्ष पर बैठे लोगों
को अपने मोहपाश में जकड़ लेते हैं. सत्ताशीर्ष
पर बैठे हुओं को साधने की बूटी ही व्यक्ति को “विशेष कार्य का अधिकारी” बनाती मालूम
पड़ती है ! पूर्व मुख्यमंत्रियों के बाद मिश्रा जी पर मेहरबान हुए युवा, धाकड़, हैंडसम धामी इस बूटी के चमत्कार को नमस्कार करते
प्रतीत होते हैं !
-इन्द्रेश मैखुरी
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